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'''जयदेव'''  ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jaidev''; जन्म- [[3 अगस्त]], [[1919]], [[लुधियाना]]; मृत्यु- [[6 जनवरी]], [[1987]]) भारतीय संगीतकार तथा बाल [[अभिनेता]] थे। इन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी नवाज़ा गया है।
  
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== परिचय ==
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जयदेव का जन्म [[3 अगस्त]], [[1919]] को [[लुधियाना]] में हुआ था। यह प्रारंभ में फ़िल्म स्टार बनना चाहते थे। पन्द्रह साल की उम्र में वह घर से भागकर [[मुम्बई]] चले गये लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। वाडिया फिल्म कंपनी की आठ फ़िल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम करने के बाद उनका मन उचाट हो गया और उन्होंने वापस [[लुधियाना]] जाकर प्रोफेसर बरकत राय से संगीत की तालीम लेनी शुरु कर दी।
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==संगीत वद्य प्रमुख फ़िल्में==
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उस्ताद अली अकबर खान ने नवकेतन की फिल्म 'आंधियां', और 'हमसफर', में जब [[संगीत]] देने का जिम्मा संभाला तब उन्होंने जयदेव को अपना सहायक बना लिया। नवकेतन की ही ''टैक्सी ड्राइवर'' फिल्म से वह संगीतकार सचिन देव वर्मन के सहायक बन गए लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से संगीत देने का जिम्मा चेतन आनन्द की फिल्म ''जोरू का भाई'' में मिला। इसके बाद उन्होंने चेतन आनन्द की एक और फिल्म ''अंजलि'' में भी संगीत दिया।<ref>{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/entertanment/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8-250811-1 |title=महान संगीतकार जयदेव|accessmonthday=21 जून |accessyear=2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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==सम्मान और पुरस्कार==
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*जयदेव को हिंदी फ़िल्म इतिहास में सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
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*सुर सिंगर पुरस्कार से चार बार नबाज़ा गया है।
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*लता मंगेशकर पुरस्कार मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया।
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==निधन==
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भारतीय सिनेमा में जयदेव वर्मा का नाम उन संगीतकारों में लिया जाता है जिन्होंने संगीत को नया आयाम दिया।
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== मुख्य फ़िल्म ==
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उस्ताद अली अकबर खान ने नवकेतन की फिल्म 'आंधियां', और 'हमसफर', में जब संगीत देने का जिम्मा संभाला तब उन्होंने जयदेव को अपना सहायक बना लिया। नवकेतन की ही 'टैक्सी ड्राइवर' फिल्म से वह संगीतकार सचिन देव वर्मन के सहायक बन गए लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से संगीत देने का जिम्मा चेतन आनन्द की फिल्म 'जोरू का भाई' में मिला। इसके बाद उन्होंने चेतन आनन्द की एक और फिल्म 'अंजलि' में भी संगीत दिया। हालांकि ये दोनों फिल्में कामयाब नहीं रहीं लेकिन उनकी बनाई धुनों को काफी सराहना मिली। जयदेव का सितारा चमका, नवकेतन की फिल्म 'हम दोनों' से। इस फिल्म में उनका संगीतबध्द हर गाना खूब लोकप्रिय हुआ, फिर चाहे वह 'भी न जाओ छोडकर, मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया' 'कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया हो या अल्लाह तेरो नाम। अल्लाह तेरो नाम' की संगीत रचना इतनी मकबूल हुई कि लता मंगेशकर जब भी स्टेज पर जाती हैं तो इस भजन को गाना नहीं भूलतीं। कई स्कूलों में भी बच्चों से यह भजन गवाया जाता है। उनकी एक और बडी कामयाब फिल्म रही 'रेशमा और शेरा'। इस फिल्म में राजस्थानी लोकधुनों पर आधारित उनका कर्णप्रिय संगीत आज भी ताजा बयार की तरह श्रोताओं को सुकून से भर देता है। जयदेव की यादातर फिल्में ''जैसे आलाप'' किनारे,किनारे, अनकही आदि फ्लाप रहीं लेकिन उनका संगीत हमेशा चला। जयदेव के संगीत की विशेषता थी कि वह शास्त्रीय राग, रागिनियों और लोकधुनों का इस खूबसूरती से मिश्रण करते थे कि उनकी बनायी धुनें विशिष्ट बन जाती थीं। उदाहरण के लिए ''प्रेम परबत'' के गीत 'ये दिल और उनकी पनाहों के साये' को ही लीजिए, जिसमें उन्होंने पहाडी लोकधुन का इस्तेमाल करते हुए संतूर का इस खूबसूरती से प्रयोग किया है कि लगता है कि पहाडों से नदी बलखाती हुई बढ रही हो। जयदेव नयी प्रतिभाओं को मौका देने में हमेशा आगे रहे। दिलराज कौर, भूपेन्द्र, रूना लैला, पीनाज मसानी, सुरेश वाडेकर आदि नवोदित गायकों को उन्होंने प्रोत्साहित किया और अपनी फिल्मों में गायन के अनेक मौके दिए।
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==== जयदेव जी के कुछ गीत ====
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कभी खुद पे कभी हालत पे रोना आया
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सुबह का इन्तेज़ार कौन करे लता (जोरू का भाई 1955)
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तेरे बचपन को जवानी दुआ देती हूँ /लता (मुझे जीने दो 1963)
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चले जा रहे हैं मोहोबत के मारे ,किनारे किनारे 1963 /मन्ना डे
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हर आँख अश्कबार है /लता, किनारे किनारे १९६३
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मैं किसे अपना कहूँ आज मेरा कोई नहीं, मुकेश -लता, एक थी रीता -१९७१
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जयदेव के संगीत को अगर बारीकी से देखा जाये तो उन्हें दो भागों में बांटाजा सकता है , शुरूआती दौर में शास्त्रीय संगीत के साथ हे पस्चित्य संगीत का इस्तेमाल किया और दूसरे दुआर में कुछ ऐसे धुनें बनाई जो काफी मुश्किल होने के बावजूद लोगों में खूब लोकप्रिय हुईं ! जयदेव जिन्होने कई महान हिन्दी कवियों की रचनाओं को गीतों में ढाल कर हम तक पहुंचाया जिनमे मैथिली शरण गुप्त, सुमित्रानन्दन पंत, जय शंकर प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा, माखन लाल चतुर्वेदी की हिंदी की कई अमर रचनाएं जयदेव जी ने संगीतबद्ध की. सही मायने में हिन्दुस्तानी फ़िल्म संगीत के साहित्यिक संगीतकार थे जयदेव.
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यहां प्रस्तुत है डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कलम से निकली फ़िल्म संगीत को अनमोल सौगात, जयदेव जी द्वारा संगीतबद्ध !
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'कोई गाता मैं सो जाता' !
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संस्कृति के विस्तृत सागर में
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दुःख सुख की लहरों में उठ गिर
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बहता जाता मैं सो जाता
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आँखों में लेकर प्यार अमर
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आशीष हथेली में भर कर
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कोई मेरा सर गोदी में रख
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सहलाता मैं सो जाता
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मेरे जीवन का काराजल
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कोई अपने स्वर में मधुमय कर
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दोहराता मैं सो जाता
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13:23, 21 जून 2017 का अवतरण

