"वीर -रामधारी सिंह दिनकर" के अवतरणों में अंतर
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सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं | सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं | ||
+ | स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं | ||
− | + | सच है, विपत्ति जब आती है, | |
− | कायर को ही दहलाती है , | + | कायर को ही दहलाती है, |
− | सूरमा नहीं विचलित होते , | + | सूरमा नहीं विचलित होते, |
− | क्षण एक नहीं धीरज खोते , | + | क्षण एक नहीं धीरज खोते, |
− | विघ्नों को गले लगाते हैं , | + | विघ्नों को गले लगाते हैं, |
− | कांटों में राह बनाते | + | कांटों में राह बनाते हैं। |
− | मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं , | + | मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं, |
− | संकट का चरण न गहते हैं , | + | संकट का चरण न गहते हैं, |
− | जो आ पड़ता सब सहते हैं , | + | जो आ पड़ता सब सहते हैं, |
− | उद्योग - निरत नित रहते हैं , | + | उद्योग - निरत नित रहते हैं, |
− | + | शूलों का मूळ नसाते हैं, | |
− | बढ़ खुद विपत्ति पर छाते | + | बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं। |
− | है कौन विघ्न ऐसा जग में , | + | है कौन विघ्न ऐसा जग में, |
− | टिक सके आदमी के मग में ? | + | टिक सके आदमी के मग में? |
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर | ख़म ठोंक ठेलता है जब नर | ||
− | पर्वत के जाते | + | पर्वत के जाते पाँव उखड़, |
− | मानव जब जोर लगाता है , | + | मानव जब जोर लगाता है, |
− | पत्थर पानी बन जाता | + | पत्थर पानी बन जाता है। |
− | गुन बड़े एक से एक प्रखर , | + | गुन बड़े एक से एक प्रखर, |
− | हैं छिपे मानवों के | + | हैं छिपे मानवों के भीतर, |
− | मेंहदी में जैसी लाली हो , | + | मेंहदी में जैसी लाली हो, |
− | वर्तिका - बीच उजियाली हो , | + | वर्तिका - बीच उजियाली हो, |
− | बत्ती जो नहीं जलाता है , | + | बत्ती जो नहीं जलाता है, |
− | रोशनी नहीं वह पाता | + | रोशनी नहीं वह पाता है। |
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== |
09:59, 23 अगस्त 2011 का अवतरण
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सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं |
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