छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 खण्ड-2

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रेणु (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:07, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण ('*छान्दोग्य उपनिषद के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2|अध...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • इस खण्ड में साम का भाव साधुतापूर्ण-सदाशयतापूर्ण बताया गया है। 'उद्गीथ' ही साम हे।
  • ऊर्ध्व लोकों में पांच प्रकार से साम की उपासना की जाती है।
  • पृथ्वी को 'हिंकार', अग्नि को 'प्रस्ताव,'अन्तरिक्ष को 'उद्गीथ' और आदित्य को 'प्रतिहार' तथा द्युलोक को 'निधन' माना जाता है।
  • इसी प्रकार अधोमुख लोकों में भी पांच प्रकार से साम की उपासना की जाती है।
  • यहाँ स्वर्ग 'हिंकार' है, आदित्य 'प्रस्ताव' है, अन्तरिक्ष 'उद्गीथ' है, अग्नि 'प्रतिहार' है और पृथिवी 'निधन' है।
  • पंचविध साम की उपासना से ऊर्ध्व और अधोलोकों के समस्त भोग सहज प्राप्त हो जाते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख