धनि रहीम गति मीन की -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:16, 4 फ़रवरी 2016 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

धनि ‘रहीम’ गति मीन की, जल बिछुरत जिय जाय।
जियत कंज तजि अनत बसि, कहा भौर को भाय॥

अर्थ

धन्य है मछली की अनन्य प्रीति! प्रेमी से विलग होकर उस पर अपने प्राण न्यौछावर कर देती है। और, यह भ्रमर, जो अपने प्रियतम कमल को छोड़कर अन्यत्र उड़ जाता है।


पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख