"प्रयोग:कविता सा.-1" के अवतरणों में अंतर
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||[[ललित कला अकादमी]] हर तीसरे वर्ष कला त्रैवार्षिकी (त्रिनाले इंडिया) का आयोजन [[दिल्ली]] में करता है जो अंतर्राष्ट्रीय [[चित्रकला]] प्रदर्शनी होती है। इसका आयोजन संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष [[1968]] से ही हो रहा है। | ||[[ललित कला अकादमी]] हर तीसरे वर्ष कला त्रैवार्षिकी (त्रिनाले इंडिया) का आयोजन [[दिल्ली]] में करता है जो अंतर्राष्ट्रीय [[चित्रकला]] प्रदर्शनी होती है। इसका आयोजन संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष [[1968]] से ही हो रहा है। | ||
− | {दिलवाड़ा मंदिर किससे बना है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-224,प्रश्न-286 | + | {[[दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू|दिलवाड़ा मंदिर]] किससे बना है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-224,प्रश्न-286 |
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-ग्रीन ग्रेनाइट | -ग्रीन ग्रेनाइट | ||
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-रेड सैंडस्टोन | -रेड सैंडस्टोन | ||
-ब्लैक बेसाल्ट | -ब्लैक बेसाल्ट | ||
− | ||दिलवाड़ा का जैन मंदिर | + | ||[[दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू|दिलवाड़ा का जैन मंदिर माउंट आबू]] (सिरोही, राजस्थान) में स्थित है। इनमें सबसे प्रसिद्ध विमल वासाही मंदिर है। चालुक्य शासक भीमदेव प्रथम (1022-1064 ई.) के सामंत विमल शाह ने इसे बनवाया था। यहां के मंदिर संगमरमर (मकराना मार्बल) की नक़्क़ाशी से सुसज्जित हैं। |
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{लोककला पर कौन-सी शैली आधारित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-5 | {लोककला पर कौन-सी शैली आधारित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-5 | ||
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− | -[[मुगल कालीन चित्रकला| | + | -[[मुगल कालीन चित्रकला|मुग़ल]] |
− | - | + | -किशनगढ़ |
− | - | + | -कोटा |
− | +[[ | + | +[[बसोहली चित्रकला]] |
− | ||[[ | + | ||[[बसोहली चित्रकला]] चित्र शैली लोककला शैली पर आधारित थी। बसौली शैली में कश्मीर की भित्ति चित्र शैली लंबे अर्से से चली आ रही लोककला शैली और [[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी]] व मुग़ल शैली का समंवय दिखाई पड़ता है। इन शैलियों के प्रभाव से बसौली में एक मिश्रित शैली का विकास हुआ। |
{पहाड़ी चित्रकला में 'रस मंजरी' का अंकन किस शैली में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-6 | {पहाड़ी चित्रकला में 'रस मंजरी' का अंकन किस शैली में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-6 | ||
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+व्यावसायिक कला | +व्यावसायिक कला | ||
-पॉटरी | -पॉटरी | ||
− | ||[[शांतिनिकेतन]] में व्यावसायिक कला विषय की शिक्षा नहीं दी जाती है, जबकि वहां [[चित्रकला]], [[मूर्तिकला]] और पॉटरी कला की शिक्षा दी जाती है। | + | ||[[शांतिनिकेतन]] में व्यावसायिक कला विषय की शिक्षा नहीं दी जाती है, जबकि वहां [[चित्रकला]], [[मूर्तिकला]] और पॉटरी [[कला]] की शिक्षा दी जाती है। |
− | {पारंपरिक भारतीय भित्तिचित्रों में कौन-से रंग प्रयोग में आते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-162,प्रश्न-37 | + | {पारंपरिक भारतीय भित्तिचित्रों में कौन-से [[रंग]] प्रयोग में आते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-162,प्रश्न-37 |
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-रासायनिक रंग | -रासायनिक रंग | ||
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-1600 ई. में | -1600 ई. में | ||
− | + | + | +1780 ई. में |
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− | ||भारतवर्ष में प्रकाशित पहला अखबार '[[बंगाल गजट]]' है जो वर्ष 1780 में अंग्रेज (आयरिश) जेम्स आगस्ट हेकीज द्वारा [[कलकत्ता]] से प्रकाशित किया गया था। अत: इसी समय से [[कोलकाता]] में पहली छपाई मशीन की शुरुआत हुई। | + | ||[[भारतवर्ष]] में प्रकाशित पहला अखबार '[[बंगाल गजट]]' है जो वर्ष 1780 में अंग्रेज (आयरिश) जेम्स आगस्ट हेकीज द्वारा [[कलकत्ता]] से प्रकाशित किया गया था। अत: इसी समय से [[कोलकाता]] में पहली छपाई मशीन की शुरुआत हुई। |
{खिलौने की तरह पशु-पक्षियों का [[अलंकरण]] किस शैली में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-45,प्रश्न-33 | {खिलौने की तरह पशु-पक्षियों का [[अलंकरण]] किस शैली में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-45,प्रश्न-33 | ||
