अघं

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अघं [अघ्+अच्]

1. पाप-अघौषविध्वंसविधौ पटीयसीः- शि. 1/18, 26. °मर्षण आदि।

2. कुकृत्य, अपराध, दोष शि. 4/37

3. अपकृत्य, दुर्घटना, निन्दा, विपत्ति-क्रियादघानां मघवा विघातम्-कि. 3/52; दे. अनघ

4. अपवित्रता, (अशौचं)

5. व्यथा, कष्ट-घः एक राक्षस का नाम, बक और पूतना का भाई जो कंस के यहां मुख्य सेनापति था।

सम.-असुरः एक राक्षस जो पूतना का भाई था-अहः (अहन्) अपवित्रता का दिन, अशौच दिन;-आयुस् (विशेषण) गर्हित जीवन बिताने वाला;-नाश-नाशन (विशेषण) परिमार्जक, पाप-नाशक,-भोजिन- वि. जो देव, अतिथि, पितर आदि के लिए खाना न बनाए अपितु केवल अपने लिए बनाए व खाए। मर्षण (विशेषण) विशोधक, पापनाशक, पाप को हटाने वाला, ऋग्वेद के मन्त्र जिनका सन्ध्या-प्रार्थना के समय प्रायः ब्राह्मणों द्वारा पाठ होता है। सर्वेनसापध्वंसि जप्यं त्रिप्वघमर्षणम्- अमर., -विषः साँप-शंसः दुष्ट आदमी जैसे, चोर;-शंसिन् (विशेषण) किसी के पाप या अपराध को बतलाने वाला।[1]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 09 |

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