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'''मंगलयान''' (औपचारिक नाम- 'मंगल कक्षित्र मिशन', [[अंग्रेज़ी]]- ''Mars Orbiter Mission'', संक्षिप्त नाम- ''MOM'') [[भारत]] का प्रथम मंगल अभियान है। वस्तुत: यह '[[भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन]]' (इसरो) की महत्त्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत [[5 नवम्बर]], [[2013]] को [[मंगल ग्रह]] की परिक्रमा करने के लिये छोड़ा गया एक [[उपग्रह]] [[आंध्र प्रदेश]] के [[श्रीहरिकोटा]] स्थित [[सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र]] से [[पीएसएलवी|ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25]] के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया। इसके साथ ही भारत भी उन देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। भारत विश्व का ऐसा पहला देश है, जिसने अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर उपग्रह भेजने में सफलता प्राप्त की है। इस मिशन पर भारत ने करीब 450 करोड़ [[रुपया|रुपये]] खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज़्यादा क़िफ़ायती है।
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'''मंगलयान''' (औपचारिक नाम- 'मंगल कक्षित्र मिशन', [[अंग्रेज़ी]]- ''Mars Orbiter Mission'', संक्षिप्त नाम- ''MOM'') [[भारत]] का प्रथम मंगल अभियान है। वस्तुत: यह '[[भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन]]' (इसरो) की महत्त्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत [[5 नवम्बर]], [[2013]] को [[मंगल ग्रह]] की परिक्रमा करने के लिये छोड़ा गया एक [[उपग्रह]] [[आंध्र प्रदेश]] के [[श्रीहरिकोटा]] स्थित [[सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र]] से [[पीएसएलवी|ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25]] के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया। [[24 सितंबर]], [[2014]] को यह मंगल पर पहुँच गया। इसके साथ ही भारत उन देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। भारत विश्व का ऐसा पहला देश है, जिसने अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर उपग्रह भेजने में सफलता प्राप्त की है। इस मिशन पर भारत ने करीब 450 करोड़ [[रुपया|रुपये]] खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज़्यादा क़िफ़ायती है।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
[[इसरो]] के अध्यक्ष माधवन नायर द्वारा [[23 नवंबर]], [[2008]] को [[मंगल ग्रह]] के लिए एक मानव रहित मिशन की पहली सार्वजनिक अभिस्वीकृति की घोषणा की गई थी। भारत के मंगलयान मिशन की अवधारणा [[2008]] में चंद्र उपग्रह चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के बाद अंतरिक्ष विज्ञान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा [[2010]] में एक व्यवहार्यता अध्ययन के साथ शुरू हुई। [[भारत सरकार]] ने इस परियोजना को [[3 अगस्त]], [[2012]] में मंजूरी दे दी थी। 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' ने 125 करोड़ रुपये के ऑर्बिटर के लिए आवश्यक अध्ययन पूरा किया। परियोजना की कुल लागत 450 करोड़ रुपये हुई। अंतरिक्ष एजेंसी ने [[28 अक्टूबर]], [[2013]] को प्रक्षेपण की योजना बनाई, लेकिन [[प्रशांत महासागर]] में खराब मौसम के कारण इसरो के अंतरिक्ष यान, ट्रैकिंग जहाजों को पहुंचने में देरी हुई। इस कारण अभियान को [[5 नवंबर]], [[2013]] तक स्थगित कर दिया गया।
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[[इसरो]] के अध्यक्ष माधवन नायर द्वारा [[23 नवंबर]], [[2008]] को [[मंगल ग्रह]] के लिए एक मानव रहित मिशन की पहली सार्वजनिक अभिस्वीकृति की घोषणा की गई थी। भारत के मंगलयान मिशन की अवधारणा [[2008]] में चंद्र उपग्रह चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के बाद अंतरिक्ष विज्ञान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा [[2010]] में एक व्यवहार्यता अध्ययन के साथ शुरू हुई। [[भारत सरकार]] ने इस परियोजना को [[3 अगस्त]], [[2012]] में मंजूरी दे दी थी। 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' ने [[28 अक्टूबर]], [[2013]] को प्रक्षेपण की योजना बनाई, लेकिन खराब मौसम के कारण इस अभियान को [[5 नवंबर]], [[2013]] तक स्थगित कर दिया गया।
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[[24 सितंबर]], [[2014]] को मंगल पर पहुँचने के साथ ही [[भारत]] विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है। भारत [[एशिया]] का भी ऐसा करने वाला प्रथम पहला देश बन गया, क्योंकि इससे पहले [[चीन]] और [[जापान]] अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे। भारत का मंगलयान 67 करोड़ किलोमीटर का सफर पूरा कर पहली ही कोशिश में सीधे मंगल ग्रह की कक्षा में जा पहुंचा। दुनिया के तमाम देशों ने मंगल के करीब पहुंचने के लिए अब तक 51 मिशन छोड़े हैं। इनमें से कामयाब हुए सिर्फ 21, लेकिन पहली ही कोशिश में कामयाबी मिली सिर्फ भारत को और मंगल पर पहुंच गया 'मार्स ऑर्बिटर मिशन' यानी मॉम।<ref>{{cite web |url=http://hindi.news18.com/news/nation/249560.html |title= मंगल मिशन की पूरी कहानी|accessmonthday=13 जुलाई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=vigyanvishwa.in |language=हिंदी }}</ref>
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==उद्देश्य==
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मंगलयान मिशन का मुख्य उद्देश्य [[ग्रह|ग्रहों]] के मिशन के संचालन के लिए उपग्रह डिजाइन तैयार करना, योजना बनाना और प्रबंधन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का विकास करना है। इसमें निम्न कार्य प्रमुख हैं-
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#ऑर्बिट कुशलता - अंतरिक्ष यान का [[पृथ्वी]] की कक्षा से सूर्य केंद्रीय प्रक्षेपण पथ में स्थानांतरण करना तथा अंत में यान को [[मंगल ग्रह]] की कक्षा के प्रवेश कराना।
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==यान विवरण==
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'''वजन''' - उत्तोलक द्रव्यमान 1,337.2 कि.ग्रा. (2,948 पौंड), 852 कि.ग्रा. (1,880 पौंड) ईंधन सहित।
  
