अपर
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अपर (विशेषण) [न परो यस्मात, न. ब.] (कुछ अर्थों में 'सर्वनाम' की भांति प्रयुक्त होता है)
- 1. अप्रति-द्वन्द्वी, बेजोड़, तु. अनुत्तम, अनुत्तर
- 2. [न. त.]
- (क) दूसरा, अन्य (विशेषण व नाम की भाँति प्रयुक्त)
- (ख) और, अतिरिक्त
- (ग) दूसरा, और
- (घ) भिन्न, अन्य-मनुस्मृति 1/85
- (ङ) तुच्छ, मध्यम
- 3. किसी और से संबंध रखने वाला, जो अपना निजी न हो (विप. स्व)
- 4. पिछला, बाद का, दूसरा, बाद में (काल और देश की दृष्टि से) (विप. पूर्व), अन्तिम-रात्रेरपरः कालः निरु., जब षष्ठी तत्पुरुष समास के प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त होता है तब 'पिछला भाग' 'उत्तरार्ध' अर्थ होता है;-°पक्षः मास का उत्तरार्ध, °हेमंतः सर्दियों का उत्तरार्ध, °कायः शरीर का पिछला भाग, आदि, °वर्षा, °शरद् बरसात या पतझड़ का उत्तरार्ध।
- 5. आगामी, अगला
- 6. पश्चिमी-शि. 9/1, कु. 1/1
- 7. घटिया निम्नतर
- 8. (न्या. में) अविस्तृत, अधिक न ढकने वाला, जब 'अपर' शब्द एक वचन में 'एक' (एक, पहला) के सह संबंधी के रूप में प्रयुक्त होता है तब इसका अर्थ होता है 'दूसरा, बाद का'-एको ययी चैत्ररथप्रदेशान् सौराज्यरम्यानपरी विदर्भान्-रघु. 5/60, जब यह व. व. में प्रयुक्त होता है तो इसका अर्थ होता है 'दूसरे' और इसके सहसंबंधी शब्द प्राय: 'एके' 'केचित्' 'काश्चित्' 'अपरे' 'अन्ये' आदि हैं-एके समूहुर्बलरेणुसंहति शिरोभिराज्ञामपरे महीभृतः-शि. 12/45, कुछ और,-शाखिनः केचिदध्यष्टुर्न्य- माङक्षुरपरेऽम्बुधौ, अन्ये त्वधिषुः शैलान् गुहास्त्वन्ये व्यलेषत, केचिदासियत स्तब्धा भयात्केचिदघूर्णिषुः।
- उदतारिषुरम्बोधिं वानराः सेतुनापरे-भट्टि. 15/31-33,-र: (पुल्लिंग)
- 1. हाथी का पिछला पैर
- 2. शत्रु-रा (स्त्रीलिंग)
- 1. पश्चिमी दिशा
- 2. हाथी का पिछला भाग
- 3. गर्भाशय, गर्भ की झिल्ली
- 4. गर्भावस्था में रुका हुआ रजोधर्म, रम् (नपुल्लिंग)
- 1. भविष्य
- 2. हाथी का पिछला हिस्सा,-रम् (क्रि. विशेषण) पुनः, भविष्य में, अपरंच इसके अतिरिक्त, अपरेण पीछे, पश्चिम में, के पश्चिम में (कर्म. या संब. के साथ)।
सम.-अग्नि (अपराग्नि) (पुल्लिंग) (अग्नि-द्विशेषण व.) दक्षिण और पश्चिमी अग्नियां (दक्षिण और गार्हपत्य),-अंगम् (नपुल्लिंग) काव्य के द्वितीय प्रकार गुणीभूतव्यंग्य के आठ भेदों में से एक भेद, काव्य. 5, इसमें व्यंग्यार्थ किसी और का गौण अर्थ है, उदा.-अयं स रसनोत्कर्षी पीनस्तनविमर्दनः, नाभ्यूरुजघनस्पर्शी नीवीविस्रंसनः करः। यहाँ श्रृंगार रस करुण का अंग है;-अंत (विशेषण) पश्चिमी सीमा पर रहने वाला, (न्तः)
- 1. पश्चिमी सीमा या किनारा, अन्तिम छोर, पश्चिमी तट
- 2. (ब. व.) सत्य पर्वत का निकटवर्ती पश्चिमी सीमा प्रदेश या वहाँ के निवासी-अपरान्तजयोद्यतैः (अनीकः) रघु. 4/53, पश्चिमी लोग
- 3. इस देश के राजा
- 4. मृत्यु-अन्तकः=°अन्तः (व. व.) -अपराः,-रे, -राणि दूसरे और दूसरे, कई, बहुत-अर्धम् उत्तरार्ध, -अहः (अपराहः) (पुल्लिंग) दोपहर बाद, दिन का अन्तिम या समापक पहर, -इतरा (स्त्री.) पूर्वदिशा,-कालः (पुल्लिंग) बाद का समय,-जनः (पुल्लिंग) पश्चिम देश का वासी, पश्चिमी लोग, -दक्षिणम् (अव्य.) दक्षिण-पश्चिम में, पक्ष: (पुल्लिंग)
- 1. मास का दूसरा या कृष्ण पक्ष
- 2. दूसरी या विपरीत दिशा, प्रतिवादी (विधि में).-पर (विशेषण) कई एक, बहुत से, विविध,-अपरपराः साथः गच्छन्ति-पा. 6/1/144 सिद्धा.-कई समुदाय जा रहे हैं, पाणिनीयाः (पुल्लिंग) पश्चिम के निवासी पाणिनि के शिष्य-प्रणेय (विशेषण) जो दूसरों के द्वारा आसानी से प्रभावित हो सके, विधेय,-भाव (पुल्लिंग) भिन्न होने का भाव, भेद, अन्तर:-रात्रः रात्रि का उत्तरार्ध या रात का अन्तिम पहर,-लोकः (पुल्लिंग) दूसरी दुनिया, अगला लोक, स्वर्ग,-स्वस्तिकम् (नपुल्लिंग) क्षितिज में पश्चिमी बिन्दु,-हैमन (विशेषण) सर्दी के उत्तरार्ध से संबंध रखने वाला।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 64 |
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