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'''फ़िरदौसी''' (अंग्रेज़ी: ''Ferdowsi'', पूरा नाम: '''हकीम अबुल क़ासिम फ़िरदौसी तुसी''', जन्म: 940 ई. - मृत्यु: 1020 ई.) एक प्रसिद्ध [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] [[कवि]] थे। फ़िरदौसी ने [[शाहनामा]] की रचना की जो बाद में फ़ारस ([[ईरान]]) की राष्ट्रीय [[महाकाव्य]] बन गई। इसमें उन्होंने सातवीं सदी में फ़ारस पर अरबी फ़तह के पहले के ईरान के बारे में लिखा है।
 
'''फ़िरदौसी''' (अंग्रेज़ी: ''Ferdowsi'', पूरा नाम: '''हकीम अबुल क़ासिम फ़िरदौसी तुसी''', जन्म: 940 ई. - मृत्यु: 1020 ई.) एक प्रसिद्ध [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] [[कवि]] थे। फ़िरदौसी ने [[शाहनामा]] की रचना की जो बाद में फ़ारस ([[ईरान]]) की राष्ट्रीय [[महाकाव्य]] बन गई। इसमें उन्होंने सातवीं सदी में फ़ारस पर अरबी फ़तह के पहले के ईरान के बारे में लिखा है।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
फ़िरदौसी का पूरा नाम 'हकीम अबुल क़ासिम फ़िरदौसी तुसी' था। ये [[ईरान]] के तूस में ही पैदा हुए थे। उनका महाकाव्य '[[शाहनामा]]' है जिसे लिखने में उन्होंने पूरी उम्र लगा दी थी। 'शाहनामा' [[खुरासान]] के शहज़ादे समानीद के लिए लिखा गया था। यह वह ज़माना था जब सातवीं शताब्दी में अरबों की ईरान पर विजय के बाद [[फ़ारसी भाषा]] और [[संस्कृति]] पर अरब प्रभुत्व दिखाई पड़ने लगा था। फिरदौसी के जीवनकाल में ही उनके संरक्षक शहजादे समानीद को सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] ने हरा दिया था और खुरासान का शासक बन गया था। महमूद ग़ज़नवी और फिरदौसी को लेकर कुछ रोचक कहानियां हैं जिन्हें काल्पनिक भी कहा जा सकता है।<br />
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फ़िरदौसी का पूरा नाम 'हकीम अबुल क़ासिम फ़िरदौसी तुसी' था। ये [[ईरान]] के तूस में ही पैदा हुए थे। उनका महाकाव्य '[[शाहनामा]]' है जिसे लिखने में उन्होंने पूरी उम्र लगा दी थी। 'शाहनामा' [[खुरासान]] के शहज़ादे समानीद के लिए लिखा गया था। यह वह ज़माना था जब सातवीं शताब्दी में अरबों की ईरान पर विजय के बाद [[फ़ारसी भाषा]] और [[संस्कृति]] पर अरब प्रभुत्व दिखाई पड़ने लगा था। फ़िरदौसी के जीवनकाल में ही उनके संरक्षक शहजादे समानीद को सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] ने हरा दिया था और खुरासान का शासक बन गया था। महमूद ग़ज़नवी और फ़िरदौसी को लेकर कुछ रोचक कहानियां हैं जिन्हें काल्पनिक भी कहा जा सकता है।<br />
कहा जाता है कि [[महमूद ग़ज़नवी]] ने फिरदौसी को यह वचन दिया था कि वह 'शाहनामा' के हर शब्द के लिए एक [[दीनार]] देगा। वर्षों की मेहनत के बाद जब 'शाहनामा' तैयार हो गया और फिरदौसी उसे लेकर महमूद ग़ज़नवी के दरबार में गया तो सम्राट ने उसे प्रत्येक शब्द के लिए एक दीनार नहीं बल्कि एक दिरहम का भुगतान करा दिया। कहा जाता है इस पर नाराज़ होकर फिरदौसी लौट गया और उसने एक दिरहम भी नहीं लिया। यह वायदा ख़िलाफ़ी कुछ ऐसी थी जैसे किसी [[कवि]] के प्रति शब्द एक [[रुपया|रुपये]] देने का वचन देकर प्रति शब्द एक पैसा दिया जाये। फिरदौसी ने गुस्से में आकर महमूद ग़ज़नवी के ख़िलाफ़ कुछ पंक्तियां लिखी। वे पंक्तियां इतनी प्रभावशाली थी कि पूरे साम्राज्य में फैल गयीं। कुछ साल बाद महमूद ग़ज़नवी से उसके विश्वासपात्र मंत्रियों ने निवेदन किया कि फिरदौसी को उसी दर पर