अन्तरा
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अन्तरा (अव्य.) [अन्तरेति-इण्+डा]
- 1. (क्रि. वि. के रूप में)
- (क) भीतर, अन्दर, भीतर की ओर
- (ख) मध्य में, बीच में
- (ग) मार्ग में, बीच में
- (घ) पड़ोस में, निकट ही, लगभग
- (ङ) इसी बीच में
- (च) समय समय पर, यहाँ वहाँ, कभी-कभी, कुछ समय तक, अब, अभी 118
- 2. (कर्म के साथ सं. अव्य. की भांति)
- (क) अन्तरा त्वां मां च कमण्डलुः-महा.
- (ख) के बिना, सिवाय
सम.-अंसः (पुल्लिंग) छाती,-भवदेहः (पुल्लिंग)-भवसत्त्वम् (नपुं.)-आत्मा या जीवात्मा, जो जन्म और मरण की अवस्थाओं के बीच में रहता है,-दिश् दे.-अन्तर्दिश्-वेदिः-दी (स्त्रीलिंग) 1. स्तंभाश्रित वरांडा, दहलीज, डृयोढी 2. एक प्रकार की दीवार-रघु. 12/93,-शृंगम् (अव्य.) सींगों के बीच में।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 55 |
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