अञ्जन:
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अञ्जनः [अञ्ज्+ल्युट्] (पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा के) रक्षक हाथी, -नं (न.)
- 1. काजल, सुरमा; लीपना पोतना, मिलाना
- 2. प्रकट करना, व्यक्त करना
- 3. विलोचनं दक्षिणमञ्जनेन सम्भाव्य-रघुवंश 7/8, असृत° उत्त. 4/19, मृच्छ. 1/34; (आलं. भी) अज्ञानान्धस्य लोकस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै पाणिनये नमः ।। शिक्षा. 45, (तु.) दारिद्रयं परमाञ्जनम्
- 4. लेप सौंदर्यवर्धक उबटन
- 5. मसो
- 6. आग
- 7. रात्रि
- 8. (-नं, -ना) (सा. शा.) व्यङ्गयार्थ, व्यङ्गयार्थ के प्रकट होने की प्रक्रिया, अनेकार्थक शब्द का प्रयोग जिसका प्रसङ्गतः विशेष अर्थ होता है-अनेकार्थस्य शब्दस्य वाचकत्वे नियन्त्रिते। संयोगाद्यैरवाच्यार्थधीकृद्व्यापृतिरञ्जनम् ।। काव्य 2, दे. 'व्यञ्जना' भी।
सम.-केश (विशेषण) जिसके बाल बहुत काले हों।
केशी (स्त्रीलिंग) एक सुगन्ध द्रव्य जिसे स्त्रियां बालों में लगाती हैं।
अंभस् (नपुं.) आँख का पानी
शलाका सुरमा लगाने की सलाई।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 17 |
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