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*उत्तरायन के छह महीनों में सूर्य मकर से मिथुन तक भ्रमण करते हैं।
 
*उत्तरायन के छह महीनों में सूर्य मकर से मिथुन तक भ्रमण करते हैं।
 
*उत्तरायन काल को प्राचीन ऋषि मुनियों ने पराविद्याओं, जप, तप, सिद्धि प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना है।  
 
*उत्तरायन काल को प्राचीन ऋषि मुनियों ने पराविद्याओं, जप, तप, सिद्धि प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना है।  
*[[मकर संक्रांति]] उत्तरायन काल का प्रारंभ दिन है इसलिए इस दिन किया गया दान, पुण्य, अक्षय फलदायी होता है।
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*[[मकर संक्राति]] उत्तरायन काल का प्रारंभ दिन है इसलिए इस दिन किया गया दान, पुण्य, अक्षय फलदायी होता है।
 
*[[सूर्य ग्रह|सूर्य]] के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के कारण इसे मकर संक्रांति कहते हैं।
 
*[[सूर्य ग्रह|सूर्य]] के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के कारण इसे मकर संक्रांति कहते हैं।
 
*इसे सौम्य आयन भी कहते है। जब सूर्य मकर राशि में अर्थात २१-२२ दिसम्बर से लेकर मिथुन के सूर्य तक रहता है।  
 
*इसे सौम्य आयन भी कहते है। जब सूर्य मकर राशि में अर्थात २१-२२ दिसम्बर से लेकर मिथुन के सूर्य तक रहता है।  

13:06, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • उत्तरायण शब्द 'उत्तर' एवं 'अयन' इन दो शब्दों से बना है।
  • 'अयन' का अर्थ होता है चलना।
  • सूर्य के उत्तर दिशा में अयन अर्थात गमन को उत्तरायन कहा जाता है।
  • आधे वर्ष तक सूर्य, आकाश के उत्तर गोलार्ध में रहता है।
  • उत्तरायन के छह महीनों में सूर्य मकर से मिथुन तक भ्रमण करते हैं।
  • उत्तरायन काल को प्राचीन ऋषि मुनियों ने पराविद्याओं, जप, तप, सिद्धि प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना है।
  • मकर संक्राति उत्तरायन काल का प्रारंभ दिन है इसलिए इस दिन किया गया दान, पुण्य, अक्षय फलदायी होता है।
  • सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के कारण इसे मकर संक्रांति कहते हैं।
  • इसे सौम्य आयन भी कहते है। जब सूर्य मकर राशि में अर्थात २१-२२ दिसम्बर से लेकर मिथुन के सूर्य तक रहता है।
  • छ: मास का समय उत्तरायण कहलाता है।
  • भारतीय मास के अनुसार यह माघ मास से आषाढ़ मास तक माना जाता है।
  • उत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता है।
  • इस समय में सूर्य देवताओं का अधिपति होता है।
  • शिशिर , वसन्त और ग्रीष्म ऋतु उत्तरायण सूर्य का संगठन करती है।
  • इस अयन में नूतन गृह प्रवेश, दीक्षा ग्रहण, देवता -बाग़ -कुआँ- बाबडी- तालाब आदि की प्रतिष्ठा, विवाह, चूडाकर्म और यज्ञोंपवीत आदि संस्कार करना अच्छा माना जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