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{[[श्रीराम]] की सेना के दो अभियंता वानरों के नाम क्या थे?
 
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-[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]]-[[हनुमान]]
 
-[[सुग्रीव]]-[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]]
 
-[[केसरी वानर राज|केसरी]]-[[सुषेण वैद्य|सुषेण]]
 
+[[नल (रामायण)|नल]]-[[नील]]
 
||[[चित्र:Ram-sethu.jpg|right|90px|रामसेतु का निर्माण करते नल-नील]]'[[रामायण]]' में 'नल' और 'नील' नाम के दो वानरों का उल्लेख हुआ है, जो [[श्रीराम]] की सेना में थे। ये दोनों वानर [[देवता|देवताओं]] के शिल्पी [[विश्वकर्मा]] के अंशावतार थे। दक्षिण में [[समुद्र]] के किनारे पहुँचकर जब [[श्रीराम]] ने समुद्र की आराधना की, तब प्रसन्न होकर वरुणालय ने सगर पुत्रों से संबंधित होकर अपने को इक्ष्वाकु वंशीय बतलाकर राम की सहायता करने का वचन दिया। उसने कहा- "आपकी सेना में [[नल (रामायण)|नल]]-[[नील]] नामक विश्वकर्मा के पुत्र हैं। वह अपने हाथ से मेरे [[जल]] में जो कुछ भी छोड़ेंगे, वह तैरता रहेगा, डूबेगा नहीं।' इस प्रकार समुद्र पर पुल बना, जो 'नलसेतु' नाम से विख्यात हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नल (रामायण)|नल]]-[[नील]]
 
 
{[[लंका]] के उस प्रसिद्ध वैद्य का क्या नाम था, जिसे [[लक्ष्मण]] की मूर्च्छा दूर करने हेतु [[हनुमान]] लंका से उठा लाये?
 
|type="()"}
 
-मातलि
 
-[[विश्रवा]]
 
+[[सुषेण वैद्य|सुषेण]]
 
-रैभ्य
 
||[[चित्र:Hanuman.jpg|right|80px|संजीवनी ले जाते हनुमान]]सुषेण वैद्य का उल्लेख [[रामायण]] में हुआ है। रामायणानुसार [[सुषेण वैद्य|सुषेण]] [[लंका]] के राजा राक्षसराज [[रावण]] का राजवैद्य था। जब रावण के पुत्र [[मेघनाद]] के साथ हुए भीषण युद्ध में [[लक्ष्मण]] घायल होकर मूर्छित हो गये, तब सुषेण ने ही लक्ष्मण की चिकित्सा की थी। उसके यह कहने पर कि मात्र संजीवनी बूटी के प्रयोग से ही लक्ष्मण के प्राण बचाये जा सकते हैं, तब [[श्रीराम]] के परम [[भक्त]] [[हनुमान]] ने वह बूटी लाकर दी और लक्ष्मण के प्राण बचाये जा सके।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुषेण वैद्य|सुषेण]]
 
 
{[[जनक|राजा जनक]] का मूल नाम क्या था?
 
|type="()"}
 
+[[सिरध्वज]]
 
-शतध्वज
 
-कपिध्वज
 
-मकरध्वज
 
||'जनक' [[मिथिला|मिथिला महाजनपद]] के राजा और [[श्रीराम]] के श्वसुर थे। इनका वास्तविक नाम 'सिरध्वज' और इनके भाई का नाम 'कुशध्वज' था। [[सीता]] महाराज [[जनक]] की ही पुत्री थीं, जिनका विवाह [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के ज्येष्ठ पुत्र [[राम]] से सम्पन्न हुआ था। जनक अपने अध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध थे। उनके पूर्वजों में [[निमि]] के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। भगवान [[शिव]] का [[धनुष अस्त्र|धनुष]] उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। जब राजा जनक ने एक [[यज्ञ]] किया, तब [[विश्वामित्र]] तथा मुनियों ने [[राम]] और [[लक्ष्मण]] को भी उस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि उन दोनों को शिव-धनुष के दर्शन करने का अवसर भी प्राप्त होगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनक]]
 
 
{'[[वाल्मीकि रामायण]]' की रचना जिस [[छन्द]] में हुई, उसका नाम क्या है?
 