ईंधन की बचत के लिए होहमान्न स्थानांतरण कक्षा में प्रक्षेपण के अवसर हर 26 महीने में घटित होते हैं। पीएसएलवी-एक्सएल लांच सी25 वाहन को जोड़ने का कार्य [[5 अगस्त]], 2013 को शुरू हुआ था। मंगलयान को वाहन के साथ जोड़ने के लिए [[2 अक्टूबर]], 2013 को [[श्रीहरिकोटा]] भेज दिया गया। [[उपग्रह]] के विकास को तेजी से रिकॉर्ड 15 महीने में पूरा किया गया। [[अमेरिका]] की संघीय सरकार के बंद के बावजूद नासा ने [[5 अक्टूबर]], 2013 को मिशन के लिए संचार और नेविगेशन समर्थन प्रदान करने की पुष्टि की। [[30 सितंबर]], 2014 को एक बैठक के दौरान नासा और इसरो के अधिकारियों ने मंगल ग्रह के भविष्य के संयुक्त मिशन के लिए मार्ग स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए तथा दोनों देशों ने मंगलयान और मेवेन अंतरिक्ष यानों के आंकड़े को साझा करने का फैसला किया।
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'''बस''' - अंतरिक्ष यान का सैटेलाइट बस चंद्रयान-1 के समान संशोधित संरचना और प्रणोदन हार्डवेयर विन्यास का आई-2के बस है। उपग्रह संरचना का निर्माण [[एल्यूमीनियम]] और कार्बन प्लास्टिक फाइबर से किया है।
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'''पावर''' - इलेक्ट्रिक पावर तीन सौर सरणी पैनलों द्वारा [[मंगल ग्रह]] की कक्षा में अधिकतम 840 वाट उत्पन्न करेंगे। बिजली एक 36 एम्पेयर-घंटे वाली लिथियम आयन बैटरी में संग्रहित होगी।
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'''संचालक शक्ति''' - 440 न्यूटन के बल का एक तरल ईंधन इंजन जो कक्षा बढ़ाने और मंगल ग्रह की कक्षा में प्रविष्टि के लिए प्रयोग किया गया है। ऑर्बिटर दृष्टिकोण नियंत्रण के लिए भी आठ 22-न्यूटन वाले थ्रुस्टर ले गया है। इसका ईंधन द्रव्यमान 852 कि.ग्रा. (1,880 पौंड) है।
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==कालक्रम==
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[[भारत]] के मंगलयान का सफर [[भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन]] (इसरो) के वैज्ञानिकों के लिए उत्साह और चुनौतियों से भरा रहा। मिशन की शुरुआत हुई 5 नवंबर, 2013 को; जब श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रॉकेट ने उड़ान भरी और 44 मिनट बाद रॉकेट से अलग होकर [[उपग्रह]] पृथ्वी की कक्षा में आ गया। यह घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा<ref>{{cite web |url=http://www.dw.com/hi/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A4%AC-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%86/a-17949482|title= मंगलयान: कब क्या हुआ|accessmonthday=14 जुलाई|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=dw.com |language=हिंदी }}</ref>-
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#[[7 नवंबर]], [[2013]] को मंगलयान की कक्षा बढ़ाने की पहली कोशिश सफल रही।
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#[[8 नवंबर]], 2013 को मंगलयान की कक्षा बढ़ाने की दूसरी कोशिश भी सफल रही।
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#[[9 नवंबर]], 2013 को मंगलयान की एक और कक्षा सफलतापूर्वक बढ़ाई गई।
  
  
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*[http://www.isro.org/index.aspx इसरो की आधिकारिक वेबसाइट]
 
*[http://www.isro.org/index.aspx इसरो की आधिकारिक वेबसाइट]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन}}
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{{मंगलयान विषय सूची}}{{भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन}}
[[Category:अंतरिक्ष विज्ञान]][[Category:भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन]][[Category:विज्ञान कोश]]
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[[Category:अंतरिक्ष विज्ञान]][[Category:अंतरिक्ष परियोजना]][[Category:भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम]][[Category:मंगलयान परियोजना]][[Category:भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन]][[Category:विज्ञान कोश]]
 
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मंगलयान विषय सूची
मंगलयान
मंगल कक्षित्र मिशन
विवरण 'मंगलयान' अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की महत्त्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना में मंगल ग्रह की परिक्रमा के लिये एक उपग्रह छोड़ा गया, जो 24 सितंबर, 2014 को ग्रह पर पहुँच गया।
मिशन प्रकार मंगल कक्षीयान
संचालक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)
कोस्पर आईडी 2013-060A
सैटकैट संख्या 39370
निर्माता इसरो उपग्रह केन्द्र
प्रक्षेपण तिथि 5 नवंबर, 2013
रॉकेट ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25
प्रक्षेपण स्थल सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र
अन्य जानकारी मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहाँ के पर्यावरण की भी जाँच करना चाहता है। यह भी पता लगाया जायेगा कि लाल ग्रह पर मीथेन गैस मौजूद है या नहीं।
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मंगलयान (औपचारिक नाम- 'मंगल कक्षित्र मिशन', अंग्रेज़ी- Mars Orbiter Mission, संक्षिप्त नाम- MOM) भारत का प्रथम मंगल अभियान है। वस्तुत: यह 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (इसरो) की महत्त्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवम्बर, 2013 को मंगल ग्रह की परिक्रमा करने के लिये छोड़ा गया एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया। 24 सितंबर, 2014 को यह मंगल पर पहुँच गया। इसके साथ ही भारत उन देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। भारत विश्व का ऐसा पहला देश है, जिसने अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर उपग्रह भेजने में सफलता प्राप्त की है। इस मिशन पर भारत ने करीब 450 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज़्यादा क़िफ़ायती है।

इतिहास

इसरो के अध्यक्ष माधवन नायर द्वारा 23 नवंबर, 2008 को मंगल ग्रह के लिए एक मानव रहित मिशन की पहली सार्वजनिक अभिस्वीकृति की घोषणा की गई थी। भारत के मंगलयान मिशन की अवधारणा 2008 में चंद्र उपग्रह चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के बाद अंतरिक्ष विज्ञान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा 2010 में एक व्यवहार्यता अध्ययन के साथ शुरू हुई। भारत सरकार ने इस परियोजना को 3 अगस्त, 2012 में मंजूरी दे दी थी। 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' ने 28 अक्टूबर, 2013 को प्रक्षेपण की योजना बनाई, लेकिन खराब मौसम के कारण इस अभियान को 5 नवंबर, 2013 तक स्थगित कर दिया गया।

