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* इन्होंने अपने 'कोकसार' नामक ग्रंथ की रचना 1621 ई. (सं. 1678, [[आषाढ़]] [[कृष्ण पक्ष]] [[पंचमी]]) में की, इससे इनका जहाँगीर के शासन-काल में विद्यमान होना प्रमाणित है।  
 
* इनकी रचनाओं में 'अहमद बारामासी', 'रतिविनोद', 'रसविनोद' और 'सामुद्रिक' की गणना भी की जाती है।  
 
* इनकी रचनाओं में 'अहमद बारामासी', 'रतिविनोद', 'रसविनोद' और 'सामुद्रिक' की गणना भी की जाती है।  
* इन ग्रंथों से व्यक्त होता है कि ये शृंगारी भावना के कवि हैं।  
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* इन ग्रंथों से व्यक्त होता है कि ये श्रृंगारी भावना के कवि हैं।  
 
* [[नागरी प्रचारिणी सभा]] की खोज रिपोर्टों में इन्हें कहीं [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] और कहीं [[वैष्णव]] कहा गया है।  
 
* [[नागरी प्रचारिणी सभा]] की खोज रिपोर्टों में इन्हें कहीं [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] और कहीं [[वैष्णव]] कहा गया है।  
 
* 'सिग्विजय भूषण' में इनके दो कवित्त उद्धृत हैं।  
 
* 'सिग्विजय भूषण' में इनके दो कवित्त उद्धृत हैं।  
* ये अपनी प्रेम की कोमल कल्पना के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं।  
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* ये अपनी प्रेम की कोमल कल्पना के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं।<ref>पुस्तक- हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 | सम्पादक- धीरेंद्र वर्मा (प्रधान) | प्रकाशन- ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी | पृष्ठ संख्या- 30</ref>
  
 
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07:53, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

अहमद (अंग्रेज़ी: Ahmad) जहाँगीर बादशाह के समकालीन आगरा निवासी कवि थे। इनका पूरा नाम ताहिर अहमद है।

  • इन्होंने अपने 'कोकसार' नामक ग्रंथ की रचना 1621 ई. (सं. 1678, आषाढ़ कृष्ण पक्ष पंचमी) में की, इससे इनका जहाँगीर के शासन-काल में विद्यमान होना प्रमाणित है।
  • इनकी रचनाओं में 'अहमद बारामासी', 'रतिविनोद', 'रसविनोद' और 'सामुद्रिक' की गणना भी की जाती है।
  • इन ग्रंथों से व्यक्त होता है कि ये श्रृंगारी भावना के कवि हैं।
  • नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्टों में इन्हें कहीं सूफ़ी और कहीं वैष्णव कहा गया है।
  • 'सिग्विजय भूषण' में इनके दो कवित्त उद्धृत हैं।
  • ये अपनी प्रेम की कोमल कल्पना के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 | सम्पादक- धीरेंद्र वर्मा (प्रधान) | प्रकाशन- ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी | पृष्ठ संख्या- 30

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