अनुपसंहारिन्
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अनुपसंहारिन् (पुल्लिंग) [उप-सम्+ह+णिच्+णिनि, न. त.]
- न्यायशास्त्र में हेत्वाभास का एक भेद जिसके अन्तर्गत पक्ष संबंधी सभी ज्ञात बातें आ जाती हैं, और दृष्टान्त द्वारा, चाहे वह विधेयात्मक हो या निषेधात्मक, कार्यकारण- सिद्धान्त के सामान्य नियम का समर्थन नहीं हो पाता यथा सर्व नित्यं प्रमेयत्वात्।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 45 |
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