अब्दुर्रज्जाक
अब्दुर्रज्जाक प्रख्यात सूफी। इनका पूरा नाम कमालुद्दीन अब्दुर्रज्ज़ाक अबू अल ग़्नीम इब्न जमालुउद्दीन अल काशानी था। जैसा नाम से ही स्पष्ट है, ये मूलत: फारस के जिबाल प्रांत में काशान नामक कस्बे के रहनेवाले थे जाए तेहरान इस्फ़हान मार्ग पर लगभग बीचोंबीच स्थित है। इनकी जन्मतिथि का ठीक-ठीक पता नहीं है किंतु हाजी हलीफ़ा ने इनका जन्म 730 हि. (1329-30 ई.) में निश्चित किया है। एक अन्य स्थान पर हाली हलीफा ने ही उनका जन्म 887 हि. (1482-83 ई.) बताया है, लेकिन उक्त स्थल पर किसी भ्रमवश उन्होंने अब्दुर्रज्जाक काशानी के बजाए कमालुउद्दीन अब्सदुर्रज्जाक समरकंदी का जन्म संवत् दे दिया है। जामी (नफ़हात, पृ. 557) के अनुसार ये नर्तज निवासी शाह नूरुद्दीन अब्द अज़ समद के शिष्य थे।
इश्तिलाहात_ अज--सूफ़ीयाना अब्दुर्रज्जाकृत प्रसिद्ध ग्रंथ है। जिसे सूफी संप्रदायांतर्गत व्यवहृत तकनीकी शब्दों का प्रामाणिक कोश कहा जाता है और जिसके दो भाग हैं। इनकी दूसरी पुस्तक 'लताइफ़ अल इलाम फी इशाराती अहल अल इलहाम' में भी सूफियों के तकनीकी शब्दों की व्याख्या है। रज्ज़ाक रचित ' रिसालात फ़ी लक़दा वा लक़दर' का व्याख्या सहित अनुवाद और प्रकाशन गुयार्ड ने किया था। इनकी और भी कई पुस्तकें हैं जैसे कुरान के 38वें पारे की अन्योक्तिपूर्ण व्याख्या करनेवाली तवीलात अल कुरान एवं इब्न अरबी कृत 'फुसूत अल हिकम' तथा अब्दुल्ला अल अंसारी रचित 'मनाज़िल अज़ सायरीन' के ऊपर लिखे गए भाष्य।
बाद के खेवे के सूफियों की तरह अब्दुर्रज्जाक ने भी, फाराबी इब्न सीना द्वारा मुसलमानों के लिए व्याख्यायित 'नव अफलातूनवादी' दर्शन को अपना आधार बनाया। अत: वह सर्वेश्वरवादी थे क्योंकि उक्त दर्शन में संसार को, भारतीय वेदांत की तरह 'सर्व खल्विदं ब्रह्म' कहा गया है और माना गया है कि उसी एक ब्रह्म की ज्योति से संपूर्ण विश्व का अस्तित्व है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 171 |