कामरेड धनवंतरी
कामरेड धनवंतरी (जन्म- अप्रैल, 1903, लाहौर; मृत्यु- 1953) भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। इनके पिता भारतीय सेना में स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर नियुक्त थे। कामरेड धनवंतरी पर आर्य समाज का बड़ा प्रभाव था। वे देश के प्रमुख क्रांतिकारियों में गिने जाने वाले सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, बटुकेश्वर दत्त और भगवती चरण आदि के निकट सहयोगियों थे। 'दिल्ली षड़यंत्र केस' के तहत कामरेड जी को 10 वर्ष की सज़ा हुई थी। शेख़ अब्दुल्ला के 'आज़ाद कश्मीर आंदोलन' के कारण कामरेड धनवंतरी का उनसे मतभेद भी हुआ, क्योंकि वे सिर्फ़ राष्ट्रीय एकता के समर्थक थे और देश की जनता को एक सूत्र में बाँधना चाहते थे।
प्रसिद्ध क्रातिकारी कामरेड धनवंतरी का जन्म अप्रैल ,1903 में जम्मू में हुआ था।उनके पिता कर्नल दुर्गादत्त भारतीय सेना में स्वास्थ्य अधिकारी थे। धनवंतरी शिक्षा जम्मू और लाहौर के ड़ी .ए. वी काँलेज में हुई।फिर उन्होंने आयुवेदिक कालेज लाहौर से वैद्यक विराज और वैद्यवाचस्पति की डिग्रियां लीं।
ड़ी .ए. वी .काँलेज के दिनों से ही उन पर राजनीतिक प्रभाव पड़ने लगा था। कविराज हरनाम दास के माध्यम से वे आर्यसमाज के प्रभाव में आए। फिर उनका संपर्क सरदार भगतसिंह ,चंद्रशेखर आजाद ,बटुकेश्वर दत्ता, भगवती चरण आदि क्रांतिकारियों से हुआ और वे उनके सहयोगी बन गए। धनवंतरी ने पंजाब में पंजाब में क्रातिकारी दल का संगठन किया। नवजवान भारत सभा और बाल भारत सभाएं गाठित की। सांडर्स हत्याकांड में गिरफ्तार करके उन पर भी मुकदमा चला पर सबूत न मिलने के कारण छोड़ दिए गए। फिर एक राजनीतिक डकैती के सिलसिले में उनकी गिरफ्तारी के लिए पांच हजार रूपये का इनाम घोषित किया गया था। गिरफ्तारी के बाद दिल्ली षड़्यत्र केस में उन्हें 10 वर्ष की सजा हुई ,जो बाद मे 7 वर्ष करके 1933 में उन्हें अंडमान भेज दिया गया। वहां पर काम रेड ने राजबदियों को अंडमान भेजने के विरोध में 60 दिन की भूख ह़ड़ताल की थी।
अंडमान में उन्हें माकर्सवादी विचारों से परिचित होने का अवसर मिला। अब वे देश की आजादी के लिए सशस्त्र क्राति के स्थान पर श्रमिक वर्ग के संगठन पर जोर देने लगे 1937 में प्रदेशों में नई सरकारें बनने के बाद वे अंडमान से वापस आए और 1939 तक मुल्तान और मांटगोमरी की जेलों में नजरबंद रहे। 1939 में रिहा होने पर वे लाहौर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और अखिल भारतीय कांग्रेस के सदस्य चुने गए। 1940 में उन्हें नजरबंद कर दिया गया औऱ 1946 में मुक्त हुए। इसके बाद वे कश्मीर गए और पाकिस्तानी हमलावरों के विरूद्ध लोगों का संगाठित किया। शेख अब्दुल्ला के आजाद कश्मीर आंदोलन के कारण कामरेड का उनसे मतभेद हो गया, क्योकि वे राष्ट्रीय एकता के समर्थक थे। 1953 में उनका देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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