भुगतान कर दिया जाये जो तय की गयी थी। सम्राट के कारण पूछने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोग साम्राज्य के जिस कोने में जाते हैं हमें वे पंक्तियां सुनने को मिलती हैं जो फिरदौसी ने आपके विरुद्ध लिखी हैं और हमारा सिर्फ शर्म से झुक जाता है। उसे निर्धारित दर पर पैसा दे दिया जायेगा तो हमें बड़ा नैतिक बल मिलेगा।' सम्राट ने आदेश दे दिया। दीनारों से भरी गाड़ी जब फिरदौसी के घर पहुंची तो घर के अंदर से फिरदौसी का जनाज़ा निकल रहा था। पूरी उम्र ग़रीबी, तंगी और मुफ़लिसी में काटने के बाद फिरदौसी मर चुका था। कहते हैं कि फिरदौसी की एकमात्र संतान उसकी लड़की ने भी यह धन लेने से इंकार कर दिया था। इस तरह सम्राट कवि का कर्ज़दार रहा और आज भी है। शायद यही वजह है कि आज फिरदौसी का शाहनामा जितना प्रसिद्ध है उतनी ही या उससे ज्यादा प्रसिद्ध वे पंक्तियां है जो फिरदौसी ने महमूद ग़ज़नवी की आलोचना करते हुए लिखी थीं।<ref>{{cite web |url=http://www.rachanakar.org/2007/06/blog-post_07.html |title=असग़र वजाहत का यात्रा संस्मरण- अंतिम किश्त (कवि का कर्ज़ा) |accessmonthday=4 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=रचनाकार |language=हिंदी}}</ref>
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कहा जाता है कि [[महमूद ग़ज़नवी]] ने फ़िरदौसी को यह वचन दिया था कि वह 'शाहनामा' के हर शब्द के लिए एक [[दीनार]] देगा। वर्षों की मेहनत के बाद जब 'शाहनामा' तैयार हो गया और फ़िरदौसी उसे लेकर महमूद ग़ज़नवी के दरबार में गया तो सम्राट ने उसे प्रत्येक शब्द के लिए एक दीनार नहीं बल्कि एक दिरहम का भुगतान करा दिया। कहा जाता है इस पर नाराज़ होकर फ़िरदौसी लौट गया और उसने एक दिरहम भी नहीं लिया। यह वायदा ख़िलाफ़ी कुछ ऐसी थी जैसे किसी [[कवि]] के प्रति शब्द एक [[रुपया|रुपये]] देने का वचन देकर प्रति शब्द एक पैसा दिया जाये। फ़िरदौसी ने गुस्से में आकर महमूद ग़ज़नवी के ख़िलाफ़ कुछ पंक्तियां लिखी। वे पंक्तियां इतनी प्रभावशाली थी कि पूरे साम्राज्य में फैल गयीं। कुछ साल बाद महमूद ग़ज़नवी से उसके विश्वासपात्र मंत्रियों ने निवेदन किया कि फ़िरदौसी को उसी दर पर भुगतान कर दिया जाये जो तय की गयी थी। सम्राट के कारण पूछने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोग साम्राज्य के जिस कोने में जाते हैं हमें वे पंक्तियां सुनने को मिलती हैं जो फ़िरदौसी ने आपके विरुद्ध लिखी हैं और हमारा सिर्फ शर्म से झुक जाता है। उसे निर्धारित दर पर पैसा दे दिया जायेगा तो हमें बड़ा नैतिक बल मिलेगा।' सम्राट ने आदेश दे दिया। दीनारों से भरी गाड़ी जब फ़िरदौसी के घर पहुंची तो घर के अंदर से फ़िरदौसी का जनाज़ा निकल रहा था। पूरी उम्र ग़रीबी, तंगी और मुफ़लिसी में काटने के बाद फ़िरदौसी मर चुका था। कहते हैं कि फ़िरदौसी की एकमात्र संतान उसकी लड़की ने भी यह धन लेने से इंकार कर दिया था। इस तरह सम्राट कवि का कर्ज़दार रहा और आज भी है। शायद यही वजह है कि आज फ़िरदौसी का शाहनामा जितना प्रसिद्ध है उतनी ही या उससे ज्यादा प्रसिद्ध वे पंक्तियां है जो फ़िरदौसी ने महमूद ग़ज़नवी की आलोचना करते हुए लिखी थीं।<ref>{{cite web |url=http://www.rachanakar.org/2007/06/blog-post_07.html |title=असग़र वजाहत का यात्रा संस्मरण- अंतिम किश्त (कवि का कर्ज़ा) |accessmonthday=4 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=रचनाकार |language=हिंदी}}</ref>
 
