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'''बंदर का कलेजा''' [[पंचतंत्र]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] हैं।
;बंदर का कलेजा
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==कहानी==
 
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<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:16px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
एक नदी किनारे हरा-भरा विशाल पेड था। उस पर खूब स्वादिष्ट फल उगे रहते। उसी पेड पर एक बदंर रहता था। बडा मस्त कलंदर। जी भरकर फल खाता, डालियों पर झूलता और कूदता-फांदता रहता। उस बंदर के जीवन में एक ही कमी थी कि उसका अपना कोई नहीं था। मां-बाप के बारे में उसे कुछ याद नहीं था न उसके कोई भाई थाऔर न कोई बहन, जिनके साथ वह खेलता। उस क्षेत्र में कोई और बंदर भी नहीं था जिससे वह दोस्ती गांठ पाता। एक दिन वह एक डाल पर बैठा नदी का नजारा देख रहा था कि उसे एक लंबा विशाल जीव उसी पेड की ओर तैरकर आता नजर आया। बंदर ने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा था। उसने उस विचित्र जीव से पूछा 'अरे भाई, तुम क्या चीज हो?'
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          एक नदी किनारे हरा-भरा विशाल पेड था। उस पर खूब स्वादिष्ट [[फल]] उगे रहते। उसी पेड पर एक [[बंदर]] रहता था। बडा मस्त कलंदर। जी भरकर फल खाता, डालियों पर झूलता और कूदता-फांदता रहता। उस बंदर के जीवन में एक ही कमी थी कि उसका अपना कोई नहीं था। मां-बाप के बारे में उसे कुछ याद नहीं था न उसके कोई भाई था और न कोई बहन, जिनके साथ वह खेलता। उस क्षेत्र में कोई और बंदर भी नहीं था जिससे वह दोस्ती गांठ पाता। एक दिन वह एक डाल पर बैठा नदी का नज़ारा देख रहा था कि उसे एक लंबा विशाल जीव उसी पेड की ओर तैरकर आता नजर आया। बंदर ने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा था। उसने उस विचित्र जीव से पूछा 'अरे भाई, तुम क्या चीज़ हो?'
 
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विशाल जीव ने उत्तर दिया 'मैं एक [[मगरमच्छ]] हूं। नदी में इस वर्ष मछलियों का [[अकाल]] पड गया हैं। बस, भोजन की तलाश में घूमता-घूमता इधर आ निकला हूं।'
विशाल जीव ने उत्तर दिया 'मैं एक मगरमच्छ हूं। नदी में इस वर्ष मछ्लियों का अकाल पड गया हैं। बस, भोजन की तलाश में घूमता-घूमता इधर आ निकला हूं।'
 
 
 
 
बंदर दिल का अच्छा था। उसने सोचा कि पेड पर इतने फल हैं, इस बेचारे को भी उनका स्वाद चखना चाहिए। उसने एक फल तोडकर मगर की ओर फेंका। मगर ने फल खाया बहुत रसीला और स्वादिष्ट वह फटाफट फल खा गया और आशा से फिर बंदर की ओर देखने लगा।
 
बंदर दिल का अच्छा था। उसने सोचा कि पेड पर इतने फल हैं, इस बेचारे को भी उनका स्वाद चखना चाहिए। उसने एक फल तोडकर मगर की ओर फेंका। मगर ने फल खाया बहुत रसीला और स्वादिष्ट वह फटाफट फल खा गया और आशा से फिर बंदर की ओर देखने लगा।
 
 
बंदर ने मुस्कराकर और फल फेकें। मगर सारे फल खा गया और अंत में उसने संतोष-भरी डकार ली और पेट थपथपाकर बोला 'धन्यवाद, बंदर भाई। खूब छक गया, अब चलता हूं।' बंदर ने उसे दूसरे दिन भी आने का न्यौता दे दिया।
 
बंदर ने मुस्कराकर और फल फेकें। मगर सारे फल खा गया और अंत में उसने संतोष-भरी डकार ली और पेट थपथपाकर बोला 'धन्यवाद, बंदर भाई। खूब छक गया, अब चलता हूं।' बंदर ने उसे दूसरे दिन भी आने का न्यौता दे दिया।
 
