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होटल तमिलनाडु, केरल गेस्ट हाउस, होटल समुद्र, होटल शिंगार इंटरनेशनल, होटल केप रेसीडेंसी, होटल सरवना, शंकर गेस्ट हाउस, विवेकानंद पुरम।
 
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08:35, 10 अगस्त 2010 का अवतरण

सूर्यास्त का द्रश्य, कन्याकुमारी
View Of Sunset In Kanyakumari
  • कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। भारत के मस्तक पर मुकुट के समान सजे हिमालय के धवल शिखरों को निकट से देखने के बाद हर सैलानी के मन में भारतभूमि के अंतिम छोर को देखने की इच्छा भी उभरने लगती है।
  • भारत भूमि के सबसे दक्षिण बिंदु पर स्थित कन्याकुमारी में केवल एक तीर्थस्थान है बल्कि देशी विदेशी सैलानियों का एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है। देश के मानचित्र के अंतिम छोर पर होने के कारण अधिकांश लोग इसे देख लेने की इच्छा रखते हैं।

अद्वितीय शहर

यह स्थान एक खाड़ी, एक सागर और एक महासागर का मिलन बिंदु है। अपार जलराशि से घिरे इस स्थल के पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर एवं दक्षिण में हिंद महासागर है। यहां आकर हर व्यक्ति को प्रकृति के अनंत स्वरूप के दर्शन होते हैं। सागर-त्रय के संगम की इस दिव्यभूमि पर मां भगवती देवी कुमारी के रूप में विद्यमान हैं। इस पवित्र स्थान को एलेक्जेंड्रिया ऑफ ईस्ट की उपमा से विदेशी सैलानियों ने नवाजा है। यहां पहुंच कर लगता है मानो पूर्व में सभ्यता की शुरुआत यहीं से हुई होगी। अंग्रेजों ने इस स्थल को केप कोमोरिन कहा था। तिरुअनंतपुरम के बेहद निकट होने के कारण सामान्यत: समझा जाता है कि यह शहर केरल राज्य में स्थित है, लेकिन कन्याकुमारी वास्तव में तमिलनाडु राज्य का एक खास पर्यटन स्थल है।

प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल

कुमारी अम्मन मंदिर

कन्याकुमारी मंदिर, कन्याकुमारी
Kanyakumari Temple, Kanyakumari

कुमारी अम्मन मंदिर समुद्र तट पर स्थित है। पूर्वाभिमुख इस मंदिर का मुख्य द्वार केवल विशेष अवसरों पर ही खुलता है, इसलिए श्रद्धालुओं को उत्तरी द्वार से प्रवेश करना होता है। इस द्वार का एक छोटा-सा गोपुरम है। करीब 10 फुट ऊंचे परकोटे से घिरे वर्तमान मंदिर का निर्माण पांड्य राजाओं के काल में हुआ था। देवी कुमारी पांड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार शक्ति की देवी वाणासुर का अंत करने के लिए अवतरित हुई थी। वाणासुर के अत्याचारों से जब धर्म का नाश होने लगा तो देवगण भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। उन्होंने देवताओं को बताया कि उस असुर का अंत केवल देवी पराशक्ति कर सकती हैं। भगवान विष्णु को यह बात विदित थी कि वाणासुर ने इतने वरदान पा लिए हैं कि उसे कोई नहीं मार सकता। लेकिन उसने यह वरदान नहीं मांगा कि एक कुंवारी कन्या उसका अंत नहीं कर सकती। देवताओं ने अपने तप से पराशक्ति को प्रसन्न किया और वाणासुर से मुक्ति दिलाने का वचन भी ले लिया। तब देवी ने एक कन्या के रूप में अवतार लिया। कन्या युवावस्था को प्राप्त हुई तो सुचिन्द्रम में उपस्थित शिव से उनका विवाह होना निश्चित हुआ क्योंकि देवी तो पार्वती का ही रूप थीं। लेकिन नारद जी के गुप्त प्रयासों से उनका विवाह संपन्न न हो सका तथा उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले लिया। नारद जी को ज्ञात था कि देवी के अवतार का उद्देश्य वाणासुर को समाप्त करना है। यह उद्देश्य वे एक कुंवारी कन्या के रूप में ही पूरा कर सकेंगी। फिर वह समय भी आ गया। वाणासुर ने जब देवी कुंवारी के सौंदर्य के विषय में सुना तो वह उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव ले कर पहुंचा। देवी क्रोधित हो गई तो वाणासुर ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उस समय उन्होंने कन्या कुंवारी के रूप में अपने चक्र आयुध से वाणासुर का अंत किया। तब देवताओं ने समुद्र तट पर पराशक्ति के कन्याकुमारी स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर यह स्थान भी कन्याकुमारी कहलाया तथा मंदिर को कुमारी अम्मन यानी कुमारी देवी का मंदिर कहा जाने लगा।

माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु कुमारी अम्मन मंदिर में जलयात्रा पर्व पर आए थे। यहाँ मंदिर में पुरुषों को ऊपरी वस्त्र यानी शर्ट एवं बनियान उतार कर जाना होता है। सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नजर आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।

स्वामी विवेकानंद का स्मृतिशेष

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल, कन्याकुमारी
Vivekananda Rock Memorial, Kanyakumari

समुद्र में उभरी दूसरी चट्टान पर दूर से ही एक मंडप नजर आता है। यह मंडप दरअसल विवेकानंद रॉक मेमोरियल है। 1892 में स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आए थे। एक दिन वे तैर कर इस विशाल शिला पर पहुंच गए। इस निर्जन स्थान पर साधना के बाद उन्हें जीवन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ। विवेकानंद के उस अनुभव का लाभ पूरे विश्व को हुआ, क्योंकि इसके कुछ समय बाद ही वे शिकागो सम्मेलन में भाग लेने गए थे। इस सम्मेलन में भाग लेकर उन्होंने भारत का नाम ऊंचा किया था। उनके अमर संदेशों को साकार रूप देने के लिए 1970 में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया। समुद्र की लहरों से घिरी इस शिला तक पहुंचना भी एक अलग अनुभव है। स्मारक भवन का मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। इसका वास्तुशिल्प अजंता-एलोरा की गुफाओं के प्रस्तर शिल्पों से लिया गया लगता है। लाल पत्थर से निर्मित स्मारक पर 70 फुट ऊंचा गुंबद है। भवन के अंदर चार फुट से ऊंचे प्लेटफॉर्म पर परिव्राजक संत स्वामी विवेकानंद की प्रभावशाली मूर्ति है। यह मूर्ति कांसे की बनी है जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है। यह मूर्ति इतनी प्रभावशाली है कि इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एकदम सजीव प्रतीत होता है।

महात्मा गाँधी स्मारक

गाँधी स्मारक, कन्याकुमारी
Gandhi Mandapam, Kanyakumari

तीन सागरों का संगम स्थल होने के कारण हमारी धरती का यह छोर एक पवित्र स्थान है। इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अस्थि अवशेषों का एक अंश समुद्र संगम पर भी प्रवाहित किया गया था। समुद्र तट पर जिस जगह उनका अस्थि कलश लोगों के दर्शनार्थ रखा गया था, वहां आज एक सुंदर स्मारक है, जिसे गांधी मंडप कहते हैं। मंडप में गांधी जी के संदेश एवं उनके जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्र प्रदर्शित हैं। स्मारक के गुंबद के नीचे वह स्थान एक पीठ के रूप में है, जहां कलश रखा गया था। यह शिल्प कौशल का कमाल है कि प्रतिवर्ष गांधी जी के जन्मदिवस दो अक्टूबर को दोपहर के समय छत के छिद्र से सूर्य की किरणें सीधी इस पीठ पर पड़ती हैं। गांधी मंडप के निकट ही मणि मंडप स्थित है। यह तमिलनाडु के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कामराज का स्मारक है। कन्याकुमारी का सेंट मेरी चर्च भी एक दर्शनीय स्थान है। इसकी ऊंची इमारत विवेकानंद मेमोरियल से आते हुए बोट से भी नजर आती है।

