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*गंगाजल की महिमा का गुणगान किसी से छिपा नहीं है। हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी धर्मो में माता गंगा का महत्वपूर्ण स्थान है क्यों न हो चमत्कार को नमस्कार है। गंगा की महिमा युगों युगों से चली आ रही है। आज भी हरिद्वार के गंगाजल को लेने के लिए देश दुनिया से श्रद्धालु पहुँचते है। सर्वमान्य तथ्य है कि युगों पहले भागीरथ जी गंगा की धारा को पृथ्वी पर लाये थे भागीरथ जी गंगा की धरा को हिमालय के जिस मार्ग से लेकर मैदान में आए वह मार्ग जीवनदायनी दिव्य औषधियों व वनस्पतियों से भरा हुआ है। इस कारण भी गंगा जल को अमृततुल्य माना जाता है। धर्म नगरी हरिद्वार में गंगा का अपने विशेष आध्यात्मिक महात्म्य है। हरिद्वार, प्रयाग, अवन्तिका तथा नासिक इन चार स्थानों पर महाकुम्भ की परंपरा भी सदिओं पुरानी है। आज भी इन चार स्थानों में महाकुम्भ का विराट स्वरूप दिखाई देता है। पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है। नारदीय पुराण में तीर्थयात्रा की विधि का उल्लेख करते हुए प्रयाग, कुरुक्षेत्र तथा हरिद्वार तीर्थ का विशेष महत्व बताया गया है।
 
*गंगाजल की महिमा का गुणगान किसी से छिपा नहीं है। हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी धर्मो में माता गंगा का महत्वपूर्ण स्थान है क्यों न हो चमत्कार को नमस्कार है। गंगा की महिमा युगों युगों से चली आ रही है। आज भी हरिद्वार के गंगाजल को लेने के लिए देश दुनिया से श्रद्धालु पहुँचते है। सर्वमान्य तथ्य है कि युगों पहले भागीरथ जी गंगा की धारा को पृथ्वी पर लाये थे भागीरथ जी गंगा की धरा को हिमालय के जिस मार्ग से लेकर मैदान में आए वह मार्ग जीवनदायनी दिव्य औषधियों व वनस्पतियों से भरा हुआ है। इस कारण भी गंगा जल को अमृततुल्य माना जाता है। धर्म नगरी हरिद्वार में गंगा का अपने विशेष आध्यात्मिक महात्म्य है। हरिद्वार, प्रयाग, अवन्तिका तथा नासिक इन चार स्थानों पर महाकुम्भ की परंपरा भी सदिओं पुरानी है। आज भी इन चार स्थानों में महाकुम्भ का विराट स्वरूप दिखाई देता है। पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है। नारदीय पुराण में तीर्थयात्रा की विधि का उल्लेख करते हुए प्रयाग, कुरुक्षेत्र तथा हरिद्वार तीर्थ का विशेष महत्व बताया गया है।
  