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-[[चौपाई]]
 
-सोरठा
 
-[[सवैया]]
 
+[[अनुष्टुप छन्द|अनुष्टुप]]
 
||'अनुष्टुप' [[संस्कृत]] काव्य में सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। [[रामायण]], [[महाभारत]] तथा [[गीता]] के अधिकांश [[श्लोक]] [[अनुष्टुप छन्द]] में ही हैं। [[हिन्दी]] में [[दोहा]] की लोकप्रियता के समान ही संस्कृत में अनुष्टुप की पहचान है। [[वैदिक काल]] से ही इस [[छन्द]] का प्रयोग मिलता है। प्राचीन काल से ही सभी ने इसे बहुत आसानी के साथ प्रयोग किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अनुष्टुप छन्द]]
 
 
{[[अवधी भाषा|अवधी भाषा]] में रचित [[रामायण]] का क्या नाम है?
 
|type="()"}
 
-अवधी रामायण
 
+[[रामचरितमानस]]
 
-कंब रामायण
 
-अध्यात्म रामायण
 
||[[चित्र:Tulsidas-Ramacharitamanasa.jpg|right|80px|रामचरितमानस]]'रामचरितमानस' एक चरित-काव्य है, जिसमें [[श्रीराम]] का सम्पूर्ण जीवन-चरित वर्णित हुआ है। इसमें 'चरित' और 'काव्य' दोनों के गुण समान रूप से मिलते हैं। '[[रामचरितमानस]]' [[तुलसीदास]] की सबसे प्रमुख कृति है। इसकी रचना [[संवत]] 1631 ई. की [[रामनवमी]] को [[अयोध्या]] में प्रारम्भ हुई थी, किन्तु इसका कुछ अंश [[काशी]] (वाराणसी) में भी निर्मित हुआ था। यह इसके '[[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धाकाण्ड]]' के प्रारम्भ में आने वाले एक सोरठे से निकलती है, उसमें काशी सेवन का उल्लेख है। यह रचना '[[अवधी भाषा|अवधी बोली]]' में लिखी गयी है। इसके मुख्य [[छन्द]] [[चौपाई]] और [[दोहा]] हैं, बीच-बीच में कुछ अन्य प्रकार के भी छन्दों का प्रयोग हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामचरितमानस]]
 
 
 
{उस गुप्तचर का क्या नाम था, जिसके कहने पर [[श्रीराम]] ने [[सीता]] का परित्याग कर दिया?
 
{उस गुप्तचर का क्या नाम था, जिसके कहने पर [[श्रीराम]] ने [[सीता]] का परित्याग कर दिया?
 
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07:45, 8 सितम्बर 2013 का अवतरण

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1 उस गुप्तचर का क्या नाम था, जिसके कहने पर श्रीराम ने सीता का परित्याग कर दिया?

सुमालि
मणिभान
दुर्मुख
छंदक

2 कैकेयी की उस दासी का नाम क्या था, जो मायके से ही उसके साथ अयोध्या रहने आई थी?

सुभद्रा
मंथरा
रेवती
नलिनी

3 उस तीर्थ का क्या नाम था, जिसमें डुबकी लगाकर श्रीराम ने परमधाम को प्रस्थान किया?

समंतपंचक
गोमंतक
गोप्रतार
नारदकुंड

4 महर्षि विश्वामित्र का क्षत्रिय दशा का क्या नाम था?

रुक्मरथ
विश्वरथ
चित्ररथ
दशरथ

5 बालि और सुग्रीव जिस वानर से उत्पन्न हुए थे, उसका नाम क्या था?

ऋक्षराज
जंभन
केसरी
जामवन्त

6 महर्षि वाल्मीकि का बचपन का नाम क्या था?

रत्नेश
रत्नसेन
रत्नाकर
रत्नाभ

7 रामायण जिस युग से सम्बन्धित है, उसका क्या नाम है?

द्वापरयुग
त्रेतायुग
सत्ययुग
कलियुग

8 समुद्र मंथन से जो अश्व निकला था, उसका क्या नाम था?

चेतक
बाज
उच्चै:श्रवा
सुमाली

9 श्रीराम ने जिन वृक्षों की ओट से वानरराज बालि को मारा, उनका क्या नाम था?

साल वृक्ष
वट वृक्ष
शमी वृक्ष
अशोक वृक्ष

10 समुद्र मंथन से प्राप्त उस हाथी का क्या नाम था, जो श्वेत वर्ण का था?

शत्रुजंय
ऐरावत
अश्वत्थामा
कुवलयापीड

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