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12:23, 8 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

सरजूराम पंडित ने 'जैमिनीपुराण भाषा' नामक एक कथात्मक ग्रंथ संवत् 1805 में बनाकर तैयार किया। इन्होंने अपना कुछ भी परिचय अपने ग्रंथ में नहीं दिया है। जैमिनीपुराण दोहों, चौपाइयों में तथा और कई छंदों में लिखा गया है और 36 अध्यायों में समाप्त हुआ है। इसमें बहुत सी कथाएँ आई हैं; जैसे - युधिष्ठर का राजसूय यज्ञ, संक्षिप्त रामायण, सीतात्याग, लवकुश युद्ध , मयूरधवज, चंद्रहास आदि राजाओं की कथाएँ। चौपाइयों का ढंग 'रामचरितमानस' का सा है। कविता इनकी अच्छी हुई है। उसमें गांभीर्य है -

गुरुपद पंकज पावन रेनू।
गुरुपद रज अज हरिहर धामा।
तब लगि जग जड़ जीव भुलाना।
श्री गुरु पंकज पाँव पसाऊ।
सुमिरत होत हृदय असनाना।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 249।

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