अथर्वन्‌

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अथर्वन् (पुल्लिंग) [अथ-ऋ-वनिप्]

1. यज्ञ कर्ता विशेष, अग्नि और सोम का उपासक पुरोहित
2. अथर्वा ऋषि की संतान-ब्राह्मण, (ब. व.), अथर्वा ऋषि की सन्तान, अथर्ववेद के सूक्त, (पुं.-अथर्वा तथा नपुं.-अथर्व), °वेदः अथर्ववेद जो चौथा वेद माना जाता है, तथा जिसमें शत्रु-नाश के लिए अनेक अमंगल प्रार्थनाएँ और अपनी सुरक्षा के लिए तथा विपत्ति, पाप, बुराई, एवं दुर्भाग्य से बचाव के लिए असंख्य प्रार्थनाएँ पाई जाती हैं, इनके अतिरिक्त दूसरे वेदों की भांति इसमें भी धार्मिक एवं औपचारिक संस्कारों में प्रयुक्त होने वाले अनेक सूक्त हैं, जिनमें प्रार्थनाओं के साथ-साथ देवताओं का अभिनन्दन भी किया गया है।


सम.-निधिः,-विद् (पुल्लिंग) अथर्ववेद के ज्ञान का भंडार अथवा अथर्व-ज्ञान से संपन्न-गुरुणा अथर्वविदा कृतक्रियः- रघुवंश 8/4, 1/59[1]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 26 |

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