दीपिका4
जयदेव
पूरा नाम जयदेव वर्मा
प्रसिद्ध नाम जयदेव
जन्म 3 अगस्त, 1919
जन्म भूमि लुधियाना
मृत्यु 6 जनवरी, 1987
मृत्यु स्थान मुम्बई
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार, अभिनेता
पुरस्कार-उपाधि राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जयदेव नयी प्रतिभाओं को मौका देने में हमेशा आगे रहे। दिलराज कौर, भूपेन्द्र, रूना लैला, पीनाज मसानी, सुरेश वाडेकर आदि नवोदित गायकों को उन्होंने प्रोत्साहित किया और अपनी फ़िल्मों में गायन के अनेक मौके दिए।
अद्यतन‎ 06:15, 21 जून 2017 (IST)

जयदेव (अंग्रेज़ी: Jaidev; जन्म- 3 अगस्त, 1919, लुधियाना; मृत्यु- 6 जनवरी, 1987) भारतीय संगीतकार तथा बाल अभिनेता थे। इन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी नवाज़ा गया है।

परिचय

जयदेव का जन्म 3 अगस्त, 1919 को लुधियाना में हुआ था। यह प्रारंभ में फ़िल्म स्टार बनना चाहते थे। पन्द्रह साल की उम्र में वह घर से भागकर मुम्बई चले गये लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। वाडिया फिल्म कंपनी की आठ फ़िल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम करने के बाद उनका मन उचाट हो गया और उन्होंने वापस लुधियाना जाकर प्रोफेसर बरकत राय से संगीत की तालीम लेनी शुरु कर दी।

