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*महामहोपाध्याय पंडित '''गंगानाथ झा''' [[संस्कृत भाषा]] के प्रकाण्ड पंडित थे।
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'''गंगानाथ झा''' (जन्म: [[25 दिसम्बर]] [[1872]] – मृत्यु: [[9 नवम्बर]] [[1941]]) [[संस्कृत भाषा]] के प्रकाण्ड पंडित थे। इन्होंने [[हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी]] और [[मैथिली भाषा]] में दार्शनिक विषयों पर उच्च कोटि के मौलिक ग्रन्थों की रचना की है।
*आपने [[हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी]] और [[मैथिली भाषा]] में दार्शनिक विषयों पर उच्च कोटि के मौलिक ग्रन्थों की रचना की है।
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==संक्षिप्त जीवन परिचय==
*इनका सबसे बड़ा योगदान संस्कृत के महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थों का अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद कार्य रहा है।
 
*इनके इस महत्त्वपूर्ण कार्य से [[भारत]] के प्राचीन ज्ञान से पश्चिम के विद्वानों को परिचित होने का अवसर मिला।
 
 
*गंगानाथ झा का जन्म [[मिथिला]] ([[बिहार]]) के एक गाँव में [[1871]] ई. में हुआ था।
 
*गंगानाथ झा का जन्म [[मिथिला]] ([[बिहार]]) के एक गाँव में [[1871]] ई. में हुआ था।
*संस्कृत की उच्च शिक्षा इन्होंने [[काशी]] के दो प्रसिद्ध विद्वानों से ग्रहण की थी।
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*[[संस्कृत]] की उच्च शिक्षा इन्होंने [[काशी]] के दो प्रसिद्ध विद्वानों से ग्रहण की थी।
 
*इन्होंने काशी के ही क्वीन्स कॉलेज से पाश्चात्य प्रणाली की शिक्षा भी ग्रहण की थी।
 
*इन्होंने काशी के ही क्वीन्स कॉलेज से पाश्चात्य प्रणाली की शिक्षा भी ग्रहण की थी।
 
*18 वर्ष की उम्र में ही [[संस्कृत]] में एक पद्यात्मक ग्रन्थ लिखकर आपने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर दी थी।
 
*18 वर्ष की उम्र में ही [[संस्कृत]] में एक पद्यात्मक ग्रन्थ लिखकर आपने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर दी थी।
*‘पूर्व मीमांसा के प्रभाकरमत’ पर शोध प्रबन्ध लिखकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में संस्कृत का अध्यापन कार्य किया और फिर [[बनारस]] संस्कृत कॉलेज के प्रिंसिपल बने।
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*इनका सबसे बड़ा योगदान संस्कृत के महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थों का अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद कार्य रहा है।
*[[1923]] में आपको इलाहाबाद विश्वविद्यालय का वाइस-चांसलर बनाया गया, यहाँ पर यह [[1932]] तक इस पद पर रहे।
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*इनके इस महत्त्वपूर्ण कार्य से [[भारत]] के प्राचीन ज्ञान से पश्चिम के विद्वानों को परिचित होने का अवसर मिला।
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*‘पूर्व मीमांसा के 'प्रभाकरमत’ पर शोध प्रबन्ध लिखकर [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में संस्कृत का अध्यापन कार्य किया और फिर [[बनारस]] संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य बने।
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*[[1923]] में आपको इलाहाबाद विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया, यहाँ पर यह [[1932]] तक इस पद पर रहे।
 
*कुछ समय के लिए आप प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य भी मनोनीत किए गए थे।
 
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*आपने 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' का सभापतित्व भी किया था।
 
*आपने 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' का सभापतित्व भी किया था।
 
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08:34, 5 मार्च 2013 का अवतरण

गंगानाथ झा (जन्म: 25 दिसम्बर 1872 – मृत्यु: 9 नवम्बर 1941) संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड पंडित थे। इन्होंने हिन्दी, अंग्रेज़ी और मैथिली भाषा में दार्शनिक विषयों पर उच्च कोटि के मौलिक ग्रन्थों की रचना की है।

संक्षिप्त जीवन परिचय

  • गंगानाथ झा का जन्म मिथिला (बिहार) के एक गाँव में 1871 ई. में हुआ था।
  • संस्कृत की उच्च शिक्षा इन्होंने काशी के दो प्रसिद्ध विद्वानों से ग्रहण की थी।
  • इन्होंने काशी के ही क्वीन्स कॉलेज से पाश्चात्य प्रणाली की शिक्षा भी ग्रहण की थी।
  • 18 वर्ष की उम्र में ही संस्कृत में एक पद्यात्मक ग्रन्थ लिखकर आपने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर दी थी।
  • इनका सबसे बड़ा योगदान संस्कृत के महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थों का अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद कार्य रहा है।
  • इनके इस महत्त्वपूर्ण कार्य से भारत के प्राचीन ज्ञान से पश्चिम के विद्वानों को परिचित होने का अवसर मिला।
  • ‘पूर्व मीमांसा के 'प्रभाकरमत’ पर शोध प्रबन्ध लिखकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में संस्कृत का अध्यापन कार्य किया और फिर बनारस संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य बने।
  • 1923 में आपको इलाहाबाद विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया, यहाँ पर यह 1932 तक इस पद पर रहे।
  • कुछ समय के लिए आप प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य भी मनोनीत किए गए थे।
  • आपने 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' का सभापतित्व भी किया था।
  • 17 नवम्बर, 1941 को आपका देहान्त हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 212।

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