तिरुवल्लुवर प्रतिमा

थिरुवेल्लुवर प्रतिमा, कन्याकुमारी
Thiruvalluvar Statue, Kanyakumari

सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नजर आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।

सुचिंद्रम

कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक तीर्थ है, जहां धार्मिक आस्था श्रद्धालुओं को खींच लाती है। इस स्थान पर भव्य स्थानुमलयन मंदिर है। यह मंदिर ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की त्रिमूर्ति को समर्पित है।

सुचिन्द्रम तीर्थ, कन्याकुमारी
Suchindram Thanumalayar, Kanyakumari

यह त्रिमूर्ति वहां एक लिंग के रूप में विराजमान है। मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। उस काल के कुछ शिलालेख मंदिर में मौजूद हैं। 17वीं शताब्दी में इस मंदिर को नया रूप दिया गया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक अष्टधातु की प्रतिमा एवं पवनपुत्र हनुमान की 18 फुट ऊंची प्रतिमा विशेष रूप से दर्शनीय है। मंदिर का सप्तसोपान गोपुरम भी भक्तों को प्रभावित करता है। मंदिर के निकट ही एक सरोवर है। जिसके मध्य एक मंडप है। सुचिन्द्रम कन्याकुमारी से मात्र 13 किमी दूर है। यह रास्ता नारियल के कुंचों से भरा है।

नागराज मंदिर

सुचिंद्रम से 8 किमी. दूरी पर नागरकोविल शहर है। यह शहर नागराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है। देखने में यह मंदिर चीन की वास्तुशैली के बौद्ध विहार जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में नागराज की मूर्ति आधारतल में अवस्थित है। यहां नाग देवता के साथ भगवान विष्णु एवं भगवान शिव भी उपस्थित हैं। मंदिर के स्तंभों पर जैन तीर्थकरों की प्रतिमा उकेरी नजर आती है। नागरकोविल एक छोटा-सा व्यावसायिक शहर है। इसलिए यहां हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

सामान्य जानकारी

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल, कन्याकुमारी
Vivekananda Rock Memorial, Kanyakumari

यहां तमिल एवं मलयालम भाषा बोली जाती है। लेकिन पर्यटन स्थल होने के कारण हिंदी एवं इंग्लिश जानने वाले लोग भी मिल जाते हैं। यहां के दर्शनीय स्थल पैदल ही देखे जा सकते हैं। बस स्टैंड एवं रेलवे स्टेशन बाजार और होटलों से अधिक दूर नहीं है।

कब जायें

यह एक समुद्र तटीय शहर है इसलिए मानसून का यहाँ काफी प्रभाव रहता है। इसलिए जून मध्य से सितंबर मध्य यहां घूमने के लिए उपयुक्त नहीं है। शेष हर मौसम में यहां आ सकते है। कैसे जायें

रेल मार्ग- कन्याकुमारी रेल मार्ग द्वारा जम्मू, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, मदुराई, तिरुअनंतपुरम, एरनाकुलम से जुड़ा है। दिल्ली से यह यात्रा 60 घंटे, जम्मूतवी से 74 घंटे, मुंबई से 48 घंटे एवं तिरुअनंतपुरम से ढाई घंटे की है।

बस मार्ग- तिरुअनंतपुरम, चेन्नई, मदुराई, रामेश्वरम आदि शहरों से कन्याकुमारी के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है।

वायु मार्ग- कन्याकुमारी का निकटतम हवाई अड्डा तिरुअनंतपुरम में है। वहां के लिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई से सीधी उड़ाने हैं।

प्रमुख स्थानों से दूरी

कहाँ ठहरें

होटल तमिलनाडु, केरल गेस्ट हाउस, होटल समुद्र, होटल शिंगार इंटरनेशनल, होटल केप रेसीडेंसी, होटल सरवना, शंकर गेस्ट हाउस, विवेकानंद पुरम।