*वहीं आइन-ए-अकबरी के अनुसार अकबर अपने दैनिक जीवन में गंगाजल का प्रयोग करता था। हरिद्वार से प्रतिदिन सीलबंद घडों में गंगा जल ऊँटो से दिल्ली-आगरा भी ले जाया जाता था। आज भी हरिद्वार आदि गंगा के क्षेत्रो में अस्थि विसर्जन करने की परंपरा है। यह सब ऐतहासिक तथ्य गंगाजल के आध्यात्मिक महात्म्य को प्रमाणित करते है।
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==गंगाजल का ऐतहासिक तथ्य==
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*गंगाजल की विशिष्टता एवं इसके प्रति आस्था केवल भारत तक ही सीमित रही हो, ऐसी बात नहीं है। वर्जिल व दांते जैसे महान् पश्चिमी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में गंगा का उल्लेख किया है। सिकंदर महान तो गंगा के सम्मोहन में बँध ही गया था। अमेरिका को खोजने वाला कोलंबस गंगा की तलाश में भटकते हुए मार्ग खो बैठा था। प्रख्यात इतिहास लेखक अबुल फजल ने अपनी पुस्तक 'आइने अकबरी' में लिखा है कि बादशाह अकबर अपने दैनिक जीवन में पीने के लिए गंगाजल ही प्रयोग में लाते थे। इस जल को वह अमृत कहते थे। हरिद्वार से प्रतिदिन सीलबंद घडों में गंगा जल ऊँटो से दिल्ली-आगरा भी ले जाया जाता था। आज भी हरिद्वार आदि गंगा के क्षेत्रो में अस्थि विसर्जन करने की परंपरा है। हिमालय विजेता एडमंड हिलेरी ने गंगासागर से गंगोत्री तक के ध्रती से सागर तक अभियान की देव-प्रयाग में समाप्ति पर गंगा को 'तपस्विनी' संज्ञा दी थी। उसने कहा था कि गंगाजल मात्रा साधरण जल नहीं है। इतिहासकार 'शारदा रानी' ने मंगोलिया यात्रा का वर्णन करते हुए लिखा है कि वहाँ के निवासियों ने उन्हें गंगादेश से आई हुई महिला कहकर साष्टांग प्रणाम किया। यह सब ऐतहासिक तथ्य गंगाजल के आध्यात्मिक महात्म्य को प्रमाणित करते है।
  
 
==गंगाजल क्यों ख़राब नहीं होता==
 
==गंगाजल क्यों ख़राब नहीं होता==
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*वैज्ञानिक बताते हैं कि हरिद्वार में गोमुख-गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता पर इसलिए कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायनी उपयोगी जड़ी-बूटियों का स्पर्श करता हुआ आता है। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगाजल खराब नहीं होने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। एक यह कि गंगाजल में बैट्रिया फोस नामक एक बैक्टीरिया पाया गया है जो पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होनेवाले अवांछनीय पदार्थों को खाता रहता है। इससे जल की शुद्धता बनी रहती है। दूसरा गंगा के पानी में गंधक (सल्फर) की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है इसलिए भी यह खराब नहीं होता। इसके अतिरिक्त कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं, जिससे इसमें कभी कीड़े पैदा नहीं होते। यही कारण है कि यह पानी सदा पीने योग्य माना गया है। जैसे-जैसे गंगा हरिद्वार से आगे अन्य शहरों की ओर बढ़ती जाती है शहरों, नगर निगमों और खेती-बाड़ी का कूड़ा-करकट तथा औद्योगिक रसायनों का मिश्रण गंगा में डाल दिया जाता है। यही वजह है कि कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद का गंगाजल आज पीने योग्य नहीं रह गया है।
 
