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19वीं शताब्दी में भारत में पड़ने वाले अकाल भी नगरीय जनसंख्या वृद्धि के उत्तरदायी रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार न मिलने सकने के कारण ग्रामीण जनसंख्या रोज़गार की तालाश में नगरों की ओर चल पड़ी। इस प्रकार [[1872]]-[[1881]] और [[1891]]-[[1991]] की अवधि में भीषण अकाल पड़ने के कारण नगरों की तरफ जनसंख्या का पलायन हो गया।
 
19वीं शताब्दी में भारत में पड़ने वाले अकाल भी नगरीय जनसंख्या वृद्धि के उत्तरदायी रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार न मिलने सकने के कारण ग्रामीण जनसंख्या रोज़गार की तालाश में नगरों की ओर चल पड़ी। इस प्रकार [[1872]]-[[1881]] और [[1891]]-[[1991]] की अवधि में भीषण अकाल पड़ने के कारण नगरों की तरफ जनसंख्या का पलायन हो गया।
 
====नगरीय जीवन का आकर्षण====
 
====नगरीय जीवन का आकर्षण====
नगर जीवन में कुछ ऐसे आकर्षण हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई नहीं पडते। अतः धनी जमीदारों ने भी 19वीं और 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में नगरों में बसने की प्रवृत्ति उभरी।
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नगर जीवन में कुछ ऐसे आकर्षण हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई नहीं पडते। अतः धनी ज़मींदारों ने भी 19वीं और 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में नगरों में बसने की प्रवृत्ति उभरी।
 
====उद्योगों का विस्तार====
 
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नये उद्योगों की स्थापना और पुराने उद्योगों का विस्तार होने के कारण श्रमशक्ति नगरों में खपने लगी।
 
नये उद्योगों की स्थापना और पुराने उद्योगों का विस्तार होने के कारण श्रमशक्ति नगरों में खपने लगी।

12:30, 14 मई 2013 का अवतरण

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यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमरीका में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप नगरों की संख्या में वृद्धि हुई है। मशीनों के अविष्कार के परिणामस्वरूप श्रमिक, शिल्पी और कारीगर बेकार हो गए। इन बेरोज़गार श्रमिकों को नगर क्षेत्रों में रख लिया गया। इस प्रकार बड़े पैमाने पर उत्पादन, मशीनों के प्रयोग और औद्योगिक सभ्यता के विकास के परिणामस्वरूप नगरीकरण का सूत्रपात हुआ। भारत में यूरोप और संयुक्त राज्य अमरीका की तरह नगरीकरण की क्रिया नहीं हुई। भारत में नगरीकरण के निम्नलिखित कारण रहे-

रेलों का विकास

रेलों के विकास ने भारत के व्यापार क्षेत्र में क्रान्ति ला दी। भारत में रेलों का विकास दो आवश्यकताओं को दृष्टि में रखकर किया गया था -

  • पहला प्रशासनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए।
  • दूसरा व्यापारिक केंन्द्रों पर वस्तुऐं और कच्चा माल एकत्रित करने के लिए।

अकाल

19वीं शताब्दी में भारत में पड़ने वाले अकाल भी नगरीय जनसंख्या वृद्धि के उत्तरदायी रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार न मिलने सकने के कारण ग्रामीण जनसंख्या रोज़गार की तालाश में नगरों की ओर चल पड़ी। इस प्रकार 1872-1881 और 1891-1991 की अवधि में भीषण अकाल पड़ने के कारण नगरों की तरफ जनसंख्या का पलायन हो गया।

नगरीय जीवन का आकर्षण

नगर जीवन में कुछ ऐसे आकर्षण हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई नहीं पडते। अतः धनी ज़मींदारों ने भी 19वीं और 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में नगरों में बसने की प्रवृत्ति उभरी।

उद्योगों का विस्तार

नये उद्योगों की स्थापना और पुराने उद्योगों का विस्तार होने के कारण श्रमशक्ति नगरों में खपने लगी।

नगरों में स्थायी रोज़गार

भूमिहीन श्रमिक वर्ग जिनका मूल संबंध कृषि से था, ग्राम तथा नगरों के बीच आने-जाने वाली श्रम शक्ति का ही एक अंग था। इस वर्ग के जिन लोगों को नगर क्षेत्रों में स्थाई रोज़गार अथवा अपेक्षाकृत ऊंची मजदूरी मिल गई, वे वहीं बस गए।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नगरीकरण के विकास में उद्योगों का विकास अन्य सभी देशों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा किन्तु भारत में इसका प्रभाव इतना सशक्त नहीं था। भारत में ऐसे नगरों की संख्या बहुत कम है जिनका विकास नये उद्योगों के कारण हुआ हो।

नगरीकरण और आर्थिक विकास में संबंध

किसी भी अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास के निम्नलिखित तीन लक्षण मुख्य होते हैं-

  1. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि ताकि लोगों का जीवन स्तर उन्नत हो सके।
  2. निर्धनता रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या में कमी।
  3. बेरोज़गार की दर एवं आकार में कमी।

आंकड़ों के आधार पर जब कुल जनसंख्या में नगर जनसंख्या के अनुपात और प्रति व्यक्ति आय में यह संबंध गुणांक निकाला जाता है तो वह 0.5 आता है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नगरीकरण और प्रति व्यक्ति आय में सकरात्मक संबंध है। किंतु यही सह सहसंबंध गुणांक जब जनसंख्या और दैनिक स्थिति बेरोज़गारी के बीच निकाला जाता है तो वह 0.18 आता है जो यह संकेत करता है कि नगरीकरण के परिणामस्वरूप बेरोज़गारी में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं हुई।


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