मंगलयान

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मंगलयान (औपचारिक नाम- 'मंगल कक्षित्र मिशन', अंग्रेज़ी- Mars Orbiter Mission, संक्षिप्त नाम- MOM) भारत का प्रथम मंगल अभियान है। वस्तुत: यह 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (इसरो) की महत्त्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवम्बर, 2013 को मंगल ग्रह की परिक्रमा करने के लिये छोड़ा गया एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया। 24 सितंबर, 2014 को यह मंगल पर पहुँच गया। इसके साथ ही भारत उन देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। भारत विश्व का ऐसा पहला देश है, जिसने अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर उपग्रह भेजने में सफलता प्राप्त की है। इस मिशन पर भारत ने करीब 450 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज़्यादा क़िफ़ायती है।

इतिहास

इसरो के अध्यक्ष माधवन नायर द्वारा 23 नवंबर, 2008 को मंगल ग्रह के लिए एक मानव रहित मिशन की पहली सार्वजनिक अभिस्वीकृति की घोषणा की गई थी। भारत के मंगलयान मिशन की अवधारणा 2008 में चंद्र उपग्रह चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के बाद अंतरिक्ष विज्ञान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा 2010 में एक व्यवहार्यता अध्ययन के साथ शुरू हुई। भारत सरकार ने इस परियोजना को 3 अगस्त, 2012 में मंजूरी दे दी थी। 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' ने 125 करोड़ रुपये के ऑर्बिटर के लिए आवश्यक अध्ययन पूरा किया। परियोजना की कुल लागत 450 करोड़ रुपये हुई। अंतरिक्ष एजेंसी ने 28 अक्टूबर, 2013 को प्रक्षेपण की योजना बनाई, लेकिन प्रशांत महासागर में खराब मौसम के कारण इसरो के अंतरिक्ष यान, ट्रैकिंग जहाजों को पहुंचने में देरी हुई। इस कारण अभियान को 5 नवंबर, 2013 तक स्थगित कर दिया गया।

ईंधन की बचत के लिए होहमान्न स्थानांतरण कक्षा में प्रक्षेपण के अवसर हर 26 महीने में घटित होते हैं। पीएसएलवी-एक्सएल लांच सी25 वाहन को जोड़ने का कार्य 5 अगस्त, 2013 को शुरू हुआ था। मंगलयान को वाहन के साथ जोड़ने के लिए 2 अक्टूबर, 2013 को श्रीहरिकोटा भेज दिया गया। उपग्रह के विकास को तेजी से रिकॉर्ड 15 महीने में पूरा किया गया। अमेरिका की संघीय सरकार के बंद के बावजूद नासा ने 5 अक्टूबर, 2013 को मिशन के लिए संचार और नेविगेशन समर्थन प्रदान करने की पुष्टि की। 30 सितंबर, 2014 को एक बैठक के दौरान नासा और इसरो के अधिकारियों ने मंगल ग्रह के भविष्य के संयुक्त मिशन के लिए मार्ग स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए तथा दोनों देशों ने मंगलयान और मेवेन अंतरिक्ष यानों के आंकड़े को साझा करने का फैसला किया।

सफलता

24 सितंबर, 2014 को मंगल पर पहुँचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है। भारत एशिया का भी ऐसा करने वाला प्रथम पहला देश बन गया, क्योंकि इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे।

भारत का मंगलयान 67 करोड़ किलोमीटर का सफर पूरा कर पहली ही कोशिश में सीधे मंगल ग्रह की कक्षा में जा पहुंचा। दुनिया के तमाम देशों ने मंगल के करीब पहुंचने के लिए अब तक 51 मिशन छोड़े हैं। इनमें से कामयाब हुए सिर्फ 21, लेकिन पहली ही कोशिश में कामयाबी मिली सिर्फ भारत को और मंगल पर पहुंच गया 'मार्स ऑर्बिटर मिशन' यानी MOM। वह दिन बुधवार (24 सितंबर, 2014) का था, लेकिन चारों तरफ बात मंगल की हो रही थी। सुबह से ही समूचे देश की सांसें थमी थीं। निगाहें इसरो के मंगल मिशन पर थीं। करीब 7 बजकर 31 मिनट पर मंगल यान का इंजन चालू करने के बाद करीब 30 मिनट बहुत भारी थे। कुछ भी हो सकता था। सफलता या असफलता अगले चंद मिनटों पर ही टिकी थी। यान मंगल ग्रह के पीछे जा चुका था। रेडियो संपर्क टूट चुका था। कुछ पता नहीं था कि क्या हो रहा है। लेकिन 24 सितंबर, 2014 को 7 बजकर 58 मिनट पर यान मंगल की छाया से बाहर आ गया। चार मिनट बाद 8 बजकर 2 मिनट पर इसरो के सेंटर में खुशी की लहर दौड़ गई। मंगल मिशन कामयाब हो गया था।[1]

उद्देश्य

मंगलयान मिशन का मुख्य उद्देश्य ग्रहों के मिशन के संचालन के लिए उपग्रह डिजाइन तैयार करना, योजना बनाना और प्रबंधन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का विकास करना है। इसमें निम्न कार्य प्रमुख हैं-

  1. ऑर्बिट कुशलता - अंतरिक्ष यान का पृथ्वी की कक्षा से सूर्य केंद्रीय प्रक्षेपण पथ में स्थानांतरण करना तथा अंत में यान को मंगल ग्रह की कक्षा के प्रवेश कराना।
  2. कक्षा और दृष्टिकोण गणनाओं के विश्लेषण के लिए बल मॉडल और एल्गोरिदम का विकास करना।
  3. सभी चरणों में नेविगेशन।
  4. मिशन मंगलयान के सभी चरणों में अंतरिक्ष यान का रखरखाव।
  5. बिजली, संचार, थर्मल और पेलोड संचालन की आवश्यकताओं को पूरा करना।
  6. आपात स्थितियों को संभालने के लिए स्वायत्त सुविधाओं को शामिल करना।

वैज्ञानिक उद्देश्य

  1. मंगल ग्रह की सतह की आकृति, स्थलाकृति और खनिज का अध्ययन करके विशेषताएं पता लगाना।
  2. सुदूर संवेदन तकनीक का उपयोग कर मंगल ग्रह का माहौल के घटक सहित मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का अध्ययन करना।
  3. मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल पर सौर हवा, विकिरण और बाह्य अंतरिक्ष के गतिशीलता का अध्ययन करना।

उपकरण

भारत का मानवरहित चंद्रयान दुनिया के सामने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी के पुख़्ता सबूत लेकर आया था। इसरो की सबसे बड़ी परियोजना चंद्रयान थी। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक बुलंद हौसले के साथ मंगल मिशन की तैयारी में जुट गए थे। लेकिन मंगल की यात्रा के लिए रवानगी और चाँद की यात्रा में ज़मीन आसमान का अंतर था। चंद्रयान को अपने मिशन तक पहुंचने के लिए सिर्फ़ चार लाख किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी, जबकि मंगलयान को चालीस करोड़ किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी। मंगलयान परियोजना के ज़रिए भारत वास्तविकता में गहरे अंतरिक्ष में क़दम बढ़ाने की शुरुआत कर चुका है। यह यान अपने साथ 15 किलो के पाँच प्रयोग उपकरण ले गया है[2]-

  1. लाइमन अल्फा फोटोमीटर (LAP) - यह एक खास तरह का फोटोमीटर है। यह मंगल ग्रह के वायुमंडल में मौजूद ड्यूटेरियम और हाइड्रोजन का पता लगाएगा। इसकी मदद से वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश करेंगे की इस ग्रह से पानी कैसे गायब हुआ।
  2. मिथेन सेंसर मार्स (MSM) - यह सेंसर हवा में मौजूद मिथेन की जांच करेगा।
  3. मार्स इक्सोस्फेरिक न्यूटरल कम्पोजिशन एनालाइडर (MENCA) - यह मंगल ग्रह के वातावरण में मौजूद न्यूट्रल कम्पोजिशन की जांच करेगा।
  4. मार्स कलर कैमरा (MCC) - यह कैमरा मंगल ग्रह के सतह की तस्वीरें लेगा। इस कैमरे की तस्वीरों से वैज्ञानिक मंगल ग्रह के मौसम को भी समझ सकेंगे।
  5. थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर (TIS) - यह कैमरा मंगल ग्रह से निकलने वाली गर्मी की तस्वीरें लेगा। इसे दिन और रात दोनों समय इस्तेमाल किया जा सकेगा।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मंगल मिशन की पूरी कहानी (हिंदी) vigyanvishwa.in। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2017।
  2. मंगलयान : भारत की बड़ी छलांग (हिंदी) vigyanvishwa.in। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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