*वैज्ञानिक बताते हैं कि हरिद्वार में गोमुख-गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता पर इसलिए कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायनी उपयोगी जड़ी-बूटियों का स्पर्श करता हुआ आता है। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगाजल खराब नहीं होने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। एक यह कि गंगाजल में बैट्रिया फोस नामक एक बैक्टीरिया पाया गया है जो पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होनेवाले अवांछनीय पदार्थों को खाता रहता है। इससे जल की शुद्धता बनी रहती है। दूसरा गंगा के पानी में गंधक (सल्फर) की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है इसलिए भी यह खराब नहीं होता। इसके अतिरिक्त कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं, जिससे इसमें कभी कीड़े पैदा नहीं होते। यही कारण है कि यह पानी सदा पीने योग्य माना गया है। जैसे-जैसे गंगा हरिद्वार से आगे अन्य शहरों की ओर बढ़ती जाती है शहरों, नगर निगमों और खेती-बाड़ी का कूड़ा-करकट तथा औद्योगिक रसायनों का मिश्रण गंगा में डाल दिया जाता है। यही वजह है कि कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद का गंगाजल आज पीने योग्य नहीं रह गया है।
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==गंगाजल पर वैज्ञानिको के मत व शोध==
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*फ्रांस के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. हैरेन ने गंगाजल पर वर्षों अनुसंधन करके अपने प्रयोगों का विवरण शोधपत्रों के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने आंत्राशोध व हैजे से मरे अज्ञात लोगों के शवों को गंगाजल में ऐसे स्थान पर डाल दिया, जहाँ कीटाणु तेजी से पनप सकते थे। डॉ. हैरेन को आश्चर्य हुआ कि कुछ दिनों के बाद इन शवों से आंत्राशोध व हैजे के ही नहीं बल्कि अन्य कीटाणु भी गायब हो गए। उन्होंने गंगाजल से 'बैक्टीरियासेपफेज' नामक एक घटक निकाला, जिसमें औषधीय गुण हैं।
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*इंग्लैंड के जाने-माने चिकित्सक सी. ई. नेल्सन ने गंगाजल पर अन्वेषण करते हुए लिखा कि इस जल में सड़ने वाले बैक्टीरिया ही नहीं होते। उन्होंने महर्षि चरक को उद्धृत करते हुए लिखा कि गंगाजल सही मायने में पथ्य है। रूसी वैज्ञानिकों ने हरिद्वार एवं काशी में स्नान के उपरांत 1950 में कहा था कि उन्हें स्नान के उपरांत ही ज्ञात हो पाया कि भारतीय गंगा को इतना पवित्रा क्यों मानते हैं।
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*गंगाजल की पाचकता के बारे में ओरियंटल इंस्टीटयूट में हस्तलिखित आलेख रखे हैं। कनाडा के मैकिलन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. एम. सी. हैमिल्टन ने गंगा की शक्ति को स्वीकारते हुए कहा कि वे नहीं जानते कि इस जल में अपूर्व गुण कहाँ से और कैसे आए। सही तो यह है कि चमत्कृत हैमिल्टन वस्तुत: समझ ही नहीं पाए कि गंगाजल की औषधीय गुणवत्ता को किस तरह प्रकट किया जाए। आयुर्वेदाचार्य गणनाथ सेन, विदेशी यात्री इब्नबतूता वरनियर, अंग्रेज सेना के कैप्टन मूर, विज्ञानवेत्ता डॉ. रिचर्डसन आदि सभी ने गंगा पर शोध करके यही निष्कर्ष दिया कि यह नदी अपूर्व है।
  
 
==गंगाजल का महत्व जीवन में==
 
==गंगाजल का महत्व जीवन में==

15:23, 11 अप्रैल 2011 का अवतरण

गंगाजल की महिमा

  • गंगाजल की महिमा का गुणगान किसी से छिपा नहीं है। हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी धर्मो में माता गंगा का महत्वपूर्ण स्थान है क्यों न हो चमत्कार को नमस्कार है। गंगा की महिमा युगों युगों से चली आ रही है। आज भी हरिद्वार के गंगाजल को लेने के लिए देश दुनिया से श्रद्धालु पहुँचते है। सर्वमान्य तथ्य है कि युगों पहले भागीरथ जी गंगा की धारा को पृथ्वी पर लाये थे भागीरथ जी गंगा की धरा को हिमालय के जिस मार्ग से लेकर मैदान में आए वह मार्ग जीवनदायनी दिव्य औषधियों व वनस्पतियों से भरा हुआ है। इस कारण भी गंगा जल को अमृततुल्य माना जाता है। धर्म नगरी हरिद्वार में गंगा का अपने विशेष आध्यात्मिक महात्म्य है। हरिद्वार, प्रयाग, अवन्तिका तथा नासिक इन चार स्थानों पर महाकुम्भ की परंपरा भी सदिओं पुरानी है। आज भी इन चार स्थानों में महाकुम्भ का विराट स्वरूप दिखाई देता है। पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है। नारदीय पुराण में तीर्थयात्रा की विधि का उल्लेख करते हुए प्रयाग, कुरुक्षेत्र तथा हरिद्वार तीर्थ का विशेष महत्व बताया गया है।