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मगर दूसरे दिन आया। बंदर ने उसे फिर फल खिलाए। इसी प्रकार बंदर और मगर में दोस्ती जमने लगी। मगर रोज आता दोनों फल खाते-खिलाते, गपशप मारते। बंदर तो वैसे भी अकेला रहता था। उसे मगर से दोस्ती करके बहुत प्रसन्नता हुई। उसका अकेलापन दूर हुआ। एक साथी मिला। दो मिलकर मौज-मस्ती करें तो दुगना आनन्द आता है। एक दिन बातों-बातों में पता लगा कि मगर का घर नदी के दूसरे तट पर है, जहां उसकी पत्नी भी रहती हैं। यह जानते ही बंदर ने उलाहन दिया 'मगर भाई, तुमने इतने दिन मुझे भाभीजी के बारे में नहीं बताया मैं अपनी भाभीजी के लिए रसीले फल देता। तुम भी अजीब निकट्टू हो अपना पेट भरते रहे और मेरी भाभी के लिए कभी फल लेकर नहीं गए।
मगर दूसरे दिन आया। बंदर ने उसे फिर फल खिलाए। इसी प्रकार बंदर और मगर में दोस्ती जमने लगी। मगर रोज आता दोनों फल खाते-खिलाते, गपशप मारते। बंदर तो वैसे भी अकेला रहता था। उसे मगर से दोस्ती करके बहुत प्रसन्नता हुई। उसका अकेलापन दूर हुआ। एक साथी मिला। दो मिलकर मौज-मस्ती करें तो दुगना आनन्द आता हैं। एक दिन बातों-बातों में पता लगा कि मगर का घर नदी के शूसरे तट पर हैं, जहां उसकी पत्नी भी रहती हैं। यह जानते ही बंदर ने उलाहन दिया 'मगर भाई, तुमने इतने दिन मुझे भाभीजी के बारे में नहीं बताया मैं अपनी भाभीजी के लिए रसीले फल देता। तुम भी अजीब निकट्टू हो अपना पेट भरते रहे और मेरी भाभी के लिए कभी फल लेकर नहीं गए।
 
 
 
 
उस शाम बंदर ने मगर को जाते समय ढेर सारे फल चुन-चुनकर दिए। अपने घर पहुंचकर मगरमच्छ ने वह फल अपनी पत्नी मगरमच्छनी को दिए। मगरमच्छनी ने वह स्वाद भरे फल खाए और बहुत संतुष्ट हुई। मगर ने उसे अपने मित्र के बारे में बताया। पत्नी को विश्वास न हुआ। वह बोली 'जाओ, मुझे बना रहे हो। बंदर की कभी किसी मगर से दोस्ती हुई हैं?'
 
उस शाम बंदर ने मगर को जाते समय ढेर सारे फल चुन-चुनकर दिए। अपने घर पहुंचकर मगरमच्छ ने वह फल अपनी पत्नी मगरमच्छनी को दिए। मगरमच्छनी ने वह स्वाद भरे फल खाए और बहुत संतुष्ट हुई। मगर ने उसे अपने मित्र के बारे में बताया। पत्नी को विश्वास न हुआ। वह बोली 'जाओ, मुझे बना रहे हो। बंदर की कभी किसी मगर से दोस्ती हुई हैं?'
 
 
मगर ने यकीन दिलाया 'यकीन करो भाग्यवान! वर्ना सोचो यह फल मुझे कहां से मिले? मैं तो पेड पर चढने से रहा।'
 
मगर ने यकीन दिलाया 'यकीन करो भाग्यवान! वर्ना सोचो यह फल मुझे कहां से मिले? मैं तो पेड पर चढने से रहा।'
 
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मगरनी को यकीन करना पडा। उस दिन के बाद मगरनी को रोज बंदर द्वारा भेजे फल खाने को मिलने लगे। उसे फल खाने को मिलते यह तो ठीक था, पर मगर का बंदर से दोस्ती के चक्कर में दिन भर दूर रहना उसे खलना लगा। ख़ाली बैठे-बैठे ऊंच-नीच सोचने लगी।
मगरनी को यकीन करना पडा। उस दिन के बाद मगरनी को रोज बंदर द्वारा भेजे फल खाने को मिलने लगे। उसे फल खाने को मिलते यह तो ठीक था, पर मगर का बंदर से दोस्ती के चक्कर में दिन भर दूर रहना उसे खलना लगा। खाली बैठे-बैठे ऊंच-नीच सोचने लगी।
 
 
 
 
वह स्वभाव से दुष्टा थी। एक दिन उसका दिल मचल उठा 'जो बंदर इतने रसीले फल खाता हैं, उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा?' अब वह चालें सोचने लगी। एक दिन मगर शाम को घर आया तो उसने मगरनी को कराहते पाया। पूछने पर मगरनी बोली 'मुझे एक खतरनाक बीमारी हो गई है। वैद्यजी ने कहा हैं कि यह केवल बंदर का कलेजा खाने से ही ठीक होगी। तुम अपने उस मित्र बंदर का कलेजा ला दो।'
 
