"बटुकेश्वर दत्त" के अवतरणों में अंतर

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'''बटुकेश्वर दत्त''' एक प्रसिद्ध क्रान्तिकारी हैं जिनका जन्म नवम्बर, 1908 में [[कानपुर]] में हुआ था। उनका पैत्रिक गाँव [[बंगाल]] के 'बर्दवान ज़िले' में था, पर [[पिता]] 'गोष्ठ बिहारी दत्त' कानपुर में नौकरी करते थे। बटुकेश्वर ने 1925 ई. में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी माता व पिता दोनों का देहान्त हो गया। इसी समय वे सरदार [[भगतसिंह]] और [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन’ के सदस्य बन गए। [[सुखदेव]] और [[राजगुरु]] के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया।
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'''बटुकेश्वर दत्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Batukeshwar Dutt'', जन्म- [[18 नवम्बर]], [[1910]]; मृत्यु- [[20 जुलाई]], [[1965]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। देश ने सबसे पहले [[8 अप्रैल]], [[1929]] को उन्हें उस समय जाना, जब वे [[भगतसिंह]] के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होंने [[आगरा]] में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था। सन [[1924]] में [[कानपुर]] में बटुकेश्वर दत्त की भगतसिंह से भेंट हुई थी। इसके बाद उन्होंने 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया और इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।
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==परिचय==
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बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर, 1910 को [[बंगाली भाषा|बंगाली]] [[कायस्थ]] [[परिवार]] में ग्राम-औरी, ज़िला-नानी बेदवान ([[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]]) में हुआ था। उनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के [[वर्धमान ज़िला]] अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। बटुकेश्वर दत्त का पैत्रिक गाँव [[बंगाल]] के 'बर्दवान ज़िले' में था, पर [[पिता]] 'गोष्ठ बिहारी दत्त' कानपुर में नौकरी करते थे।
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बटुकेश्वर की स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज, [[कानपुर]] में सम्पन्न हुई। उन्होंने [[1924]] में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी [[माता]] [[पिता]] दोनों का देहान्त हो गया। इसी समय वे [[भगतसिंह|सरदार भगतसिंह]] और [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन’ के सदस्य बन गए। [[सुखदेव]] और [[राजगुरु]] के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा। आज़ादी के बाद [[नवम्बर]], [[1947]] में अंजली दत्त से शादी करने के बाद बटुकेश्वर दत्त [[पटना]] में रहने लगे थे। उनको अपना सदस्य बनाने का गौरव 'बिहार विधान परिषद' ने [[1963]] में प्राप्त किया था।
 
==प्रतिशोध की भावना==
 
==प्रतिशोध की भावना==
 
विदेशी सरकार जनता पर जो अत्याचार कर रही थी, उसका बदला लेने और उसे चुनौती देने के लिए क्रान्तिकारियों ने अनेक काम किए। 'काकोरी' ट्रेन की लूट और [[लाहौर]] के पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या इसी क्रम में हुई। तभी सरकार ने केन्द्रीय असेम्बली में श्रमिकों की हड़ताल को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से एक बिल पेश किया। क्रान्तिकारियों ने निश्चय किया कि वे इसके विरोध में ऐसा क़दम उठायेंगे, जिससे सबका ध्यान इस ओर जायेगा।
 
विदेशी सरकार जनता पर जो अत्याचार कर रही थी, उसका बदला लेने और उसे चुनौती देने के लिए क्रान्तिकारियों ने अनेक काम किए। 'काकोरी' ट्रेन की लूट और [[लाहौर]] के पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या इसी क्रम में हुई। तभी सरकार ने केन्द्रीय असेम्बली में श्रमिकों की हड़ताल को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से एक बिल पेश किया। क्रान्तिकारियों ने निश्चय किया कि वे इसके विरोध में ऐसा क़दम उठायेंगे, जिससे सबका ध्यान इस ओर जायेगा।
 
