अप

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अप (अव्य.)

1. (धातु के साथ जुड़कर इसका निम्नांकित अर्थ होता है)-
(क) से दूर, अपयाति अपनयति
(ख) ह्रास,-अपकरोति-बुरी तरह से या गलत ढंग से करता है।
(ग) विरोध, निषेध, प्रत्याख्यान-अपकर्षति अपचिनोति
(घ) वर्जन-अपवह, अपसृ (प्रेर.)
2. त. और ब. स. का प्रथम पद होने पर इसके उपर्युक्त सभी अर्थ होते हैं-अपयानम्, अपशब्दः (पुल्लिंग)-एक बुरा या भ्रष्ट शब्द,-भी निडर, अपरागः (पुल्लिंग) असन्तुष्ट (विप. अनुराग), अधिकांश स्थानों पर 'अप' को निम्न प्रकार से अनूदित कर सकते हैं-'बुरा', 'घटिया', 'भ्रष्ट', 'अशुद्ध', 'अयोग्य' आदि।
3. पृथक्करणीय अव्यय (अपा. के साथ) के रूप में-
(क) से दूर-यत्संप्रत्यपलोकेभ्यो लंकायां वसतिर्भवेत्- भट्टि. 8/87
(ख) के बिना, के बाहर-अपहरेः संसारः-सिद्धा.
(ग) के अपवाद के साथ, सिवाय-अप त्रिगर्तेभ्यो वृष्टो देव:-सिद्धा.,-के बाहर, को छोड़कर, इन वाक्यों में 'अप' के साथ कि. वि. (अव्ययीभाव समास) भी बनते हैं-°विष्णु संसार:- बिना विष्णु के, °त्रिगर्तवृष्टो देवः-अर्थात् त्रिगर्त को छोड़कर अपनिषेध और प्रत्याख्यान को भी जतलाता है-कामं, शंकम्।[1]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 61 |

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