वह स्वभाव से दुष्टा थी। एक दिन उसका दिल मचल उठा 'जो बंदर इतने रसीले फल खाता हैं, उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा?' अब वह चालें सोचने लगी। एक दिन मगर शाम को घर आया तो उसने मगरनी को कराहते पाया। पूछने पर मगरनी बोली 'मुझे एक खतरनाक बीमारी हो गई है। वैद्यजी ने कहा हैं कि यह केवल बंदर का कलेजा खाने से ही ठीक होगी। तुम अपने उस मित्र बंदर का कलेजा ला दो।'
 
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मगर सन्न रह गया। वह अपने मित्र को कैसे मार सकता हैं? न-न, यह नहीं हो सकता। मगर को इनकार में सिर हिलाते देखकर मगरनी ज़ोर से हाय-हाय करने लगी 'तो फिर मैं मर जाऊंगी। तुम्हारी बला से और मेरे पेट में तुम्हारे बच्चे हैं। वे भी मरेंगे। हम सब मर जाएंगे। तुम अपने बंदर दोस्त के साथ खूब फल खाते रहना। हाय रे, मर गई… मैं मर गई।'
मगर सन्न रह गया। वह अपने मित्र को कैसे मार सकाता हैं? न-न, यह नहीं हो सकता। मगर को इनकार में सिर हिलाते देखकर मगरनी जोर से हाय-हाय करने लगी 'तो फिर मैं मर जाऊंगी। तुम्हारी बला से और मेरे पेट में तुम्हारे बच्चे हैं। वे भी मरेंगे। हम सब मर जाएंगे। तुम अपने बंदर दोस्त के साथ खूब फल खाते रहना। हाय रे, मर गई… मैं मर गई।'
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पत्नी की बात सुनकर मगर सिहर उठा। बीवी-बच्चों के मोह ने उसकी अक़्ल पर पर्दा डाल दिया। वह अपने दोस्त से विश्वासघात करने, उसकी जान लेने चल पडा।
 
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मगरमच्छ को सुबह-सुबह आते देखकर बंदर चकित हुआ। कारण पूछने पर मगर बोला 'बंदर भाई, तुम्हारी भाभी बहुत नाराज़ हैं। कह रही हैं कि देवरजी रोज मेरे लिए रसीले फल भेजते हैं, पर कभी दर्शन नहीं दिए। सेवा का मौक़ा नहीं दिया। आज तुम न आए तो देवर-भाभी का रिश्ता खत्म। तुम्हारी भाभी ने मुझे भी सुबह ही भगा दिया। अगर तुम्हें साथ न ले जा पाया तो वह मुझे भी घर में नहीं घुसने देगी।'
पत्नी की बात सुनकर मगर सिहर उठा। बीवी-बच्चों के मोह ने उसकी अक्ल पर पर्दा डाल दिया। वह अपने दोस्त से विश्वासघात करने, उसकी जान लेने चल पडा।
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बंदर खुश भी हुआ और चकराया भी 'मगर मैं आऊं कैसे? मित्र, तुम तो जानते हो कि मुझे तैरना नहीं आता।' मगर बोला 'उसकी चिन्ता मत करो, मेरी पीठ पर बैठो। मैं ले चलूंगा न तुम्हें।'
 
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बंदर मगर की पीठ पर बैठ गया। कुछ दूर नदी में जाने पर ही मगर पानी के अंदर गोता लगाने लगा। बंदर चिल्लाया 'यह क्या कर रहे हो? मैं डूब जाऊंगा।'
मगरमच्छ को सुबह-सुबह आते देखकर बंदर चकित हुआ। कारण पूछने पर मगर बोला 'बंदर भाई, तुम्हारी भाभी बहुत नाराज हैं। कह रही हैं कि देवरजी रोज मेरे लिए रसीले फल भेजते हैं, पर कभी दर्शन नहीं दिए। सेवा का मौका नहीं दिया। आज तुम न आए तो देवर-भाभी का रिश्ता खत्म। तुम्हारी भाभी ने मुझे भी सुबह ही भगा दिया। अगर तुम्हें साथ न ले जा पाया तो वह मुझे भी घर में नहीं घुसने देगी।'
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मगर हंसा 'तुम्हें तो मरना है ही।'
 
