अंग्रेज़ और आधुनिक बिहार

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मुग़ल साम्राज्य के पतन के फलस्वरूप उत्तरी भारत में अराजकता का माहौल हो गया था। बंगाल के नवाब अलीवर्दी खाँ ने 1752 में अपने पोते सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी नियुक्‍त किया था। अलीवर्दी खां की मृत्यु के बाद 10 अप्रैल, 1753 को सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। प्लासी के मैदान में 1757 ई. में हुए प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की हार और अंग्रेजों की जीत हुई। अंग्रेजों की प्लासी के युद्ध में जीत के बाद मीर ज़ाफ़र को बंगाल का नवाब बनाया गया और उसके पुत्र मीरन को बिहार का उपनवाब बनाया गया, लेकिन बिहार की वास्तविक सत्ता बिहार के नवाब नाजिम राजा रामनारायण के हाथ में थी।[1]

गौहर अली का आक्रमण

तत्कालीन मुग़ल शहजादा अली गौहर ने इस क्षेत्र में पुनः मुग़ल सत्ता स्थापित करने की चेष्टा की, परन्तु कैप्टन नॉक्स ने अपनी सेना से गौहर अली को मार भगाया। इसी समय मुग़ल सम्राट आलमगीर द्वितीय की मृत्यु हो गई तो 1760 ई. गौहर अली ने बिहार पर आक्रमण किया और पटना स्थित अंग्रेजी फैक्ट्री में राज्याभिषेक किया और अपना नाम शाहआलम द्वितीय रखा।

बक्सर का युद्ध

अंग्रेजों ने 1760 ई. में मीर कासिम को बंगाल का गवर्नर बनाया। उसने अंग्रेजों के हस्तक्षेप से दूर रहने के लिए अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर कर दी। मीर कासिम के स्वतन्त्र आचरणों को देखकर अंग्रेजों ने उसे नवाब पद से हटा दिया। मीर कासिम मुंगेर से पटना चला आया। उसके बाद वह अवध के नवाब सिराजुद्दौला से सहायता माँगने के लिए गया। उस समय मुग़ल सम्राट शाहआलम भी अवध में था। मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं मुग़ल सम्राट शाहआलम द्वितीय से मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए एक गुट का निर्माण किया।

मीर कासिम, अवध का नवाब शुजाउद्दौला एवं मुग़ल सम्राट शाहआलम द्वितीय, इन तीनों शासकों ने चौसा में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ा। इस युद्ध में वह 22 अक्टूबर, 1764 को सर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना द्वारा पराजित हुआ। इसे बक्सर का युद्ध कहा जाता है। बक्सर के निर्णायक युद्ध में अंग्रेजों को जीत मिली। युद्ध के बाद शाहआलम अंग्रेजों के समर्थन में आ गया। उसने 1765 ई. में बिहार, बंगाल और उड़ीसा क्षेत्रों में लगान वसूली का अधिकार अंग्रेजों को दे दिया। एक सन्धि के तहत कम्पनी ने बिहार का प्रशासन चलाने के लिए एक नायब नाजिम अथवा उपप्रान्तपति के पद का सृजन किया। कम्पनी की अनुमति के बिना यह नहीं भरा जा सकता था। अंग्रेजी कम्पनी की अनुशंसा पर ही नायब नाजिम अथवा उपप्रान्तपति की नियुक्‍ति होती थी।

अंग्रेज़ निरीक्षक की नियुक्‍ति

बिहार के महत्वपूर्ण उपप्रान्तपतियों में राजा रामनारायण एवं शिताब राय प्रमुख हैं। 1761 ई. में राजवल्लभ को बिहार का उपप्रान्तपति नियुक्‍त किया गया था। 1766 ई. में पटना स्थित अंग्रेजी कम्पनी के मुख्य अधिकारी मिडलटन को राजा रामनारायण एवं राजा शिताब राय के साथ एक प्रशसन मंडल का सदस्य नियुक्‍त किया गया। 1767 ई. में राजा रामनारायण को हटाकर शिताब राय को कम्पनी द्वारा नायब दीवान बनया गया। उसी वर्ष पटना में अंग्रेजी कम्पनी का मुख्य अधिकारी टॉमस रम्बोल्ड को नियुक्‍त किया गया। 1769 ई. में प्रशासन व्यवस्था को चलाने के लिए अंग्रेज़ निरीक्षक की नियुक्‍ति हुई।