गंगाजल का ऐतहासिक तथ्य

  • गंगाजल की विशिष्टता एवं इसके प्रति आस्था केवल भारत तक ही सीमित रही हो, ऐसी बात नहीं है। वर्जिल व दांते जैसे महान् पश्चिमी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में गंगा का उल्लेख किया है। सिकंदर महान तो गंगा के सम्मोहन में बँध ही गया था। अमेरिका को खोजने वाला कोलंबस गंगा की तलाश में भटकते हुए मार्ग खो बैठा था। प्रख्यात इतिहास लेखक अबुल फजल ने अपनी पुस्तक 'आइने अकबरी' में लिखा है कि बादशाह अकबर अपने दैनिक जीवन में पीने के लिए गंगाजल ही प्रयोग में लाते थे। इस जल को वह अमृत कहते थे। हरिद्वार से प्रतिदिन सीलबंद घडों में गंगा जल ऊँटो से दिल्ली-आगरा भी ले जाया जाता था। आज भी हरिद्वार आदि गंगा के क्षेत्रो में अस्थि विसर्जन करने की परंपरा है। हिमालय विजेता एडमंड हिलेरी ने गंगासागर से गंगोत्री तक के ध्रती से सागर तक अभियान की देव-प्रयाग में समाप्ति पर गंगा को 'तपस्विनी' संज्ञा दी थी। उसने कहा था कि गंगाजल मात्रा साधरण जल नहीं है। इतिहासकार 'शारदा रानी' ने मंगोलिया यात्रा का वर्णन करते हुए लिखा है कि वहाँ के निवासियों ने उन्हें गंगादेश से आई हुई महिला कहकर साष्टांग प्रणाम किया। यह सब ऐतहासिक तथ्य गंगाजल के आध्यात्मिक महात्म्य को प्रमाणित करते है।

गंगाजल क्यों ख़राब नहीं होता

गंगाजल काफ़ी दिनों तक रखने के बावजूद ख़राब नहीं होता है, जबकि साधारण जल कुछ दिनों में ख़राब हो जाता है, क्यों ?
  • हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगा (भागीरथी), हरिद्वार (देवप्रयाग) में अलकनंदा से मिलती है। यहाँ तक आते-आते इसमें कुछ चट्टानें घुलती जाती हैं जिससे इसके जल में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो पानी को सड़ने नहीं देती। हर नदी के जल की अपनी जैविक संरचना होती है, जिसमें ख़ास तरह के घुले हुए पदार्थ रहते हैं जो कुछ क़िस्म के बैक्टीरिया को पनपने देते हैं कुछ को नहीं। बैक्टीरिया दोनों तरह के होते हैं, वो जो सड़ाते हैं और जो नहीं सड़ाते। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि गंगा के पानी में ऐसे बैक्टीरिया हैं जो सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने नहीं देते, इसलिए पानी लंबे समय तक ख़राब नहीं होता।
  • वैज्ञानिक बताते हैं कि हरिद्वार में गोमुख-गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता पर इसलिए कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायनी उपयोगी जड़ी-बूटियों का स्पर्श करता हुआ आता है। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगाजल खराब नहीं होने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। एक यह कि गंगाजल में बैट्रिया फोस नामक एक बैक्टीरिया पाया गया है जो पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होनेवाले अवांछनीय पदार्थों को खाता रहता है। इससे जल की शुद्धता बनी रहती है। दूसरा गंगा के पानी में गंधक (सल्फर) की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है इसलिए भी यह खराब नहीं होता। इसके अतिरिक्त कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं, जिससे इसमें कभी कीड़े पैदा नहीं होते। यही कारण है कि यह पानी सदा पीने योग्य माना गया है। जैसे-जैसे गंगा हरिद्वार से आगे अन्य शहरों की ओर बढ़ती जाती है शहरों, नगर निगमों और खेती-बाड़ी का कूड़ा-करकट तथा औद्योगिक रसायनों का मिश्रण गंगा में डाल दिया जाता है। यही वजह है कि कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद का गंगाजल आज पीने योग्य नहीं रह गया है।