==फ़िरदौसी का 'शाहनामा'==
 
==फ़िरदौसी का 'शाहनामा'==
 
{{Main|शाहनामा}}
 
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फिरदौसी का 'शाहनामा' दरअसल [[ईरान]] का इतिहास ही नहीं ईरानी अस्मिता की पहचान है। उसमें प्राचीन ईरान की उपलब्धियों का बखान है। सम्राटों का इतिहास है। प्राचीन फ़ारसी ग्रंथों को नया रूप देकर उनको शामिल किया गया है। मिथक और इतिहास के सम्मिश्रण से एक अद्भुत प्रभाव उत्पन्न हुआ है। प्रेम, विद्रोह, वीरता, दुष्टता, मानवीयता, युद्ध, साहस के ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं जिन्होंने 'शाहनामा' को ईरानी साहित्य की अमर कृति बना दिया है। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी तरह से जितनी बार छपा है उतना और कोई पुस्तक नहीं छपी है। फिरदौसी ने रुस्तम और सोहराब जैसे पात्र निर्मित किए हैं जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं।
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फ़िरदौसी का 'शाहनामा' दरअसल [[ईरान]] का इतिहास ही नहीं ईरानी अस्मिता की पहचान है। उसमें प्राचीन ईरान की उपलब्धियों का बखान है। सम्राटों का इतिहास है। प्राचीन फ़ारसी ग्रंथों को नया रूप देकर उनको शामिल किया गया है। मिथक और इतिहास के सम्मिश्रण से एक अद्भुत प्रभाव उत्पन्न हुआ है। प्रेम, विद्रोह, वीरता, दुष्टता, मानवीयता, युद्ध, साहस के ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं जिन्होंने 'शाहनामा' को ईरानी साहित्य की अमर कृति बना दिया है। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी तरह से जितनी बार छपा है उतना और कोई पुस्तक नहीं छपी है। फ़िरदौसी ने रुस्तम और सोहराब जैसे पात्र निर्मित किए हैं जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं।
 