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-[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] | -[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] | ||
− | - | + | -[[बसोहली चित्रकला]] |
+[[अपभ्रंश चित्रकला|अपभ्रंश शैली]] | +[[अपभ्रंश चित्रकला|अपभ्रंश शैली]] | ||
-[[मुगल कालीन चित्रकला|मुगल शैली]] | -[[मुगल कालीन चित्रकला|मुगल शैली]] | ||
− | ||खिलौने की तरह पशु-पक्षियों का [[अलंकरण]] | + | ||खिलौने की तरह पशु-पक्षियों का [[अलंकरण]] [[अपभ्रंश चित्रकला|अपभ्रंश शैली]] में हुआ है। इस शैली में पशु-पक्षियों का चित्रण ऐसे किया गया है जैसे पशु-पक्षी कपड़े के बने खिलौने हों। |
{सम्राट '[[जहांगीर]]' का प्रिय चित्रकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-61,प्रश्न-37 | {सम्राट '[[जहांगीर]]' का प्रिय चित्रकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-61,प्रश्न-37 | ||
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||हिंदू कवि '[[केशव]]' की कृति '[[रसिकप्रिया|रसिक प्रिया]]' पर मुगल शासनकाल में ग्रंथ चित्रण एक प्रमुख विशेषता थी। [[अकबर]] के शासनकाल में कई मुस्लिम ग्रंथों के साथ-साथ हिंदू धर्म ग्रंथों का भी चित्रण किया गया। बाद में जहांगीरी कलम में [[चित्रकला]] को इस बंधन से मुक्त कर दिया गया। | ||हिंदू कवि '[[केशव]]' की कृति '[[रसिकप्रिया|रसिक प्रिया]]' पर मुगल शासनकाल में ग्रंथ चित्रण एक प्रमुख विशेषता थी। [[अकबर]] के शासनकाल में कई मुस्लिम ग्रंथों के साथ-साथ हिंदू धर्म ग्रंथों का भी चित्रण किया गया। बाद में जहांगीरी कलम में [[चित्रकला]] को इस बंधन से मुक्त कर दिया गया। | ||
− | {[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] के चित्र किस | + | {[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] के चित्र किस प्रकार के है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-85,प्रश्न-61 |
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-बंगाल पुनर्जागरण शैली | -बंगाल पुनर्जागरण शैली | ||
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-प्राचीन शास्त्रीय शैली | -प्राचीन शास्त्रीय शैली | ||
-यूरोपीय शास्त्रीय शैली | -यूरोपीय शास्त्रीय शैली | ||
− | ||[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] के चित्र आधुनिक विमूर्त शैली प्रकार हैं। रबींद्रनाथ टैगोर के अधिकांश चित्र तात्क्षणिक सृजन प्रेरणा द्वारा पूर्व विचार के बनाए हुए प्रतीत होते हैं। | + | ||[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] के चित्र आधुनिक विमूर्त शैली प्रकार हैं। रबींद्रनाथ टैगोर के अधिकांश चित्र तात्क्षणिक सृजन प्रेरणा द्वारा पूर्व विचार के बनाए हुए प्रतीत होते हैं। इन्होंने परंपरावादी व यथार्थवादी [[चित्रकला]] को न अपनाकर आधुनिक शैली को अपनाया, जिसे उन्होंने 'समंवयात्मक शैली' कहा। |
− | {'द फाइटिंग टेंपरेरी' किसका चित्र | + | {'द फाइटिंग टेंपरेरी' किसका चित्र है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-117,प्रश्न-16 |
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-यूजीन देलाक्रा | -यूजीन देलाक्रा | ||
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+टर्नर | +टर्नर | ||
-टिटिरेन्ट्टो | -टिटिरेन्ट्टो | ||
− | ||इंग्लैंड के भू-दृश्य (लैंडस्केप) [[चित्रकार|चित्रकारों]] में जोसेफ मैलॉर्ड विलियम टर्नर (1775-1851 ई.) को अद्भुत प्रतिभाशाली एवं संयमी कलाकार माना जाता है। उनका कार्य प्रभाववादियों के लिए एक रोमांटिक प्रस्तावना के रूप में जाना जाता है। वह अपने तैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध थे। वर्ष 1839 में उनके द्वारा चित्रित चित्र 'द फाइटिंग टेंपरेरी' तैलीय माध्यम में बनी हुई है। वह ब्रिटिश वाटरकलर लैंडस्केप चित्रकारी के महानतम पुरोधा भी थे। टर्नर ने अपनी कला के द्वारा प्रकाश का प्रयोग विकसित किया। | + | ||[[इंग्लैंड]] के भू-दृश्य (लैंडस्केप) [[चित्रकार|चित्रकारों]] में जोसेफ मैलॉर्ड विलियम टर्नर (1775-1851 ई.) को अद्भुत प्रतिभाशाली एवं संयमी कलाकार माना जाता है। उनका कार्य प्रभाववादियों के लिए एक रोमांटिक प्रस्तावना के रूप में जाना जाता है। वह अपने तैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध थे। वर्ष 1839 में उनके द्वारा चित्रित चित्र 'द फाइटिंग टेंपरेरी' तैलीय माध्यम में बनी हुई है। वह ब्रिटिश वाटरकलर लैंडस्केप चित्रकारी के महानतम पुरोधा भी थे। टर्नर ने अपनी कला के द्वारा [[प्रकाश]] का प्रयोग विकसित किया। |
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11:38, 20 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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