संगीत वद्य प्रमुख फ़िल्में

उस्ताद अली अकबर खान ने नवकेतन की फिल्म 'आंधियां', और 'हमसफर', में जब संगीत देने का जिम्मा संभाला तब उन्होंने जयदेव को अपना सहायक बना लिया। नवकेतन की ही टैक्सी ड्राइवर फिल्म से वह संगीतकार सचिन देव वर्मन के सहायक बन गए लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से संगीत देने का जिम्मा चेतन आनन्द की फिल्म जोरू का भाई में मिला। इसके बाद उन्होंने चेतन आनन्द की एक और फिल्म अंजलि में भी संगीत दिया।[1]

सम्मान और पुरस्कार

  • जयदेव को हिंदी फ़िल्म इतिहास में सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
  • सुर सिंगर पुरस्कार से चार बार नबाज़ा गया है।
  • लता मंगेशकर पुरस्कार मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया।

निधन

जयदेव का निधन 6 जनवरी, 1987 को मुम्बई में हुआ था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महान संगीतकार जयदेव (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 21 जून, 2017।

संबंधित लेख

दीपिका4
जयदेव
पूरा नाम जयदेव वर्मा
प्रसिद्ध नाम जयदेव
जन्म 3 अगस्त, 1919
जन्म भूमि लुधियाना
मृत्यु 6 जनवरी, 1987
मृत्यु स्थान मुम्बई
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार, अभिनेता
पुरस्कार-उपाधि राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जयदेव नयी प्रतिभाओं को मौका देने में हमेशा आगे रहे। दिलराज कौर, भूपेन्द्र, रूना लैला, पीनाज मसानी, सुरेश वाडेकर आदि नवोदित गायकों को उन्होंने प्रोत्साहित किया और अपनी फ़िल्मों में गायन के अनेक मौके दिए।
अद्यतन‎ 06:15, 21 जून 2017 (IST)

जयदेव का जन्म 3 अगस्त, 1919 को लुधियाना में हुआ था। भारतीय संगीतकार तथा बाल अभिनेता थे। इन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी नवाज़ा गया है। यह प्रारंभ में फ़िल्म स्टार बनना चाहते थे। पन्द्रह साल की उम्र में वह घर से भागकर मुम्बई चले गये लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

जयदेव का वाडिया फ़िल्म कंपनी की आठ फ़िल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम करने के बाद उनका मन उचाट हो गया और उन्होंने वापस लुधियाना जाकर प्रोफेसर बरकत राय से संगीत की तालीम लेनी शुरु कर दी। बाद में उन्होंने मुम्बई में भी कृष्णराव जावकर और जनार्दन जावकर से संगीत की विधिवत शिक्षा ग्रहण की। इसी दौरान पिता की बीमारी की वजह से उनका कैरियर प्रभावित हुआ। उन्हें पिता की देखभाल के लिए वापस लुधियाना जाना पडा। जब उनके पिता का निधन हुआ तो उनके कंधों पर अपनी बहन की देखभाल की जिम्मेदारी आ पडी। बहन की शादी कराने के बाद उन्होंने फिर से अपने कैरियर की तरफ ध्यान देना शुरू किया और वर्ष 1943 में उन्होंने लखनऊ में विख्यात सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान से संगीत की तालीम लेनी शुर कर दी।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महान संगीतकार जयदेव (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 21 जून, 2017।

संबंधित लेख

दीपिका4
जयदेव
पूरा नाम जयदेव वर्मा
प्रसिद्ध नाम जयदेव
जन्म 3 अगस्त, 1919
जन्म भूमि लुधियाना
मृत्यु 6 जनवरी, 1987
मृत्यु स्थान मुम्बई
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार, अभिनेता
पुरस्कार-उपाधि राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जयदेव नयी प्रतिभाओं को मौका देने में हमेशा आगे रहे। दिलराज कौर, भूपेन्द्र, रूना लैला, पीनाज मसानी, सुरेश वाडेकर आदि नवोदित गायकों को उन्होंने प्रोत्साहित किया और अपनी फ़िल्मों में गायन के अनेक मौके दिए।
अद्यतन‎ 06:15, 21 जून 2017 (IST)

भारतीय सिनेमा में जयदेव वर्मा का नाम उन संगीतकारों में लिया जाता है जिन्होंने संगीत को नया आयाम दिया।