 
बंदर खुश भी हुआ और चकराया भी 'मगर मैं आऊं कैसे? मित्र, तुम तो जानते हो कि मुझे तैरना नहें आता।' मगर बोला 'उसकी चिन्ता मत करो, मेरी पीठ पर बैठो। मैं ले चलूंगा न तुम्हें।'
 
 
 
बंदर मगर की पीठ पर बैठ गया। कुच दूर नदी में जाने पर ही मगर पानी के अंदर गोता लगाने लगा। बंदर चिल्लाया 'यह क्या कर रहे हो? मैं डूब जाऊंगा।'
 
 
 
मगर हंसा 'तुम्हें तो मरना हैं ही।'
 
 
 
 
उसकी बात सुनकर बंदर का माथा ठनका, उसने पूछा 'क्या मतलब?'
 
उसकी बात सुनकर बंदर का माथा ठनका, उसने पूछा 'क्या मतलब?'
 
 
मगर ने बंदर को कलेजे वाली सारी बात बता दी। बंदर हक्का-बक्का रह गया। उसे अपने मित्र से ऐसी बेइमानी की आशा नहीं थी।
 
मगर ने बंदर को कलेजे वाली सारी बात बता दी। बंदर हक्का-बक्का रह गया। उसे अपने मित्र से ऐसी बेइमानी की आशा नहीं थी।
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बंदर चतुर था। तुरंत अपने आप को संभालकर बोला 'वाह, तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं अपनी भाभी के लिए एक तो क्या सौ कलेजे दे दूं। पर बात यह हैं कि मैं अपना कलेजा पेड पर ही छोड आया हूं। तुमने पहले ही सारी बात मुझे न बताकर बहुत ग़लती कर दी है। अब जल्दी से वापिस चलो ताकि हम पेड पर से कलेजा लेते चलें। देर हो गई तो भाभी मर जाएगी। फिर मैं अपने आपको कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।'
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अक़्ल का मोटा मगरमच्छ उसकी बात सच मानकर बंदर को लेकर वापस लौट चला। जैसे ही वे पेड के पास पहुंचे, बंदर लपककर पेड की डाली पर चढ गया और बोला 'मूर्ख, कभी कोई अपना कलेजा बाहर छोडता हैं? दूसरे का कलेजा लेने के लिए अपनी खोपडी में भी भेजा होना चाहिए। अब जा और अपनी दुष्ट बीवी के साथ बैठकर अपने कर्मों को रो।' ऐसा कहकर बंदर तो पेड की टहनियों में लुप्त हो गया और अक़्ल का दुश्मन मगरमच्छ अपना माथा पीटता हुआ लौट गया।
  
बंदर चतुर था। तुरंत अपने आप को संभालकर बोला 'वाह, तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं अपनी भाभी के लिए एक तो क्या सौ कलेजे दे दूं। पर बात यह हैं कि मैं अपना कलेजा पेड पर ही छोड आया हूं। तुमने पहले ही सारी बात मुझे न बताकर बहुत गलती कर दी हैं। अब जल्दी से वापिस चलो ताकि हम पेड पर से कलेजा लेते चलें। देर हो गई तो भाभी मर जाएगी। फिर मैं अपने आपको कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।'
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;सीख- 1. दूसरों को धोखा देने वाला स्वयं धोखा खा जाता है। 2. संकट के समय बुद्धि से काम लेना चाहिए।
 
 
अक्ल का मोटा मगरमच्छ उसकी बात सच मानकर बंदर को लेकर वापस लौट चला। जैसे ही वे पेड के पास पहुंचे, बंदर लपककर पेड की डाली पर चढ गया और बोला 'मूर्ख, कभी कोई अपना कलेजा बाहर छोडता हैं? दूसरे का कलेजा लेने के लिए अपनी खोपडी में भी भेजा होना चाहिए। अब जा और अपनी दुष्ट बीवी के साथ बैठकर अपने कर्मों को रो।' ऐसा कहकर बंदर तो पेड की टहनियों में लुप्त हो गया और अक्ल का दुश्मन मगरमच्छ अपना माथा पीटता हुआ लौट गया।
 
 
 
'''सीखः''' -- 1. दूसरों को धोखा देने वाला स्वयं धोखा खा जाता हैं। 2. संकट के समय बुद्धि से काम लेना चाहिए।
 
 
 
 
 
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{पंचतंत्र की कहानियाँ}}
 
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[[Category:कथा साहित्य]][[Category:पंचतंत्र की कहानियाँ]][[Category:कहानी]][[Category:साहित्य कोश]]
 