==असेम्बली बम धमाका==
 
==असेम्बली बम धमाका==
[[8 अप्रैल]], 1929 ई. को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दर्शक दीर्घा से केन्द्रीय असेम्बली के अन्दर बम फेंककर धमाका किया। बम इस प्रकार बनाया गया था कि, किसी की भी जान न जाए। बम के साथ ही ‘लाल पर्चे’ की प्रतियाँ भी फेंकी गईं। जिनमें बम फेंकने का क्रान्तिकारियों का उद्देश्य स्पष्ट किया गया था। दोनों ने बच निकलने का कोई प्रयत्न नहीं किया, क्योंकि वे अदालत में बयान देकर अपने विचारों से सबको परिचित कराना चाहते थे। साथ ही इस भ्रम को भी समाप्त करना चाहते थे कि काम करके क्रान्तिकारी तो बच निकलते हैं, अन्य लोगों को पुलिस सताती है।
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[[8 अप्रैल]], 1929 ई. को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दर्शक दीर्घा से केन्द्रीय असेम्बली के अन्दर बम फेंककर धमाका किया। बम इस प्रकार बनाया गया था कि, किसी की भी जान न जाए। बम के साथ ही ‘लाल पर्चे’ की प्रतियाँ भी फेंकी गईं, जिनमें बम फेंकने का क्रान्तिकारियों का उद्देश्य स्पष्ट किया गया था। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से 'पब्लिक सेफ़्टी बिल' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया। असेम्बली में बम फेंकने के बाद बटुकेश्वर दत्त तथा भगतसिंह ने भागकर बच निकलने का कोई प्रयत्न नहीं किया, क्योंकि वे अदालत में बयान देकर अपने विचारों से सबको परिचित कराना चाहते थे। साथ ही इस भ्रम को भी समाप्त करना चाहते थे कि काम करके क्रान्तिकारी तो बच निकलते हैं, अन्य लोगों को पुलिस सताती है।
 