द्वैध शासन प्रणाली

1765 ई. में बक्सर के युद्ध के बाद बिहार अंग्रेजों की दीवानी हो गयी थी, लेकिन अंग्रेजी प्रशासनिक जिम्मेदारी प्रत्यक्ष रूप से नहीं थी। कोर्ट ऑफ डायरेक्टर से विचार-विमर्श करने के बाद लॉर्ड क्लाइब ने 1765 ई. में बंगाल एवं बिहार के क्षेत्रों में द्वैध शासन प्रणाली को लागू कर दिया। द्वैध शासन प्रणाली के समय बिहार का प्रशासनिक भार मिर्जा मुहम्मद कजीम खाँ (मीर जाफर का भाई) के हाथों में था। उपसूबेदार धीरज नारायण (जो राजा रामनारायण का भाई) की सहायता के लिए नियुक्‍त था। सितम्बर 1765 ई. में क्लाइब ने अजीम खाँ को हटाकर धीरज नारायण को बिहार का प्रशासक नियुक्‍त किया। बिहार प्रशासन की देखरेख के लिए तीन सदस्यीय परिषद्‌ की नियुक्‍ति 1766 ई. में की गई, जिसमें धीरज नारायण, शिताब राय और मिडलटन थे। द्वैध शासन लॉर्ड क्लाइब द्वारा लागू किया गया था, जिससे कम्पनी को दीवानी प्राप्ति होने के साथ प्रशासनिक व्यवस्था भी मजबूत हो सके। यह द्वैध शासन 1765-72 ई. तक रहा।

सन 1766 ई. में ही क्लाइब के पटना आने पर शिताब राय ने धीरज नारायण के द्वारा चालित शासन में द्वितीय आरोप लगाया। फलतः क्लाइब ने धीरज नारायण को हटाकर शिताब राय को बिहार का नायब नजीम को नियुक्‍त किया। बिहार के जमींदारों से कम्पनी को लगान वसूली करने में अत्यधिक कठिन एवं कठोर कदम उठाना पड़ता था। लगान वसूली में कठोर एवं अन्यायपूर्ण ढंग का उपयोग किया जाता था। यहाँ तक की सेना का भी उपयोग किया जाता था। जैसा कि बेतिया राज के जमींदार मुग़ल किशोर के साथ हुई थी। इसी समय में (हथवा) हूसपुरराज के जमींदार फतेह शाही ने कम्पनी को दीवानी प्रदान करने से इंकार करने के कारण सेना का उपयोग किया गया। लगान से कृषक वर्ग और आम आदमी की स्थिति अत्यन्त दयनीय होती चली गई। द्वैध शासनकाल या दीवानी काल में बिहार की जनता कम्पनी कर संग्रह से कराहने लगी। क्लाइब 29 जनवरी, 1767 को वापस चला गया। वर्सलेट उत्तराधिकारी के रूप में 26 फ़रवरी, 1767 से 4 दिसम्बर, 1767 तक बनकर आया। उसके बाद कर्रियसे 24 दिसम्बर, 1769 से 12 अप्रैल, 1772 तक उत्तराधिकारी बना। फिर भी बिहार की भयावह दयनीय स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। 1769-70 ई.में बिहार-बंगाल में भयानक अकाल पड़ा।

लगान परिषद्

1770 ई. में बिहार में एक लगान परिषद्‌ का गठन हुआ, जिसे रेवेन्यू काउंसिल ऑफ पटना के नाम से जाना जाता है। लगान्‌ परिषद के अध्यक्ष जार्ज वंसीतार्त को नियुक्‍त किया गया। इसके बाद इस पद पर थामस लेन (1773-75 ई.), फिलिप मिल्नर इशक सेज तथा इवान ला (1775-80 ई. तक) रहे। 1781 ई. में लगान परिषद को समाप्त कर दिया गया तथा उसके स्थान पर रेवेन्यू ऑफ बिहार पद की स्थापना कर दी गई। इस पद पर सर्वप्रथम विलियम मैक्सवेल को बनाया। 28 अगस्त, 1771 पत्र द्वारा कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने द्वैध शासन को समाप्त करने की घोषणा की।

नायब दीवान

13 अप्रैल, 1772 को विलियम वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर नियुक्‍त किया गया। 1772 ई. में शिताब राय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये। उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र कल्याण सिंह की बिहार के पद पर नियुक्‍ति हुई। बाद में कलकत्ता परिषद्‌ से सम्बन्ध बिगड़ जाने से उसे हटा दिया गया। उसके बाद 1779 ई. में सारण जिला शेष बिहार से अलग कर दिया गया। चार्ल्स ग्रीम को जिलाधिकारी बना दिया गया। 1781 ई. में प्रान्तीय कर परिषद्‌ को समाप्त कर रेवेन्यू चीफ की नियुक्‍ति की गई। इस समय कल्याण सिंह को रायरैयान एवं खिषाली राम को नायब दीवान नियुक्‍त कर दिया गया।

अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह

इसी समय भरवल एवं मेंसौदी के रेंटर हुसैन अली खाँ जो बनारस के राजा चैत्य सिंह के विद्रोह में शामिल था, उसे गिरफ्तार कर लिया गया। हथवा के राजा फतेह सिंह, गया के जमींदार नारायण सिंह एवं नरहर के राजा अकबर अली खाँ अंग्रेजों के खिलाफ हो गये। 1781-82 ई. में ही सुल्तानाबाद की रानी महेश्‍वरी ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। 1783 ई. में बिहार में पुनः अकाल पड़ा, जॉन शोर को इसके कारणों एवं प्रकृति की जाँच हेतु नियुक्‍त किया गया। जॉन शोर ने एक अन्‍नागार के निर्माण की सिफारिश की। 1781 ई. में ही बनारस के राजा चैत्य सिंह का विद्रोह हुआ। इसी समय हथवा के राजा फतेह सिंह, गया के जमींदार नारायण सिंह एवं नरहर के जमींदार राजा अकबर अली खाँ भी अंग्रेजों के खिलाफ खड़े थे। 1773 ई. में राजमहल, खड्‍गपुर एवं भागलपुर को एक सैन्य छावनी में तब्दील कर जगन्‍नाथ देव के विद्रोह को दबाया गया। 1803 ई. में रूपनारायण देव के ताल्लुकदारों धरम सिंह, रंजीत सिंह, मंगल सिंह के खिलाफ कलेक्टर ने डिक्री जारी की फलतः यह विद्रोह लगान न देने के लिए हुआ। 1771 ई. में चैर आदिवासियों द्वारा स्थायी बन्दोबस्त भूमि कर व्यवस्था विरोध में विद्रोह कर दिया। मीर ज़ाफ़र द्वारा सत्ता सुदृढ़ीकरण के लिए 1757-58 ई. तक खींचातानी होती रही।

अली गौहर का अभियान

मार्च, 1759 में मुग़ल शहजादा अली गौहर ने बिहार पर चढ़ाई कर दी, परन्तु रॉबर्ट क्लाइब ने उसे वापसी के लिए बाध्य कर दिया, फिर पुनः 1760 ई. बिहार पर चढ़ाई की। इस बार भी वह पराजित हो गया। 1761 ई. शाहआलम द्वितीय का अंग्रेजों के सहयोग से पटना में राज्याभिषेक किया गया। 1764 ई. में बक्सर का युद्ध हुआ। युद्ध के बाद बिहार में अनेकों विद्रोह हुए। इस समय बिहार का नवाब मीर कासिम था।

विभिन्न विद्रोह

जॉन शोर के सिफारिश से अन्‍नागार का निर्माण पटना गोलघर के रूप में 1784 ई. में किया गया। जब बिहार में 1783 ई. में अकाल पड़ा, तब अकाल पर एक कमेटी बनी जिसकी अध्यक्षता जॉन शोर था। उसने अन्‍नागार निर्माण की सिफारिश की। गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस के आदेश पर पटना के गाँधी मैदान के पश्‍चिम में विशाल गुम्बदकार गोदाम बना। इसका निर्माण 1784-85 ई. में हुआ। 1784 ई. में रोहतास को नया जिला बनाया गया और थामस लॉ इसका मजिस्ट्रेट एवं क्लेवर नियुक्‍त किया गया। 1790 ई. तक अंग्रेजों ने फौजदारी प्रशासन को अपने नियन्त्रण में ले लिया था। 1757 ई. से लेकर 1857 ई. तक बिहार में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह चलता रहा। बिहार में 1857 ई. से ही ब्रिटिश विरोधी संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। यहाँ के स्थानीय जमींदारों, क्षेत्रीय शासकों, युवकों एवं विभिन्‍न जनजातियों तथा कृषक वर्ग ने अंग्रेजों के खिलाफ अनेकों बार संघर्ष या विद्रोह किया। बिहार के स्थानीय लोगों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संगठित या असंगठित रूप से विद्रोह चलता रहा, जिनके फलस्वरूप अनेक विद्रोह हुए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंग्रेज़ और आधुनिक बिहार (हिंदी) web.bookstruck.in। अभिगमन तिथि: 07 जून, 2020।

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