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[[Category:पंचतंत्र की कहानियाँ]][[Category:कहानी]][[Category:साहित्य कोश]]
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14:36, 31 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

बंदर का कलेजा पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।

कहानी

          एक नदी किनारे हरा-भरा विशाल पेड था। उस पर खूब स्वादिष्ट फल उगे रहते। उसी पेड पर एक बंदर रहता था। बडा मस्त कलंदर। जी भरकर फल खाता, डालियों पर झूलता और कूदता-फांदता रहता। उस बंदर के जीवन में एक ही कमी थी कि उसका अपना कोई नहीं था। मां-बाप के बारे में उसे कुछ याद नहीं था न उसके कोई भाई था और न कोई बहन, जिनके साथ वह खेलता। उस क्षेत्र में कोई और बंदर भी नहीं था जिससे वह दोस्ती गांठ पाता। एक दिन वह एक डाल पर बैठा नदी का नज़ारा देख रहा था कि उसे एक लंबा विशाल जीव उसी पेड की ओर तैरकर आता नजर आया। बंदर ने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा था। उसने उस विचित्र जीव से पूछा 'अरे भाई, तुम क्या चीज़ हो?'
विशाल जीव ने उत्तर दिया 'मैं एक मगरमच्छ हूं। नदी में इस वर्ष मछलियों का अकाल पड गया हैं। बस, भोजन की तलाश में घूमता-घूमता इधर आ निकला हूं।'
बंदर दिल का अच्छा था। उसने सोचा कि पेड पर इतने फल हैं, इस बेचारे को भी उनका स्वाद चखना चाहिए। उसने एक फल तोडकर मगर की ओर फेंका। मगर ने फल खाया बहुत रसीला और स्वादिष्ट वह फटाफट फल खा गया और आशा से फिर बंदर की ओर देखने लगा।
बंदर ने मुस्कराकर और फल फेकें। मगर सारे फल खा गया और अंत में उसने संतोष-भरी डकार ली और पेट थपथपाकर बोला 'धन्यवाद, बंदर भाई। खूब छक गया, अब चलता हूं।' बंदर ने उसे दूसरे दिन भी आने का न्यौता दे दिया।
मगर दूसरे दिन आया। बंदर ने उसे फिर फल खिलाए। इसी प्रकार बंदर और मगर में दोस्ती जमने लगी। मगर रोज आता दोनों फल खाते-खिलाते, गपशप मारते। बंदर तो वैसे भी अकेला रहता था। उसे मगर से दोस्ती करके बहुत प्रसन्नता हुई। उसका अकेलापन दूर हुआ। एक साथी मिला। दो मिलकर मौज-मस्ती करें तो दुगना आनन्द आता है। एक दिन बातों-बातों में पता लगा कि मगर का घर नदी के दूसरे तट पर है, जहां उसकी पत्नी भी रहती हैं। यह जानते ही बंदर ने उलाहन दिया 'मगर भाई, तुमने इतने दिन मुझे भाभीजी के बारे में नहीं बताया मैं अपनी भाभीजी के लिए रसीले फल देता। तुम भी अजीब निकट्टू हो अपना पेट भरते रहे और मेरी भाभी के लिए कभी फल लेकर नहीं गए।
उस शाम बंदर ने मगर को जाते समय ढेर सारे फल चुन-चुनकर दिए। अपने घर पहुंचकर मगरमच्छ ने वह फल अपनी पत्नी मगरमच्छनी को दिए। मगरमच्छनी ने वह स्वाद भरे फल खाए और बहुत संतुष्ट हुई। मगर ने उसे अपने मित्र के बारे में बताया। पत्नी को विश्वास न हुआ। वह बोली 'जाओ, मुझे बना रहे हो। बंदर की कभी किसी मगर से दोस्ती हुई हैं?'
मगर ने यकीन दिलाया 'यकीन करो भाग्यवान! वर्ना सोचो यह फल मुझे कहां से मिले? मैं तो पेड पर चढने से रहा।'
मगरनी को यकीन करना पडा। उस दिन के बाद मगरनी को रोज बंदर द्वारा भेजे फल खाने को मिलने लगे। उसे फल खाने को मिलते यह तो ठीक था, पर मगर का बंदर से दोस्ती के चक्कर में दिन भर दूर रहना उसे खलना लगा। ख़ाली बैठे-बैठे ऊंच-नीच सोचने लगी।