==आजीवन कारावास==
 
==आजीवन कारावास==
भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों गिरफ्तार हुए, उन पर मुक़दमा चलाया गया। [[6 जुलाई]], 1929 को [[भगतसिंह]] और बटुकेश्वर दत्त ने अदालत में जो संयुक्त बयान दिया, उसका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। इस मुक़दमें में दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा हुई। बाद में [[लाहौर]] षड़यंत्र केस में भी दोनों अभियुक्त बनाए गए। इससे भगतसिंह को फ़ाँसी की सज़ा हुई, पर बटुकेश्वर दत्त के विरुद्ध पुलिस कोई प्रमाण नहीं जुटा पाई। उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा भोगने के लिए [[अण्डमान एवं निकोबार|अण्डमान]] भेज दिया गया।
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[[भगतसिंह]] और बटुकेश्वर दत्त दोनों गिरफ्तार हुए, उन पर मुक़दमा चलाया गया। [[6 जुलाई]], [[1929]] को [[भगतसिंह]] और बटुकेश्वर दत्त ने अदालत में जो संयुक्त बयान दिया, उसका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। इस मुक़दमें में दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा हुई। सज़ा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहाँ पर भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त पर 'लाहौर षड़यंत्र केस' का मुक़दमा चलाया गया। उल्लेखनीय है कि [[साइमन कमीशन]] के विरोध-प्रदर्शन करते हुए [[लाहौर]] में [[लाला लाजपत राय]] को [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के इशारे पर अंग्रेज़ी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेज़ी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप 'लाहौर षड़यंत्र केस' चला, जिसमें [[भगतसिंह]], [[राजगुरु]] और [[सुखदेव]] को फाँसी की सज़ा दी गई थी, पर बटुकेश्वर दत्त के विरुद्ध पुलिस कोई प्रमाण नहीं जुटा पाई। उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा भोगने के लिए [[अण्डमान एवं निकोबार|अण्डमान]] भेज दिया गया।
==रिहाई==
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====काले पानी की सज़ा तथा रिहाई====
इसके पूर्व राजबन्दियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार के लिए भूख हड़ताल में बटुकेश्वर दत्त भी सम्मिलित थे। यही प्रश्न जब उन्होंने अण्डमान में उठाया तो, उन्हें बहुत सताया गया। [[गांधीजी]] के हस्तक्षेप से वे 1938 ई. में अण्डमान से बाहर आए, पर बहुत दिनों तक उनकी गतिविधियाँ प्रतिबन्धित रहीं। 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भी उन्हें गिरफ्तार किया गया था। छूटने के बाद वे [[पटना]] में रहने लगे थे।
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बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने [[1933]] और [[1937]] में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। [[सेल्यूलर जेल]] से 1937 में वे बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, [[पटना]] में लाए गए और [[1938]] में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे बटुकेश्वर दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद [[1945]] में रिहा किए गए।
==निधन==
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====बिहार विधान परिषद के सदस्य====
एक दुर्घटना में घायल हो जाने के कारण [[19 जुलाई]], 1965 को [[दिल्ली]] में बटुकेश्वर दत्त का देहान्त हो गया। 
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आज़ादी के बाद [[नवम्बर]], [[1947]] में अंजली दत्त से [[विवाह]] करने के बाद बटुकेश्वर दत्त [[पटना]] में रहने लगे। बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव 'बिहार विधान परिषद' ने [[1963]] में प्राप्त किया।
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==मृत्यु==
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बटुकेश्वर दत्त की मृत्यु [[20 जुलाई]], [[1965]] को [[नई दिल्ली]] स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद उनका [[दाह संस्कार]] उनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- [[भगतसिंह]], [[राजगुरु]] एवं [[सुखदेव]] के समाधि स्थल [[पंजाब]] के [[हुसैनीवाला]] में किया गया। उनकी एक पुत्री भारती बागची [[पटना]] में रहती है। बटुकेश्वर दत्त के [[विधान परिषद]] में सहयोगी रहे इन्द्र कुमार का कहना था कि 'स्व. दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित्त एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्तित रहने वाले क्रांतिकारी थे।"
  
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://bulletinofblog.blogspot.in/2013/07/48.html अमर क्रांतिकारी स्व. श्री बटुकेश्वर दत्त जी की 48 वीं पुण्य तिथि पर विशेष]
 
==संबंधित लेख==
 
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बटुकेश्वर दत्त
बटुकेश्वर दत्त
पूरा नाम बटुकेश्वर दत्त
जन्म 18 नवम्बर, 1910
जन्म भूमि ग्राम-औरी, ज़िला-नानी बेदवान (बंगाल)
मृत्यु 20 जुलाई, 1965
मृत्यु स्थान दिल्ली
अभिभावक पिता- गोष्ठ बिहारी दत्त
पति/पत्नी अंजली दत्त
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
जेल यात्रा केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकने के कारण इन्हें भगतसिंह के साथ आजीवन कारावास की सज़ा हुई।
संबंधित लेख भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, सुभाषचंद्र बोस
अन्य जानकारी 8 अप्रैल, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दर्शक दीर्घा से केन्द्रीय असेम्बली के अन्दर बम फेंककर धमाका किया। बम के साथ ही ‘लाल पर्चे’ की प्रतियाँ भी फेंकी गई थीं।

बटुकेश्वर दत्त (अंग्रेज़ी: Batukeshwar Dutt, जन्म- 18 नवम्बर, 1910; मृत्यु- 20 जुलाई, 1965) भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। देश ने सबसे पहले 8 अप्रैल, 1929 को उन्हें उस समय जाना, जब वे भगतसिंह के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होंने आगरा में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था। सन 1924 में कानपुर में बटुकेश्वर दत्त की भगतसिंह से भेंट हुई थी। इसके बाद उन्होंने 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया और इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।

परिचय

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर, 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, ज़िला-नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था। उनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान ज़िला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। बटुकेश्वर दत्त का पैत्रिक गाँव बंगाल के 'बर्दवान ज़िले' में था, पर पिता 'गोष्ठ बिहारी दत्त' कानपुर में नौकरी करते थे।

बटुकेश्वर की स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज, कानपुर में सम्पन्न हुई। उन्होंने 1924 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी मातापिता दोनों का देहान्त हो गया। इसी समय वे सरदार भगतसिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन’ के सदस्य बन गए। सुखदेव और राजगुरु के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा। आज़ादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से शादी करने के बाद बटुकेश्वर दत्त पटना में रहने लगे थे। उनको अपना सदस्य बनाने का गौरव 'बिहार विधान परिषद' ने 1963 में प्राप्त किया था।

प्रतिशोध की भावना

विदेशी सरकार जनता पर जो अत्याचार कर रही थी, उसका बदला लेने और उसे चुनौती देने के लिए क्रान्तिकारियों ने अनेक काम किए। 'काकोरी' ट्रेन की लूट और लाहौर के पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या इसी क्रम में हुई। तभी सरकार ने केन्द्रीय असेम्बली में श्रमिकों की हड़ताल को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से एक बिल पेश किया। क्रान्तिकारियों ने निश्चय किया कि वे इसके विरोध में ऐसा क़दम उठायेंगे, जिससे सबका ध्यान इस ओर जायेगा।

असेम्बली बम धमाका

8 अप्रैल, 1929 ई. को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दर्शक दीर्घा से केन्द्रीय असेम्बली के अन्दर बम फेंककर धमाका किया। बम इस प्रकार बनाया गया था कि, किसी की भी जान न जाए। बम के साथ ही ‘लाल पर्चे’ की प्रतियाँ भी फेंकी गईं, जिनमें बम फेंकने का क्रान्तिकारियों का उद्देश्य स्पष्ट किया गया था। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से 'पब्लिक सेफ़्टी बिल' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया। असेम्बली में बम फेंकने के बाद बटुकेश्वर दत्त तथा भगतसिंह ने भागकर बच निकलने का कोई प्रयत्न नहीं किया, क्योंकि वे अदालत में बयान देकर अपने विचारों से सबको परिचित कराना चाहते थे। साथ ही इस भ्रम को भी समाप्त करना चाहते थे कि काम करके क्रान्तिकारी तो बच निकलते हैं, अन्य लोगों को पुलिस सताती है।

आजीवन कारावास

भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों गिरफ्तार हुए, उन पर मुक़दमा चलाया गया। 6 जुलाई, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अदालत में जो संयुक्त बयान दिया, उसका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। इस मुक़दमें में दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा हुई। सज़ा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहाँ पर भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त पर 'लाहौर षड़यंत्र केस' का मुक़दमा चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेज़ों के इशारे पर अंग्रेज़ी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेज़ी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप 'लाहौर षड़यंत्र केस' चला, जिसमें भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा दी गई थी, पर बटुकेश्वर दत्त के विरुद्ध पुलिस कोई प्रमाण नहीं जुटा पाई। उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा भोगने के लिए अण्डमान भेज दिया गया।

काले पानी की सज़ा तथा रिहाई

बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में वे बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे बटुकेश्वर दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।

बिहार विधान परिषद के सदस्य

आज़ादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से विवाह करने के बाद बटुकेश्वर दत्त पटना में रहने लगे। बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव 'बिहार विधान परिषद' ने 1963 में प्राप्त किया।

मृत्यु

बटुकेश्वर दत्त की मृत्यु 20 जुलाई, 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद उनका दाह संस्कार उनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेव के समाधि स्थल पंजाब के हुसैनीवाला में किया गया। उनकी एक पुत्री भारती बागची पटना में रहती है। बटुकेश्वर दत्त के विधान परिषद में सहयोगी रहे इन्द्र कुमार का कहना था कि 'स्व. दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित्त एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्तित रहने वाले क्रांतिकारी थे।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 507।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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