अपि

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अपि (अव्य.) [कई बार भागुरि के मतानुसार 'अ' का लोप-वष्टि भागुरिरल्लोपमवाप्योरुपसर्ग-पिधा, पिधानम् आदि)

1. (संज्ञा और धातुओं के साथ प्रयुक्त होकर) निकट या ऊपर रखना, की ओर ले जाना, तक पहुँचाना, सामीप्य सन्निकटता आदि।
2. (पृथक् क्रि. वि. या संधी अव्य. के रूप में) और, भी, एवम्, पुनश्च, इसके अलावा, इसके अतिरिक्त-अपनी ओर से अपनी बारी आने पर-; अपि अपि, अपि च भी, और भी,-अपि स्तुहि, अपि सिंच-सिद्धा. न नापि न चैव, न वापि, नापि वा, न चापि न-न,
3. 'भी' 'अति' 'बहुत' शब्दों के अर्थ पर बल देने के लिए भी बहुधा इसका प्रयोग होता है, अद्यापि-आज भी, अब भी, यद्यपि अगर्चे, चाहे, तथापि-तो भी, कई बार केवल 'तथापि शब्द के प्रयोग से ही 'यद्यपि' का अध्याहार कर लिया जाता है।
4. अगर्चे (भी, चाहे)-चाहे ऊपर 'ढका हुआ; चाहे वल्कल वस्त्र में
5. (वाक्य) के आरम्भ में प्रयुक्त होकर 'प्रश्न सूचक')
6. आशा, प्रत्याशा (आयः विधिलिङ् के साथ) 2 मुझे आशा है कि ब्राह्मण बालक जी उठेगा। विशे. इस अर्थ में 'अपि' बहुधा 'नाम' के साथ जुड़ कर निम्नांकित भाव प्रकट करता है-
(क) संभावना 'शक्यता'
(ख) शायद, संभवतः
(ग) 'क्या ही अच्छा हो यदि', 'मेरी आंतरिक इच्छा या आशा है, तदपि, शायद, सम्भवतः -क्या ही अच्छा होता यदि मैं पुरूरवा होता।
7. (प्रश्नवाचक शब्दों के साथ जुड़ कर 'अनिश्चितता' के अर्थ को बतलाता है) कोई, कुछ, कोपि-कोई, किमपि-कुछ, कुत्रापि-कहीं; इस शब्द को 'अज्ञात' 'अवर्णनीय' 'अनभिधेय' अर्थ में भी प्रयुक्त किया जाता है।
8. (संख्यावाचक शब्दों के पश्चात् प्रयुक्त होने पर 'कास्य' और 'समस्तता' का अर्थ होता है)-चारों वर्णों का।
9. (यह शब्द कभी-कभी 'संदेह', 'अनिश्चितता' और 'शंक भी प्रकट करता है)-अपि चौरो भवेत्-गण शायद वहाँ चोर है।
10. (विधिलिङ् के साथ 'संभावना' अर्थ होता है)-अपि स्तुयाद्विष्णुम्।
11. घृणा, निन्दा-अपि जायां त्यजसि जातु गणिकामाधत्से गर्हितमेतत्-सिद्धा., लज्जा की बात है, धिक्कार हैं-धिग्जाल्मं देवदत्तमपि सिंचेत्पलांडुम्।
12. लोट् लकार के साथ प्रयुक्त होकर 'वक्ता की उदासीनता' प्रकट करता है और दूसरे को यथारुचि कार्य करने देता है-अपि स्तुहि-सिद्धा. (आप चाहें तो) स्तुति करें,-अपि स्तुह्यपि सेधास्मांस्तथ्यमुक्तं नराशन-भट्टि. 8/82
13. कभी विस्मयादि द्योतक अव्यय के रूप में भी प्रयुक्त होता है।
14. 'इसलिए', 'फलतः' (अतएव) के अर्थ में कभी-कभी ही प्रयुक्त होता है।
15. सब के साथ प्रयुक्त होकर 'अध्याहार' के भाव को प्रकट करता है-उदा.-सर्पिषोऽपि स्यात्,-यहाँ (बिन्दुरपि-जरा सा, एक बूंद) जैसा कोई शब्द अध्याहृत किया जाता है, संभवतः 'एक बूँद घी' अभिप्रेत है।[1]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 70 |

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