के. एम. नानावती

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कवास मानेकशॉ नानावती (अंग्रेज़ी: Kawas Manekshaw Nanavati, जन्म- 1925; मृत्यु- 2003) एक पारसी थे, जो नौसेना के होनहार अफसरों में गिने जाते थे। ब्रिटेन के रॉयल नेवी कॉलेज के छात्र रहे के. एम. नानावटी आईएनएस मैसूर के सेकेंड इन कमांड थे। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कई मोर्चों पर वे लड़ चुके थे। ब्रिटेन द्वारा कई वीरता पुरस्कारों से उन्हें नवाजा जा चुका था। के. एम. नानावटी पर एक सिंधी नौजवान व्यापारी प्रेम आहूजा की हत्या का आरोप लगा। प्रेम आहूजा, के. एम. नानावटी की पत्नी सिल्विया का प्रेमी था। के. एम. नानावटी पर मुकदमा चला, जो 'नानावती कांड' के रूप में मशहूर हुआ। आज़ाद भारत में सेना के अफसर पर चलने वाला यह पहला ऐसा मुकदमा था, जिसकी अनुगूँज आज तक सुनाई देती है। यह पहला मामला था, जिसमें पारसियों ने एक हत्यारे को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। सिंधी अन्याय के विरोध में सड़क पर आ गए। हत्या जैसा जुर्म करने के बाद भी नौसेना अपने होनहार अधिकारी के पक्ष में डटकर खड़ी हो गई। वकीलों की दलीलें मीडिया की सुर्खियाँ बन गईं और मी‌डिया की दलीलों से जूरी ने फैसले दिए। फैसले के बाद 'नानावती कांड' पर नाटक और उपन्यास लिखे गए तथा कई फ़िल्में भी बनीं।

परिचय

के. एम. नानावटी नौसेना के होनहार अधिकारियों में से एक थे। वे ब्रिटेन के डॉर्टमाउथ स्थित रॉयल नेवी कॉलेज के छात्र और आईएनएस मैसूर के सेकंड इन कमांड थे। खूबसूरत और गठीले डीलडौल के नानावती दूसरे विश्वयुद्ध के दरमियान कई मोर्चों पर लड़ चुके थे। ‌ब्रिटिश हुक्मरानों ने उन्हें वीरता पुरस्कारों से भी नवाजा था। उनकी पत्नी का नाम सिल्विया था, जो अंग्रेज़ मूल की थीं। सिल्विया से के. एम. नानावटी की भेंट 1949 में लंदन में हुई ‌थी। के. एम. नानावटी अंग्रेज़ पत्नी सिल्विया और तीन बच्चों (दो पुत्र, एक पुत्री) के साथ मुंबई में रहने लगे थे।

पत्नी का प्रेम-सम्बन्ध

के. एम. नानावटी को घर से दूर रहना पड़ता था। ऐसे में उनकी पत्नी सिल्विया बच्चों के साथ अकेली मुम्बई में रहती थी। अकेलेपन के कारण सिल्विया के जीवन में प्रेम भगवानदास आहूजा नाम के एक दोस्त ने दस्तक दी। प्रेम आहूजा एक सिंधी नौजवान व्यापारी था। सिल्विया और प्रेम आहूजा एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। सिल्विया प्रेम आहूजा से विवाह करना चाहती थीं और के. एम. नानावाती को तलाक देना चाहती थी। लेकिन प्रेम आहूजा ऐसा नहीं चाहता था, यहीं से सिल्विया को उस पर शक होने लगा। कुछ समय बाद सिल्विया को प्रेम आहूजा के दूसरे प्रेम सम्बंध का भी पता चलता है। 1 नवम्बर, 1958 को जब के. एम. नानावटी अपने काम से मुम्बई पहुँचते हैं तो घर में अपनी पत्नी सिल्विया को बहुत परेशान देखते हैं। उनके पूछने पर सिल्विया अपने प्रेम सम्बंध के बारे में उन्हें सब कुछ बता देती है।

प्रेम आहूजा की हत्या

स‌िल्विया की उस आत्म‌स्वीकृति ने नानावती के मन पर क्या असर डाला, इसकी भनक भी उसे नहीं लग पाई। कुछ समय बाद के. एम. नानावटी पत्नी और बच्चों को फ़िल्म दिखाने के लिए ले जाते हैं। वे पत्नी सिल्विया और बच्‍चों को मेट्रो सिनेमा पर छोड़ देते हैं। उन्हें उस दिन का मैटिनी शो देखना था, ये पहले से तय था। उन्हें छोड़ने के बाद नानावती बांबे हॉर्बर की ओर गए, उनकी बोट उन‌ दिनों वहीं खड़ी थी। उन्होंने कैप्टन से कहा कि- "वे अहमदनगर जा रहे हैं, उन्हें रिवॉल्वर और छ: गोलियों की जरूरत है।" उन्होंने बंदूक एक पैकेट में रखी और अपनी कार से यूनिवर्सल मोटर्स की ओर बढ़ गए। ये पेडर रोड पर गाड़ियों का शोरूम था, जिसका मालिक प्रेम आहूजा था। उस समय कार में नौसेना का एक अधिकारी‌ सवार नहीं था, बल्‍कि एक ऐसा पति था, जिसकी पत्नी ने उसे धोखा दिया था। के. एम. नानावटी के पास रिवॉल्वर और छ: गोलियां थी।

आहूजा उस दोपहर अपने शोरूम पर नहीं था। वह दोपहर का भोजन करने घर गया था। शोरूम पर तफ्तीश के बाद नानावती अपनी कार में लौट आए। कार मालाबार हिल की ओर मुड़ गई थी और मंजिल थी नेपियर सीरोड की सितलवाड़ लेन का एक मकान। इसी मकान में प्रेम आहूजा रहता था। आहूजा शानदार डांसर था और फरेब करना उसका शौक था। उस समय के मुंबई के मशहूर टेब्लॉयड ब्लिट्ज ने आहूजा के बारे में लिखा था कि- "आहूजा एक ऐसा लंपट था, जिसे दूसरों के चारागाह में मुंह डालना अच्छा लगता था।" आहूजा का परिवार करांची से मुंबई आया था। वह अपनी बहन मेमी के साथ रहता था। के. एम. नानावटी की कार आहूजा के मकान के बाहर थी और आहूजा उस समय नहा रहा था। आहूजा नहाकर बाहर आ गया था। उसकी नौकरानी नानावती को तीसरी मंजिल पर बने उस अपार्टमेंट तक लाई। आहूजा के अपार्टमेंट में नानावती ने खामोशी से कदम रखा। वे सीधे आहूजा के बेडरूम में गए और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। चंद मिनटों तक सन्नाटा रहा और उसके बाद तीन गोलियों की आवाज़ सुनाई दीं। आहूजा लहूलुहान जमीन पर गिर पड़ा था। नानावती अपने कार से मालाबार हिल की ओर बढ़ गए। राजभवन के गेट पर रुककर उन्होंने एक कांस्टेबल से नजदीकी पुलिस स्टेशन का पता पूछा। वे उस स्टेशन में गए और आत्मसमर्पण कर दिया। गामदेवी पुलिस स्टेशन के सभी पुलिस कर्मचारी कुछ क्षणों के ‌लिए सकते में आ गए।



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