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सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं  
 
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स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं  
 
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बँधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत हूँ मैं  
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नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं  
 
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समाना चाहता है, जो बीन उर में  
 
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विकल उस शुन्य की झनंकार हूँ मैं  
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भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में  
 
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सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं  
 
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अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं  
 
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कली की पंखुडीं पर ओस-कण में  
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मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं  
 
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सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं  
 
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मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से  
 
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लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं  
 
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रुंदन अनमोल धन कवि का, इसी से  
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पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं  
 
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चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं  
 
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पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी  
 
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समा जिस्में चुका सौ बार हूँ मैं  
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देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से  
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मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं  
 
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पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले  
 
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सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा  
 
सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा  
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कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का  
 
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का  
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प्रलय - गांडीव की टंकार हूँ मैं  
  
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दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं  
 
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं  
सजग संसार, तू निज को सम्हाले
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सजग संसार, तू निज को सम्भाले
 
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं  
 
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं  
  
बंधा तुफान हूँ, चलना मना है  
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बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं  
 
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कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी  
 
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी  

08:53, 17 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

परिचय -रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन् 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन् 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं

समाना चाहता है, जो बीन उर में
विकल उस शून्य की झनकार हूँ मैं
भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में
सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं

जिसे निशि खोजती तारे जलाकर
उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं
जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन
अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं

कली की पंखुडीं पर ओस - कण में
रंगीले स्वप्न का संसार हूँ मैं
मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं
सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं

मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से
लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं
रुदन अनमोल धन कवि का, इसी से
पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं

मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का
चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं
पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी
समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं

न देखे विश्व, पर मुझको घृणा से
मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं
पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले
तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं

सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा
स्वयं युग - धर्म की हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का
प्रलय - गांडीव की टंकार हूँ मैं

दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा की
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं
सजग संसार, तू निज को सम्भाले
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं

बंधा तूफ़ान हूँ, चलना मना है
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी
बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं।।

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