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रॉलेट एक्ट

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रॉलेक्ट एक्ट / Rowlatt Act

केन्द्रीय विधान परिषद के सभी सदस्यों द्वारा विरोध करने के बावजूद अंग्रेज सरकार ने रॉलेक्ट एक्ट पारित का दिया। इस अधिनियम से सरकार को यह अधिकार मिल गया कि वह किसी भी व्यक्ति को न्यायालय में मुक़दमा चलाये बिना अथवा दोषी सिध्द किये बिना ही जेल में बंद कर सकती है।

इस अधिनियम से सरकार वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार को स्थगित कर सकती थी। वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार ब्रिटेन में नागरिक अधिकारों का मूलभूत आधार था। रॉलेक्ट एक्ट एक झंझावत की तरह आया। युध्द के दौरान भारतीय लोगों को जनतंत्र के विस्तार का सपना दिखाया गया था। उन्हें ब्रिटिश सरकार का यह कदम एक क्रूर मज़ाक सा लगा।

जनतांत्रिक अधिकारों का विकास करने के बजाय नागरिक अधिकारों पर और ज़्यादा अंकुश लगाने से देश में असंतोष की लहर सी उमड़ पड़ी। इसके परिणामस्वरूप इस अधिनियम के ख़िलाफ एक ज़बरदस्त आंदोलन उठ खड़ा हुआ। इस आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन की बाग़डोर एक नये नेता मोहनदास करमचंद गाँधी ने सँभाली।