वह स्वभाव से दुष्टा थी। एक दिन उसका दिल मचल उठा 'जो बंदर इतने रसीले फल खाता हैं, उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा?' अब वह चालें सोचने लगी। एक दिन मगर शाम को घर आया तो उसने मगरनी को कराहते पाया। पूछने पर मगरनी बोली 'मुझे एक खतरनाक बीमारी हो गई है। वैद्यजी ने कहा हैं कि यह केवल बंदर का कलेजा खाने से ही ठीक होगी। तुम अपने उस मित्र बंदर का कलेजा ला दो।'
मगर सन्न रह गया। वह अपने मित्र को कैसे मार सकता हैं? न-न, यह नहीं हो सकता। मगर को इनकार में सिर हिलाते देखकर मगरनी ज़ोर से हाय-हाय करने लगी 'तो फिर मैं मर जाऊंगी। तुम्हारी बला से और मेरे पेट में तुम्हारे बच्चे हैं। वे भी मरेंगे। हम सब मर जाएंगे। तुम अपने बंदर दोस्त के साथ खूब फल खाते रहना। हाय रे, मर गई… मैं मर गई।'
पत्नी की बात सुनकर मगर सिहर उठा। बीवी-बच्चों के मोह ने उसकी अक़्ल पर पर्दा डाल दिया। वह अपने दोस्त से विश्वासघात करने, उसकी जान लेने चल पडा।
मगरमच्छ को सुबह-सुबह आते देखकर बंदर चकित हुआ। कारण पूछने पर मगर बोला 'बंदर भाई, तुम्हारी भाभी बहुत नाराज़ हैं। कह रही हैं कि देवरजी रोज मेरे लिए रसीले फल भेजते हैं, पर कभी दर्शन नहीं दिए। सेवा का मौक़ा नहीं दिया। आज तुम न आए तो देवर-भाभी का रिश्ता खत्म। तुम्हारी भाभी ने मुझे भी सुबह ही भगा दिया। अगर तुम्हें साथ न ले जा पाया तो वह मुझे भी घर में नहीं घुसने देगी।'
बंदर खुश भी हुआ और चकराया भी 'मगर मैं आऊं कैसे? मित्र, तुम तो जानते हो कि मुझे तैरना नहीं आता।' मगर बोला 'उसकी चिन्ता मत करो, मेरी पीठ पर बैठो। मैं ले चलूंगा न तुम्हें।'
बंदर मगर की पीठ पर बैठ गया। कुछ दूर नदी में जाने पर ही मगर पानी के अंदर गोता लगाने लगा। बंदर चिल्लाया 'यह क्या कर रहे हो? मैं डूब जाऊंगा।'
मगर हंसा 'तुम्हें तो मरना है ही।'
उसकी बात सुनकर बंदर का माथा ठनका, उसने पूछा 'क्या मतलब?'
मगर ने बंदर को कलेजे वाली सारी बात बता दी। बंदर हक्का-बक्का रह गया। उसे अपने मित्र से ऐसी बेइमानी की आशा नहीं थी।
बंदर चतुर था। तुरंत अपने आप को संभालकर बोला 'वाह, तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं अपनी भाभी के लिए एक तो क्या सौ कलेजे दे दूं। पर बात यह हैं कि मैं अपना कलेजा पेड पर ही छोड आया हूं। तुमने पहले ही सारी बात मुझे न बताकर बहुत ग़लती कर दी है। अब जल्दी से वापिस चलो ताकि हम पेड पर से कलेजा लेते चलें। देर हो गई तो भाभी मर जाएगी। फिर मैं अपने आपको कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।'
अक़्ल का मोटा मगरमच्छ उसकी बात सच मानकर बंदर को लेकर वापस लौट चला। जैसे ही वे पेड के पास पहुंचे, बंदर लपककर पेड की डाली पर चढ गया और बोला 'मूर्ख, कभी कोई अपना कलेजा बाहर छोडता हैं? दूसरे का कलेजा लेने के लिए अपनी खोपडी में भी भेजा होना चाहिए। अब जा और अपनी दुष्ट बीवी के साथ बैठकर अपने कर्मों को रो।' ऐसा कहकर बंदर तो पेड की टहनियों में लुप्त हो गया और अक़्ल का दुश्मन मगरमच्छ अपना माथा पीटता हुआ लौट गया।

सीख- 1. दूसरों को धोखा देने वाला स्वयं धोखा खा जाता है। 2. संकट के समय बुद्धि से काम लेना चाहिए।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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