==फ़िरदौसी पुरस्कार==
 
==फ़िरदौसी पुरस्कार==
 
[[ईरान]] के राष्ट्रीय पुस्तकालय के प्रमुख के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ की शैक्षिक व सांस्कृतिक संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय फ़िरदौसी पुरस्कार के आयोजन पर सहमति व्यक्त कर दी है। राष्ट्रीय पुस्तकालय के प्रमुख रज़ा सालेही अमीरी ने मेहर न्यूज़ एजेन्सी से बात करते हुए कहा कि [[यूनेस्को]] ने अंतर्राष्ट्रीय फ़िरदौसी पुरस्कार के आयोजन पर सहमति व्यक्त कर दी है। उनका कहना था कि शीघ्र ही इस मामले की समीक्षा के लिए ईरान और यूनेस्को के विशषज्ञों के स्तर के प्रतिनिधिमंडल की घोषणा की जाएगी। उनका कहना था कि अंतर्राष्ट्रीय फ़िरदौसी पुरस्कार, यूनेस्को की ओर से प्रतिवर्ष ईरान और ईरानी संस्कृति के बारे में शोध करने वाले कुछ प्रसिद्ध लोगों को दिया जाएगा।<ref>{{cite web |url=http://hindi.irib.ir/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0/item/60564-%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%A6%E0%A5%80 |title=यूनेस्को ने फ़िरदौसी पुरस्कार के आयोजन को स्वीकृति दी  |accessmonthday=4 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=iran hindi radio |language=हिंदी}}</ref>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.rachanakar.org/2007/03/asghar-wazahat-ka-iraan-yatra-sansmaran.html असग़र वजाहत का यात्रा संस्मरण : चलते तो अच्छा था]
 
*[http://www.rachanakar.org/2007/03/asghar-wazahat-ka-iraan-yatra-sansmaran.html असग़र वजाहत का यात्रा संस्मरण : चलते तो अच्छा था]
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*[http://www.hindisamay.com/contentDetail.aspx?id=848&pageno=1 शाहनामा - फ़िरदौसी ]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{भारत के कवि}}
 
{{भारत के कवि}}

08:22, 4 दिसम्बर 2014 का अवतरण

फ़िरदौसी (अंग्रेज़ी: Ferdowsi, पूरा नाम: हकीम अबुल क़ासिम फ़िरदौसी तुसी, जन्म: 940 ई. - मृत्यु: 1020 ई.) एक प्रसिद्ध फ़ारसी कवि थे। फ़िरदौसी ने शाहनामा की रचना की जो बाद में फ़ारस (ईरान) की राष्ट्रीय महाकाव्य बन गई। इसमें उन्होंने सातवीं सदी में फ़ारस पर अरबी फ़तह के पहले के ईरान के बारे में लिखा है।

जीवन परिचय

फ़िरदौसी का पूरा नाम 'हकीम अबुल क़ासिम फ़िरदौसी तुसी' था। ये ईरान के तूस में ही पैदा हुए थे। उनका महाकाव्य 'शाहनामा' है जिसे लिखने में उन्होंने पूरी उम्र लगा दी थी। 'शाहनामा' खुरासान के शहज़ादे समानीद के लिए लिखा गया था। यह वह ज़माना था जब सातवीं शताब्दी में अरबों की ईरान पर विजय के बाद फ़ारसी भाषा और संस्कृति पर अरब प्रभुत्व दिखाई पड़ने लगा था। फ़िरदौसी के जीवनकाल में ही उनके संरक्षक शहजादे समानीद को सुल्तान महमूद ग़ज़नवी ने हरा दिया था और खुरासान का शासक बन गया था। महमूद ग़ज़नवी और फ़िरदौसी को लेकर कुछ रोचक कहानियां हैं जिन्हें काल्पनिक भी कहा जा सकता है।
कहा जाता है कि महमूद ग़ज़नवी ने फ़िरदौसी को यह वचन दिया था कि वह 'शाहनामा' के हर शब्द के लिए एक दीनार देगा। वर्षों की मेहनत के बाद जब 'शाहनामा' तैयार हो गया और फ़िरदौसी उसे लेकर महमूद ग़ज़नवी के दरबार में गया तो सम्राट ने उसे प्रत्येक शब्द के लिए एक दीनार नहीं बल्कि एक दिरहम का भुगतान करा दिया। कहा जाता है इस पर नाराज़ होकर फ़िरदौसी लौट गया और उसने एक दिरहम भी नहीं लिया। यह वायदा ख़िलाफ़ी कुछ ऐसी थी जैसे किसी कवि के प्रति शब्द एक रुपये देने का वचन देकर प्रति शब्द एक पैसा दिया जाये। फ़िरदौसी ने गुस्से में आकर महमूद ग़ज़नवी के ख़िलाफ़ कुछ पंक्तियां लिखी। वे पंक्तियां इतनी प्रभावशाली थी कि पूरे साम्राज्य में फैल गयीं। कुछ साल बाद महमूद ग़ज़नवी से उसके विश्वासपात्र मंत्रियों ने निवेदन किया कि फ़िरदौसी को उसी दर पर भुगतान कर दिया जाये जो तय की गयी थी। सम्राट के कारण पूछने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोग साम्राज्य के जिस कोने में जाते हैं हमें वे पंक्तियां सुनने को मिलती हैं जो फ़िरदौसी ने आपके विरुद्ध लिखी हैं और हमारा सिर्फ शर्म से झुक जाता है। उसे निर्धारित दर पर पैसा दे दिया जायेगा तो हमें बड़ा नैतिक बल मिलेगा।' सम्राट ने आदेश दे दिया। दीनारों से भरी गाड़ी जब फ़िरदौसी के घर पहुंची तो घर के अंदर से फ़िरदौसी का जनाज़ा निकल रहा था। पूरी उम्र ग़रीबी, तंगी और मुफ़लिसी में काटने के बाद फ़िरदौसी मर चुका था। कहते हैं कि फ़िरदौसी की एकमात्र संतान उसकी लड़की ने भी यह धन लेने से इंकार कर दिया था। इस तरह सम्राट कवि का कर्ज़दार रहा और आज भी है। शायद यही वजह है कि आज फ़िरदौसी का शाहनामा जितना प्रसिद्ध है उतनी ही या उससे ज्यादा प्रसिद्ध वे पंक्तियां है जो फ़िरदौसी ने महमूद ग़ज़नवी की आलोचना करते हुए लिखी थीं।[1]