गंगाजल पर वैज्ञानिको के मत व शोध

  • फ्रांस के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. हैरेन ने गंगाजल पर वर्षों अनुसंधन करके अपने प्रयोगों का विवरण शोधपत्रों के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने आंत्राशोध व हैजे से मरे अज्ञात लोगों के शवों को गंगाजल में ऐसे स्थान पर डाल दिया, जहाँ कीटाणु तेजी से पनप सकते थे। डॉ. हैरेन को आश्चर्य हुआ कि कुछ दिनों के बाद इन शवों से आंत्राशोध व हैजे के ही नहीं बल्कि अन्य कीटाणु भी गायब हो गए। उन्होंने गंगाजल से 'बैक्टीरियासेपफेज' नामक एक घटक निकाला, जिसमें औषधीय गुण हैं।
  • इंग्लैंड के जाने-माने चिकित्सक सी. ई. नेल्सन ने गंगाजल पर अन्वेषण करते हुए लिखा कि इस जल में सड़ने वाले बैक्टीरिया ही नहीं होते। उन्होंने महर्षि चरक को उद्धृत करते हुए लिखा कि गंगाजल सही मायने में पथ्य है। रूसी वैज्ञानिकों ने हरिद्वार एवं काशी में स्नान के उपरांत 1950 में कहा था कि उन्हें स्नान के उपरांत ही ज्ञात हो पाया कि भारतीय गंगा को इतना पवित्रा क्यों मानते हैं।
  • गंगाजल की पाचकता के बारे में ओरियंटल इंस्टीटयूट में हस्तलिखित आलेख रखे हैं। कनाडा के मैकिलन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. एम. सी. हैमिल्टन ने गंगा की शक्ति को स्वीकारते हुए कहा कि वे नहीं जानते कि इस जल में अपूर्व गुण कहाँ से और कैसे आए। सही तो यह है कि चमत्कृत हैमिल्टन वस्तुत: समझ ही नहीं पाए कि गंगाजल की औषधीय गुणवत्ता को किस तरह प्रकट किया जाए। आयुर्वेदाचार्य गणनाथ सेन, विदेशी यात्री इब्नबतूता वरनियर, अंग्रेज सेना के कैप्टन मूर, विज्ञानवेत्ता डॉ. रिचर्डसन आदि सभी ने गंगा पर शोध करके यही निष्कर्ष दिया कि यह नदी अपूर्व है।

गंगाजल का महत्व जीवन में

आइये जरा गंगा जल के महत्व को अपने जीवन में भी उतारे
  • यदि कर्ज नहीं उतर रहा, व्यवसाय चलते चलते अचानक रुक गया है। घर से बिमारी पीछा नहीं छोड़ रही है या मन हमेशा आशंकित रहता है। घर में या ऑफिस में बिना किसी कारण के तनाव की स्थिति रहती है। घर की बरकत बिलकुल खत्म हो रही हो तो गंगा जल को प्राथमिकता दे। अपने समस्त समस्याओं का समाधान करे। किसी भी सोमवार या वृहस्पतिवार को गंगाजल किसी पीतल या चांदी के बर्तन में पूरा मुंह तक भर कर ढक्कन अच्छी तरह से बंद कर के घर उत्तर-पूर्व अर्थात ईशान कोण में कमरे के भी ईशान कोण में रख दे। एक या दो महीने में आप देखेंगे कि गंगा जल का स्तर कम हो रहा है अर्थार घट रहा है, तो उसी समय इसे फिर से भर दे। ध्यान रखे कि इस गंगाजल का किसी अन्य कार्य में प्रयोग ना करें। जब तक गंगा जल घर या भवन में रखा रहेगा तब तक घर में सुख सम्पदा का वास रहेगा। इस कारण से प्रत्येक घर में गंगाजल का इस प्रकार का पात्र बहुत उपयोगी होता है।


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