मुख्य फ़िल्म

उस्ताद अली अकबर खान ने नवकेतन की फिल्म 'आंधियां', और 'हमसफर', में जब संगीत देने का जिम्मा संभाला तब उन्होंने जयदेव को अपना सहायक बना लिया। नवकेतन की ही 'टैक्सी ड्राइवर' फिल्म से वह संगीतकार सचिन देव वर्मन के सहायक बन गए लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से संगीत देने का जिम्मा चेतन आनन्द की फिल्म 'जोरू का भाई' में मिला। इसके बाद उन्होंने चेतन आनन्द की एक और फिल्म 'अंजलि' में भी संगीत दिया। हालांकि ये दोनों फिल्में कामयाब नहीं रहीं लेकिन उनकी बनाई धुनों को काफी सराहना मिली। जयदेव का सितारा चमका, नवकेतन की फिल्म 'हम दोनों' से। इस फिल्म में उनका संगीतबध्द हर गाना खूब लोकप्रिय हुआ, फिर चाहे वह 'भी न जाओ छोडकर, मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया' 'कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया हो या अल्लाह तेरो नाम। अल्लाह तेरो नाम' की संगीत रचना इतनी मकबूल हुई कि लता मंगेशकर जब भी स्टेज पर जाती हैं तो इस भजन को गाना नहीं भूलतीं। कई स्कूलों में भी बच्चों से यह भजन गवाया जाता है। उनकी एक और बडी कामयाब फिल्म रही 'रेशमा और शेरा'। इस फिल्म में राजस्थानी लोकधुनों पर आधारित उनका कर्णप्रिय संगीत आज भी ताजा बयार की तरह श्रोताओं को सुकून से भर देता है। जयदेव की यादातर फिल्में जैसे आलाप किनारे,किनारे, अनकही आदि फ्लाप रहीं लेकिन उनका संगीत हमेशा चला। जयदेव के संगीत की विशेषता थी कि वह शास्त्रीय राग, रागिनियों और लोकधुनों का इस खूबसूरती से मिश्रण करते थे कि उनकी बनायी धुनें विशिष्ट बन जाती थीं। उदाहरण के लिए प्रेम परबत के गीत 'ये दिल और उनकी पनाहों के साये' को ही लीजिए, जिसमें उन्होंने पहाडी लोकधुन का इस्तेमाल करते हुए संतूर का इस खूबसूरती से प्रयोग किया है कि लगता है कि पहाडों से नदी बलखाती हुई बढ रही हो। जयदेव नयी प्रतिभाओं को मौका देने में हमेशा आगे रहे। दिलराज कौर, भूपेन्द्र, रूना लैला, पीनाज मसानी, सुरेश वाडेकर आदि नवोदित गायकों को उन्होंने प्रोत्साहित किया और अपनी फिल्मों में गायन के अनेक मौके दिए।

जयदेव जी के कुछ गीत

कभी खुद पे कभी हालत पे रोना आया सुबह का इन्तेज़ार कौन करे लता (जोरू का भाई 1955) तेरे बचपन को जवानी दुआ देती हूँ /लता (मुझे जीने दो 1963) चले जा रहे हैं मोहोबत के मारे ,किनारे किनारे 1963 /मन्ना डे हर आँख अश्कबार है /लता, किनारे किनारे १९६३ मैं किसे अपना कहूँ आज मेरा कोई नहीं, मुकेश -लता, एक थी रीता -१९७१

जयदेव के संगीत को अगर बारीकी से देखा जाये तो उन्हें दो भागों में बांटाजा सकता है , शुरूआती दौर में शास्त्रीय संगीत के साथ हे पस्चित्य संगीत का इस्तेमाल किया और दूसरे दुआर में कुछ ऐसे धुनें बनाई जो काफी मुश्किल होने के बावजूद लोगों में खूब लोकप्रिय हुईं ! जयदेव जिन्होने कई महान हिन्दी कवियों की रचनाओं को गीतों में ढाल कर हम तक पहुंचाया जिनमे मैथिली शरण गुप्त, सुमित्रानन्दन पंत, जय शंकर प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा, माखन लाल चतुर्वेदी की हिंदी की कई अमर रचनाएं जयदेव जी ने संगीतबद्ध की. सही मायने में हिन्दुस्तानी फ़िल्म संगीत के साहित्यिक संगीतकार थे जयदेव.

यहां प्रस्तुत है डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कलम से निकली फ़िल्म संगीत को अनमोल सौगात, जयदेव जी द्वारा संगीतबद्ध !

'कोई गाता मैं सो जाता' ! कोई जाता मैं सो जाता - 2 संस्कृति के विस्तृत सागर में सपनों की नौका के अंदर दुःख सुख की लहरों में उठ गिर बहता जाता मैं सो जाता आँखों में लेकर प्यार अमर आशीष हथेली में भर कर कोई मेरा सर गोदी में रख सहलाता मैं सो जाता मेरे जीवन का काराजल मेरे जीवन को हलाहल कोई अपने स्वर में मधुमय कर दोहराता मैं सो जाता

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