अंतरिक्ष स्टेशन
अंतरिक्ष स्टेशन अंतरिक्ष में संसाधनों के विकास के लिए एक आदर्श प्लेटफ़ार्म है। अंतरिक्ष में तैरते बड़े-बड़े विशालकाय यान, जिनका मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष की व्यापक खोज है, जिसकी सहायता से अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किये जाते हैं व प्रतिकूल परिस्थितियों में मनुष्यों, पौधों, जानवरों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।
- इन यानों का उद्देश्य सुदूर ग्रहों की यात्रा व वहाँ मानव बस्ती को बसाना संभव बनाना है।
- अंतरिक्ष स्टेशनों को 'अंतरिक्ष प्रयोगशाला' और 'अंतरिक्ष प्लेटफ़ार्म' भी कहते हैं।
- यात्री महीनों तक इन यानों में रह कर कई प्रयोग करते हैं।
- इन यानों की मुख्य विशेषताएँ 'डॉकिंग' (आपस में जुड़ने) की सुविधा है, पृथ्वी से भेजे यान इनसे जुड़कर साजो-सामान व यात्रियों की अदला-बदली करके वापस पृथ्वी पर आ जाते हैं।
अंतरिक्ष स्टेशन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 51 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | निरंकार सिंह। |
अंतरिक्ष स्टेशन अंतरिक्ष में मानव निर्मित ऐसे स्टेशन होते हैं जिनसे पृथ्वी से कोई अंतरिक्ष यान जाकर मिल सकता है। ये स्टेशन एक प्रकार के मंच हैं, जहाँ से पृथ्वी का सर्वेक्षण किया जा सकता है, आकाश के रहस्य मालूम किए जा सकते हैं और भविष्य में इन्हीं मंचों से ग्रहों की समानव यात्राएँ की जा सकेगी। अंतरिक्ष स्टेशन अपने कार्य के अनुरूप वैज्ञानिक शोध स्टेशन, संचार स्टेशन, अंतरिक्ष-नौकायन-स्टेशन, मौसम स्टेशन आदि कहलाते हैं। अगर स्टेशन पृथ्वी का उपग्रह होता है तब साधारणतया वैज्ञानिक इसे भू उपग्रह कहते हैं। अंतरिक्ष स्टेशनों का एक नाम कक्षीय स्टेशन भी है।
अप्रैल, 1971 में सोवियत रूस ने 1775 टन भारी सैल्यूत यान छोड़ा था। इसमें कोई यात्री नहीं था लेकिन यह अनेक यंत्रों से युक्त था। रूसियों ने यह चाहा कि इस मानवरहित यान के साथ एक मानवयुक्त यान जोड़ा जाए और फिर से यात्री अनेक प्रकार के परीक्षण करें। परंतु ऐसा करने में रूस असफल रहा जिससे उसके यात्रियों को पृथ्वी पर वापस आना पड़ा।
जून, 1971 में दूसरी बार रूसियों ने अंतरिक्ष स्टेशन को मानवयुक्त बनाने का प्रयत्न किया। उन्होंने सोयूज 11 छोड़ा जिसका वजन सवा सात टन था। यह 24 घंटे बाद सैल्यूत से मिल गया। इसमें विकसित डाकिंग (मिलन) प्रणाली प्रयोग की गई थी। परीक्षक इंजीनियर पात्सायर तीन सदस्यीय दल के नेता थे। इन लोगों को सैल्यूत में प्रवेश करने के बाद हैरानी हुई। इसमें रहने का कमरा बहुत बड़ा था जिसमें यंत्र लगे हुए थे। रसोई सहित घर के रख-रखाव का सारा सामान और छोटा-मोटा एक पुस्तकालय भी था।
इस समानव अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना होते ही अंतरिक्ष यात्रियों ने अपना काम प्रारंभ कर दिया। उन्होंने सैल्यूत की प्रणालियों की जाँच की, कुछ शारीरिक प्रशिक्षण किए और एक टेलिविजन कैमरे से पृथ्वी के चित्र लिए। यात्रियों ने दो तीन बार इंजन चलाकर सैल्यूत की कक्षा को ओर ऊँचा कर दिया। इससे अंतरिक्ष स्टेशन एक मास और पृथ्वी की परिक्रमा कर सकता था और अन्य सोयूज यान इससे जाकर मिल सकते थे। सोवियत वैज्ञानिकों का कहना है कि सैल्यूत सोयूज अंतरिक्ष स्टेशन अनेक भावी स्टेशनों की शुरुआत है। उनका यह भी कहना है कि भविष्य में अंतरिक्ष नगर बसेंगे और वहाँ फल, सब्जी आदि भी पैदा की जाएगी। अमरीका ने अंतरिक्ष स्टेशन 1973 में छोड़ने की योजना बनाई है, जिसका नाम स्काई लैब रखा गया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 51 |