अपरस्पर
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अपरस्पर (विशेषण) [इ. स.-अपरंच परं च, पूर्वपदे मुश्च]
- एक के बाद दूसरा, निर्वाध, अनवरत, "राः सार्थाः गच्छन्ति सततमविच्छेदेन गच्छन्तीत्यर्थः-सिद्धा.।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 65 |
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