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*कवि ने कहा है कि और कवियों ने बड़े छंदों के विस्तार में श्रृंगार रस का वर्णन किया है पर मैंने 'सुघरता' के विचार से दोहों में वर्णन किया है। इससे जान पड़ता है कि इनके पहले और लोगों ने भी रीतिग्रंथ लिखे थे जो अब नहीं मिलते हैं। | *कवि ने कहा है कि और कवियों ने बड़े छंदों के विस्तार में श्रृंगार रस का वर्णन किया है पर मैंने 'सुघरता' के विचार से दोहों में वर्णन किया है। इससे जान पड़ता है कि इनके पहले और लोगों ने भी रीतिग्रंथ लिखे थे जो अब नहीं मिलते हैं। | ||
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पति आयो परदेस तें ऋतु बसंत को मानि। | पति आयो परदेस तें ऋतु बसंत को मानि। | ||
झमकि झमकि निज महल में टहलैं करै सुरानि</poem> | झमकि झमकि निज महल में टहलैं करै सुरानि</poem> | ||
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06:05, 9 अगस्त 2012 का अवतरण
कृपाराम का कुछ वृत्तांत ज्ञात नहीं। इन्होंने संवत 1598 में रसरीति पर 'हिततरंगिणी' नामक ग्रंथ दोहों में बनाया।
- रीति या लक्षण ग्रंथों में यह बहुत पुराना है।
- कवि ने कहा है कि और कवियों ने बड़े छंदों के विस्तार में श्रृंगार रस का वर्णन किया है पर मैंने 'सुघरता' के विचार से दोहों में वर्णन किया है। इससे जान पड़ता है कि इनके पहले और लोगों ने भी रीतिग्रंथ लिखे थे जो अब नहीं मिलते हैं।
- 'हिततरंगिणी' के कई दोहे बिहारी के दोहों से मिलते जुलते हैं। पर इससे यह नहीं सिद्ध होता कि यह ग्रंथ बिहारी के बाद का है क्योंकि ग्रंथ में निर्माण काल बहुत स्पष्ट रूप से दिया हुआ है
सिधि निधि सिव मुख चंद्र लखि माघ सुद्दि तृतियासु।
हिततरंगिनी हौं रची कवि हित परम प्रकासु
- या तो बिहारी ने उन दोहों को जान बूझकर लिया है अथवा वे दोहे बाद से मिल गए।
- हिततरंगिणी के दोहे बहुत ही सरस, भावपूर्ण तथा परिमार्जित भाषा में हैं -
लोचन चपल कटाच्छ सर अनियारे विष पूरि।
मन मृग बेधौं मुनिन के जगजन सहत बिसूरि
आजु सबारे हौं गई नंदलाल हित ताल।
कुमुद कुमुदुनी के भटू निरखे औरै हाल
पति आयो परदेस तें ऋतु बसंत को मानि।
झमकि झमकि निज महल में टहलैं करै सुरानि
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