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पोस्ट संबंधित चित्र दिनांक

मकर संक्रांति निकल गयी, सर्दी कम होने के आसार थे, लेकिन हुई नहीं, होती भी कैसे 'चिल्ला जाड़े' जो चल रहे हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं-
"हवा का ऐसा ठंडा, चुभने वाला, बिच्छू के डंक का-सा झोंका लगा"
अमर कहानीकार मोपासां ने लिखा है-
"ठंड ऐसी पड़ रही थी कि पत्थर भी चटक जाय"
जाड़ा इस बार ज़्यादा पड़ रहा है। ज़बर्दस्त जाड़ा याने कि 'किटकिटी' वाली ठंड के लिए मेरी माँ कहती हैं-"चिल्ला जाड़ा चल रहा है"
मैं सोचा करता था कि जिस ठंड में चिल्लाने लगें तो वही 'चिल्ला जाड़ा!' लेकिन मन में ये बात तो रहती थी कि शायद मैं ग़लत हूँ। बाबरनामा (तुज़कि बाबरी) में बाबर ने लिखा है कि इतनी ठंड पड़ रही है कि 'कमान का चिल्ला' भी नहीं चढ़ता याने धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) जो चमड़े की होती थी, वह ठंड से सिकुड़ कर छोटी हो जाती थी और आसानी से धनुष पर नहीं चढ़ पाती थी, तब मैंने सोचा कि शायद कमान के चिल्ले की वजह से चिल्ला जाड़े कहते हैं लेकिन बाद में मेरे इस हास्यास्पद शोध को तब बड़ा धक्का लगा जब पता चला कि 'चिल्ला' शब्द फ़ारसी भाषा में चालीस दिन के अंतराल के लिए कहा जाता है, फिर ध्यान आया कि अरे हाँ... कहा भी तो 'चालीस दिन का चिल्ला' ही जाता है।

17 जनवरी, 2014

हमको मालूम है इन सब की हक़ीक़त लेकिन
दिल-ए-ख़ुशफ़हमी को कुछ दिन ये 'आप' अच्छा है

-जनाब असद उल्ला ख़ां ग़ालिब की याद में

15 जनवरी, 2014

विश्व के महानतम निर्देशकों में अल्फ़्रेड हिचकॉक का नाम आता है। वे मेरे बेहद पसंदीदा सिनेमा निर्देशकों में से एक रहे हैं। पिछले वर्ष उनके जीवन पर बनी फ़िल्म 'Hichcock' देखी। इसमें ऍन्थनी हॉपकिन (Anthony Hopkins) ने हिचकॉक की भूमिका की है। वे भी महान कलाकार हैं और मेरे पसंदीदा ऍक्टर हैं। यह फ़िल्म मेरी पसंदीदा और हिचकॉक की मशहूर फ़िल्म साइको (Psycho) के निर्माण पर आधारित है। हमेशा की तरह इस फ़िल्म में भी ऍन्थनी हॉपकिन का अभिनय देखने लायक़ है।
हिचकॉक की फ़िल्मों की नक़लें सारी दुनिया में होती रही है। उनकी फ़िल्म वर्टीगो (Vertigo) मुझे बहुत पसंद है। ये एक ज़बर्दस्त थ्रिलर है। इसमें हीरो ऍक्रोफ़ोबिया (Acrophobia) का मरीज़ होता है। ऍक्रोफ़ोबिया एक ऐसी फ़ोबिया है जिसमें बहुत ऊँचाई से नीचे देखने पर चक्कर आते हैं। राज़ की बात ये है कि मैं मुझे भी ऍक्रोफ़ोबिया है। हा हा हा

Hitchcock.jpg
14 जनवरी, 2014

जो सीमाओं में बंधकर जीते हैं
उनका जीवन
उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाता है सीमाओं के परे, खुले आकाश में
विचरण करने वालों का जीवन
अनन्त काल तक चलता है।

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14 जनवरी, 2014

भारत जैसे विशाल गणतंत्र के समग्र विकास के लिए
60-70 वर्ष का समय सामान्यत: बहुत कम है
भारत की आज़ादी को अभी इतना समय नहीं हुआ
कि भारत के संविधान का सही मूल्यांकन हो सके
भारत का गणतंत्र और संविधान अभी शैशवावस्था में ही हैं
फिर भी यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि इस शताब्दी में भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली देश होगा।

Seemao se bandhkar.jpg
14 जनवरी, 2014