अर्घ:

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अर्घ: (पुल्लिंग) [अर्घ्‌+घञ्]

1. मूल्य, कीमत-कुर्युरर्घ यथापण्य-मनुस्मृति 8-398 याज्ञ. 2/251, कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका हि मणयो वैरर्धतः पातिताः-भर्तृ. 2-15, वास्तविक मूल्य से घटी हुई, अवमूल्यित, इसी प्रकार अनर्घ अमूल्य, महार्घ मूल्यवान्।
2. पूजा की सामग्री, देवताओं या सम्मान्य व्यक्तियों को सादर आहुति या उपहार,-कुटजकुसुमैः कल्पितार्याय तस्मै मेघ. 4 (इस आहुति का सामान निम्नांकित है-आपः क्षीरं कुशाच यांचे सर्पिः सतण्डुलम्। यत्रः सिद्धार्थकश्चैव अष्टाङ्गोऽयं प्रकीर्तितः।


सम.-अर्ह (विशेषण) सामान्य उपहार के योग्य,-बलाबलम्‌ की दर, उचित मूल्य, मूल्यों में घटत बढ़त, -सङ्ख्यानम्,-संस्थापनम् मूल्यांकन, वस्तु मूल्य निर्धारण करना, कुर्वीत चैषां (वणिजामू)-प्रत्यक्षे (पुल्लिंग) धर्मसंस्थापनं नृपः-मनुस्मृति 8/402[1]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 102 |

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