"निष्क्रमण संस्कार" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*<u>[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]] में निष्क्रमण संस्कार षष्ठम संस्कार है।</u> इसमें बालक को घर के भीतर से बाहर निकालने को निष्क्रमण कहते हैं। इसमें बालक को सूर्य का दर्शन कराया जाता है। बच्चे के पैदा होते ही उसे [[सूर्य देवता|सूर्य]] के प्रकाश में नहीं लाना चाहिये। इससे बच्चे की आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिये जब बालक की आँखें तथा शरीर कुछ पुष्ट बन जाये, तब इस संस्कार को करना चाहिये।
+
*[[हिन्दू धर्म संस्कार|हिन्दू धर्म संस्कारों]] में निष्क्रमण संस्कार षष्ठम संस्कार है। इसमें बालक को घर के भीतर से बाहर निकालने को निष्क्रमण कहते हैं। इसमें बालक को सूर्य का दर्शन कराया जाता है। बच्चे के पैदा होते ही उसे [[सूर्य देवता|सूर्य]] के प्रकाश में नहीं लाना चाहिये। इससे बच्चे की आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिये जब बालक की आँखें तथा शरीर कुछ पुष्ट बन जाये, तब इस संस्कार को करना चाहिये।
  
 
*निष्क्रमण का अर्थ है - बाहर निकालना। बच्चे को पहली बार जब घर से बाहर निकाला जाता है। उस समय निष्क्रमण-संस्कार किया जाता है।
 
*निष्क्रमण का अर्थ है - बाहर निकालना। बच्चे को पहली बार जब घर से बाहर निकाला जाता है। उस समय निष्क्रमण-संस्कार किया जाता है।
 
इस संस्कार का फल विद्धानों ने शिशु के स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि करना बताया है -
 
इस संस्कार का फल विद्धानों ने शिशु के स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि करना बताया है -
 
<blockquote><span style="color: blue"><poem>
 
<blockquote><span style="color: blue"><poem>
निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभिः ।<ref name="pjv">{{cite web |url=http://www.poojavidhi.com/vidhi.aspx?pid=95  |title=निष्क्रमण-संस्कार |accessmonthday=17 फ़रवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=पूजा विधि |language=हिन्दी}}</ref>
+
निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभिः ।<ref name="pjv">{{cite web |url=http://www.poojavidhi.com/vidhi.aspx?pid=95  |title=निष्क्रमण-संस्कार |accessmonthday=17 फ़रवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=पूजा विधि |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
</poem></span></blockquote>
 
</poem></span></blockquote>
 
*जन्मे के चौथे मास में निष्क्रमण-संस्कार होता है। जब बच्चे का ज्ञान और कर्मेंन्द्रियों सशक्त होकर धूप, वायु आदि को सहने योग्य बन जाती है। सूर्य तथा चंद्रादि देवताओ का पूजन करके बच्चे को सूर्य, चंद्र आदि के दर्शन कराना इस संस्कार की मुख्य प्रक्रिया है। चूंकि बच्चे का शरीर पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकश से बनता है, इसलिए बच्चे के कल्याण की कामना करते हुए रहता है -
 
*जन्मे के चौथे मास में निष्क्रमण-संस्कार होता है। जब बच्चे का ज्ञान और कर्मेंन्द्रियों सशक्त होकर धूप, वायु आदि को सहने योग्य बन जाती है। सूर्य तथा चंद्रादि देवताओ का पूजन करके बच्चे को सूर्य, चंद्र आदि के दर्शन कराना इस संस्कार की मुख्य प्रक्रिया है। चूंकि बच्चे का शरीर पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकश से बनता है, इसलिए बच्चे के कल्याण की कामना करते हुए रहता है -
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
आ तपतुशं वातो ते हदे। शिवा अभि क्षरन्तु त्वापो दिव्यः पयस्वतीः ।।<ref name="pjv"></ref>
 
आ तपतुशं वातो ते हदे। शिवा अभि क्षरन्तु त्वापो दिव्यः पयस्वतीः ।।<ref name="pjv"></ref>
 
</poem></span></blockquote>
 
</poem></span></blockquote>
अर्थात हे बालक! तेरे निष्क्रमण के समय द्युलोक तथा पृथिवीलोक कल्याणकारी सुखद एवं शोभास्पद हों। सूर्य तेरे लिए कल्याणकारी प्रकाश करे। तेरे हदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो। दिव्य जल वाली [[गंगा]]-[[यमुना]] नदियाँ तेरे लिए निर्मल स्वादिष्ट जल का वहन करें।
+
अर्थात् हे बालक! तेरे निष्क्रमण के समय द्युलोक तथा पृथिवीलोक कल्याणकारी सुखद एवं शोभास्पद हों। सूर्य तेरे लिए कल्याणकारी प्रकाश करे। तेरे हदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो। दिव्य जल वाली [[गंगा]]-[[यमुना]] नदियाँ तेरे लिए निर्मल स्वादिष्ट जल का वहन करें।
  
 
{{प्रचार}}
 
{{प्रचार}}
पंक्ति 21: पंक्ति 21:
 
|शोध=
 
|शोध=
 
}}
 
}}
 +
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>

07:53, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

  • हिन्दू धर्म संस्कारों में निष्क्रमण संस्कार षष्ठम संस्कार है। इसमें बालक को घर के भीतर से बाहर निकालने को निष्क्रमण कहते हैं। इसमें बालक को सूर्य का दर्शन कराया जाता है। बच्चे के पैदा होते ही उसे सूर्य के प्रकाश में नहीं लाना चाहिये। इससे बच्चे की आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिये जब बालक की आँखें तथा शरीर कुछ पुष्ट बन जाये, तब इस संस्कार को करना चाहिये।
  • निष्क्रमण का अर्थ है - बाहर निकालना। बच्चे को पहली बार जब घर से बाहर निकाला जाता है। उस समय निष्क्रमण-संस्कार किया जाता है।

इस संस्कार का फल विद्धानों ने शिशु के स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि करना बताया है -

निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभिः ।[1]

  • जन्मे के चौथे मास में निष्क्रमण-संस्कार होता है। जब बच्चे का ज्ञान और कर्मेंन्द्रियों सशक्त होकर धूप, वायु आदि को सहने योग्य बन जाती है। सूर्य तथा चंद्रादि देवताओ का पूजन करके बच्चे को सूर्य, चंद्र आदि के दर्शन कराना इस संस्कार की मुख्य प्रक्रिया है। चूंकि बच्चे का शरीर पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकश से बनता है, इसलिए बच्चे के कल्याण की कामना करते हुए रहता है -

शिवे ते स्तां द्यावापृथिवी असंतापे अभिश्रियौ। शं ते सूर्य
आ तपतुशं वातो ते हदे। शिवा अभि क्षरन्तु त्वापो दिव्यः पयस्वतीः ।।[1]

अर्थात् हे बालक! तेरे निष्क्रमण के समय द्युलोक तथा पृथिवीलोक कल्याणकारी सुखद एवं शोभास्पद हों। सूर्य तेरे लिए कल्याणकारी प्रकाश करे। तेरे हदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो। दिव्य जल वाली गंगा-यमुना नदियाँ तेरे लिए निर्मल स्वादिष्ट जल का वहन करें।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 निष्क्रमण-संस्कार (हिन्दी) (ए.एस.पी) पूजा विधि। अभिगमन तिथि: 17 फ़रवरी, 2011।

संबंधित लेख