अनन्य

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अनन्य (विशेषण) [न. त., न. ब.]

1. अभिन्न, समरूप, वही, अद्वितीय
2. एकमात्र, अनुपम, जिसके साथ और दूसरा न हो
3. अविभक्त, एकाग्र, अन्य की ओर न जाने वाला, समास में 'अनन्य' शब्द का, अनुवाद किया जा सकता है-'दूसरे के द्वारा नहीं' और किसी ओर लग्न या निदेशित 'नहीं' 'एकाश्रयी'।


सम.-गति (स्त्रीलिंग) एकमात्र सहारे वाला-चित्त,-चिंत,-चेतस्,-मनस्,-मानस, हृदय (विशेषण) एकाग्रचित्त, जिसका मन और कहीं न हो; जः,-जन्मन् (पुल्लिंग) कामदेव, प्रेम का देवता-पूर्वः वह पुरुष जिसके और कोई स्त्री न हो; (-र्वा) कुमारी, बिनब्याही स्त्री- रघुवंश 4/7;-भाज् (विशेषण) किसी और व्यक्ति की ओर लगाव न रखने वाला:-विषय (विशेषण) किसी और से संबंध न रखने वाला,-वृत्ति (विशेषण) 1. वैसे ही स्वभाव का 2. जिसकी दूसरी जीविका न हो 3. एकनिष्ठ मनोवृत्ति वाला;-शासन (विशेषण) स्वतंत्र, जिस पर दूसरे की आज्ञा नहीं चलती;-सामान्य,-साधारण (विशेषण) दूसरे से न मिलने वाला, असाधारण, ऐकान्ति रूप से लगा हुआ, बेलगाव,-°राजशब्दः-रघुवंश 6/38;-सदृश (विशेषण]]) (स्त्रीलिंग-शी] बेजोड़, अनुपम।[1]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 35 |

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