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छोटा इमामबाड़ा या हुसैनाबाद इमामबाड़ा का निर्माण 1837 ई. में करवाया गया था। यह छोटा इमामबाड़ा के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि मोहम्मद अली शाह को यहीं पर दफनाया गया था। छोटे इमामबाड़े में ही मोहम्मद अली शाह की बेटी और दामाद का मक़बरा भी बना हुआ है।  
 
छोटा इमामबाड़ा या हुसैनाबाद इमामबाड़ा का निर्माण 1837 ई. में करवाया गया था। यह छोटा इमामबाड़ा के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि मोहम्मद अली शाह को यहीं पर दफनाया गया था। छोटे इमामबाड़े में ही मोहम्मद अली शाह की बेटी और दामाद का मक़बरा भी बना हुआ है।  
 
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छोटे इमामबाड़े की मुख्य चोटी पर एक सुनहरा और बड़ा गुम्बद है। इस इमारत को अली शाह और उसकी मां का मक़बरा माना जाता है। मक़बरे के विपरीत दूसरी दिशा में 'सतखंड' नाम का एक अधूरा [[घंटाघर लखनऊ|घंटाघर]] है। कहा जाता है कि 1840 ई. में अली शाह की मृत्यु के बाद इसका निर्माणकार्य रोक दिया गया था। उस समय तक 67 मीटर ऊँचे इस घंटाघर की चार मंजिल ही बन पायी थी।  
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छोटे इमामबाड़े की मुख्य चोटी पर एक सुनहरा और बड़ा गुम्बद है। इस इमारत को अली शाह और उसकी मां का मक़बरा माना जाता है। मक़बरे के विपरीत दूसरी दिशा में 'सतखंड' नाम का एक अधूरा [[घंटाघर लखनऊ|घंटाघर]] है। कहा जाता है कि 1840 ई. में अली शाह की मृत्यु के बाद इसका निर्माणकार्य रोक दिया गया था। उस समय तक 67 मीटर ऊँचे इस घंटाघर की चार मंज़िल ही बन पायी थी।  
 
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मुस्लिम त्योहार [[मोहर्रम]] के अवसर पर इस इमामबाड़े की आकर्षक सजावट की जाती है और पर्यटक उसे देखने आते हैं।
 
मुस्लिम त्योहार [[मोहर्रम]] के अवसर पर इस इमामबाड़े की आकर्षक सजावट की जाती है और पर्यटक उसे देखने आते हैं।

14:18, 3 फ़रवरी 2013 का अवतरण

छोटा इमामबाड़ा, लखनऊ

छोटा इमामबाड़ा उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में स्थित है। छोटा इमामबाड़ा को हुसैनाबाद इमामबाड़ा भी कहा जाता है।

निर्माण

छोटा इमामबाड़ा या हुसैनाबाद इमामबाड़े का निर्माण 'मोहम्मद अली शाह' ने करवाया था।

समय

छोटा इमामबाड़ा या हुसैनाबाद इमामबाड़ा का निर्माण 1837 ई. में करवाया गया था। यह छोटा इमामबाड़ा के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि मोहम्मद अली शाह को यहीं पर दफनाया गया था। छोटे इमामबाड़े में ही मोहम्मद अली शाह की बेटी और दामाद का मक़बरा भी बना हुआ है।

वास्तुकला

छोटे इमामबाड़े की मुख्य चोटी पर एक सुनहरा और बड़ा गुम्बद है। इस इमारत को अली शाह और उसकी मां का मक़बरा माना जाता है। मक़बरे के विपरीत दूसरी दिशा में 'सतखंड' नाम का एक अधूरा घंटाघर है। कहा जाता है कि 1840 ई. में अली शाह की मृत्यु के बाद इसका निर्माणकार्य रोक दिया गया था। उस समय तक 67 मीटर ऊँचे इस घंटाघर की चार मंज़िल ही बन पायी थी।

मोहर्रम

मुस्लिम त्योहार मोहर्रम के अवसर पर इस इमामबाड़े की आकर्षक सजावट की जाती है और पर्यटक उसे देखने आते हैं।


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