अमर
अमर (विशेषण) [न. त. मृ-पचाद्यच्] जो कभी प्राप्त न हो, न मरने वाला, अविनाशी-र: (पुल्लिंग)
- 1. देव, देवता
- 2. पारा
- 3. सोना
- 4. तैंतीस संख्या (क्योंकि गिनती में इतने ही देवता हैं।
- 5. अमर सिंह
- 6. हड्डियों का ढेर-रा (पुल्लिंग)
- 1. इन्द्र का आवास स्थान (तु. अमरावती)
- 2. नाल
- 3. योनि
- 4. गृहस्तम्भ,-री (स्त्रीलिंग)
- 1. देवपली, देवकन्या
- 2. इन्द्र की राजधानी
सम.-अमरांगण (स्त्रीलिंग)-अङ्गना दिव्य अप्सरा, देवकन्या।-अद्रिः-(अमराद्रिः) (पुल्लिंग) देव-पर्वत अर्थात् सुरु पहाड़-अधिपः-(अमराधिपः),-इन्द्रः अमरेन्द्र-ईशः (अमरेशः),-ईश्वरः (अमरेश्वरः),-पतिः-भर्ता,-राजः देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, कई बार विष्णु और शिव की भी उपाधि-आचार्यः (अमराचार्यः,-गुरुः,-पूज्यः देवताओं के गुरु, बृहस्पति की उपाधि,-आपगा, (अमरापगा),-तटिनी,-सरित् (स्त्रीलिंग) स्वर्गीय नदी, गंगा की उपाधियाँ,-आलयः अमरालयः (पुल्लिंग) देवताओं का आवास स्थान, स्वर्ग,-कंटकम् (नपुं) विंध्यपर्वतश्रेणी के उस भाग का नाम जो नर्मदा नदी के उद्गम स्थान के निकट है-कोशः,-कोषः (पुल्लिंग) अमरसिंह द्वारा रचित संस्कृत भाषा का एक सुप्रसिद्ध कोश-तरुः,-दारुः 1. दिव्य वृक्ष, इन्द्र के स्वर्ग का एक वृक्ष,-अमरतरुकुसुमसौरभ-सेवनसंपूर्णसकल-कामस्य-भामि. 1/ 28 2. =देव दारु 3. कल्प वृक्ष,-द्विजः (पुल्लिंग) देवल ब्राह्मण जो मंदिर या मूर्ति संबंधी कार्य करता हो, मन्दिर का अधीक्षक,-पुरम् (नपुं.) देवताओं का आवास स्थान, दिव्य स्वर्ग, पुष्पः,-पुष्पकः (पुल्लिंग कल्प वृक्ष,-प्रख्य,-प्रभ (विशेषण) देवताओं जैसा,-रत्नम् (नपुं.) स्फटिक,-लोकः (पुल्लिंग) देवताओं की दुनियाँ, स्वर्ग, °ता स्वर्गीय सुख,-सिंहः (पुल्लिंग) अमरकोश के रचयिता का नाम, वह जैन धर्मावलम्बी थे, कहा जाता है कि विक्रमादित्य महाराज के नवरत्नों में एक रत्न थे।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 90 |
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