फ़िरदौसी का 'शाहनामा'

फ़िरदौसी का 'शाहनामा' दरअसल ईरान का इतिहास ही नहीं ईरानी अस्मिता की पहचान है। उसमें प्राचीन ईरान की उपलब्धियों का बखान है। सम्राटों का इतिहास है। प्राचीन फ़ारसी ग्रंथों को नया रूप देकर उनको शामिल किया गया है। मिथक और इतिहास के सम्मिश्रण से एक अद्भुत प्रभाव उत्पन्न हुआ है। प्रेम, विद्रोह, वीरता, दुष्टता, मानवीयता, युद्ध, साहस के ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं जिन्होंने 'शाहनामा' को ईरानी साहित्य की अमर कृति बना दिया है। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी तरह से जितनी बार छपा है उतना और कोई पुस्तक नहीं छपी है। फ़िरदौसी ने रुस्तम और सोहराब जैसे पात्र निर्मित किए हैं जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं।

फ़िरदौसी पुरस्कार

ईरान के राष्ट्रीय पुस्तकालय के प्रमुख के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ की शैक्षिक व सांस्कृतिक संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय फ़िरदौसी पुरस्कार के आयोजन पर सहमति व्यक्त कर दी है। राष्ट्रीय पुस्तकालय के प्रमुख रज़ा सालेही अमीरी ने मेहर न्यूज़ एजेन्सी से बात करते हुए कहा कि यूनेस्को ने अंतर्राष्ट्रीय फ़िरदौसी पुरस्कार के आयोजन पर सहमति व्यक्त कर दी है। उनका कहना था कि शीघ्र ही इस मामले की समीक्षा के लिए ईरान और यूनेस्को के विशषज्ञों के स्तर के प्रतिनिधिमंडल की घोषणा की जाएगी। उनका कहना था कि अंतर्राष्ट्रीय फ़िरदौसी पुरस्कार, यूनेस्को की ओर से प्रतिवर्ष ईरान और ईरानी संस्कृति के बारे में शोध करने वाले कुछ प्रसिद्ध लोगों को दिया जाएगा।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. असग़र वजाहत का यात्रा संस्मरण- अंतिम किश्त (कवि का कर्ज़ा) (हिंदी) रचनाकार। अभिगमन तिथि: 4 दिसम्बर, 2014।
  2. यूनेस्को ने फ़िरदौसी पुरस्कार के आयोजन को स्वीकृति दी (हिंदी) iran hindi radio। अभिगमन तिथि: 4 दिसम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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