सफलता

24 सितंबर, 2014 को मंगल पर पहुँचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है। भारत एशिया का भी ऐसा करने वाला प्रथम पहला देश बन गया, क्योंकि इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे। भारत का मंगलयान 67 करोड़ किलोमीटर का सफर पूरा कर पहली ही कोशिश में सीधे मंगल ग्रह की कक्षा में जा पहुंचा। दुनिया के तमाम देशों ने मंगल के करीब पहुंचने के लिए अब तक 51 मिशन छोड़े हैं। इनमें से कामयाब हुए सिर्फ 21, लेकिन पहली ही कोशिश में कामयाबी मिली सिर्फ भारत को और मंगल पर पहुंच गया 'मार्स ऑर्बिटर मिशन' यानी मॉम।[1]

उद्देश्य

मंगलयान मिशन का मुख्य उद्देश्य ग्रहों के मिशन के संचालन के लिए उपग्रह डिजाइन तैयार करना, योजना बनाना और प्रबंधन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का विकास करना है। इसमें निम्न कार्य प्रमुख हैं-

  1. ऑर्बिट कुशलता - अंतरिक्ष यान का पृथ्वी की कक्षा से सूर्य केंद्रीय प्रक्षेपण पथ में स्थानांतरण करना तथा अंत में यान को मंगल ग्रह की कक्षा के प्रवेश कराना।
  2. कक्षा और दृष्टिकोण गणनाओं के विश्लेषण के लिए बल मॉडल और एल्गोरिदम का विकास करना।
  3. सभी चरणों में नेविगेशन।

यान विवरण

वजन - उत्तोलक द्रव्यमान 1,337.2 कि.ग्रा. (2,948 पौंड), 852 कि.ग्रा. (1,880 पौंड) ईंधन सहित।

बस - अंतरिक्ष यान का सैटेलाइट बस चंद्रयान-1 के समान संशोधित संरचना और प्रणोदन हार्डवेयर विन्यास का आई-2के बस है। उपग्रह संरचना का निर्माण एल्यूमीनियम और कार्बन प्लास्टिक फाइबर से किया है।

पावर - इलेक्ट्रिक पावर तीन सौर सरणी पैनलों द्वारा मंगल ग्रह की कक्षा में अधिकतम 840 वाट उत्पन्न करेंगे। बिजली एक 36 एम्पेयर-घंटे वाली लिथियम आयन बैटरी में संग्रहित होगी।

संचालक शक्ति - 440 न्यूटन के बल का एक तरल ईंधन इंजन जो कक्षा बढ़ाने और मंगल ग्रह की कक्षा में प्रविष्टि के लिए प्रयोग किया गया है। ऑर्बिटर दृष्टिकोण नियंत्रण के लिए भी आठ 22-न्यूटन वाले थ्रुस्टर ले गया है। इसका ईंधन द्रव्यमान 852 कि.ग्रा. (1,880 पौंड) है।

कालक्रम

भारत के मंगलयान का सफर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों के लिए उत्साह और चुनौतियों से भरा रहा। मिशन की शुरुआत हुई 5 नवंबर, 2013 को; जब श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रॉकेट ने उड़ान भरी और 44 मिनट बाद रॉकेट से अलग होकर उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में आ गया। यह घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा[2]-

  1. 7 नवंबर, 2013 को मंगलयान की कक्षा बढ़ाने की पहली कोशिश सफल रही।
  2. 8 नवंबर, 2013 को मंगलयान की कक्षा बढ़ाने की दूसरी कोशिश भी सफल रही।
  3. 9 नवंबर, 2013 को मंगलयान की एक और कक्षा सफलतापूर्वक बढ़ाई गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मंगल मिशन की पूरी कहानी (हिंदी) vigyanvishwa.in। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2017।
  2. मंगलयान: कब क्या हुआ (हिंदी) dw.com। अभिगमन तिथि: 14 जुलाई, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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