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09:47, 14 अक्टूबर 2011 का अवतरण

  • महाराज रामसिंह 'नरवलगढ़' के राजा थे।
  • इन्होंने रस और अलंकार पर तीन ग्रंथ लिखे हैं -
  1. अलंकार दर्पण,
  2. रसनिवास [1] और
  3. रसविनोद [2]
  • 'अलंकार दर्पण' दोहों में है।
  • नायिका भेद भी अच्छा है।
  • यह एक अच्छे और प्रवीण कवि थे।

सोहत सुंदर स्याम सिर, मुकुट मनोहर जोर।
मनो नीलमनि सैल पर, नाचत राजत मोर
दमकन लागी दामिनी, करन लगे घन रोर।
बोलति माती कोइलै, बोलत माते मोर



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रसनिवास संवत 1839
  2. रसविनोद संवत 1860

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