अर्द्र
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अर्द्र (भ्वा. पर.) [अर्दति, अर्दित]
- 1. दुःख देना, व्यथित करना, प्रहार करना, चोट पहुँचाना, मारना-रक्षः (पुल्लिंग) सहस्राणि चतुर्दशादत्-भट्टि, 12/56
- 2. मांगना, प्रार्थना करना, निवेदन करना-निर्गलितांबुगर्भं शरद्धनं नार्दति चातकोऽपि-रघु. 5/17, (प्रेर. या चु. पर.)
- 1. (क) सताना, पीड़ित करना, दुःखाना-कामार्दित, कोप', भय' आदि। (ख) प्रहार करना, चोट पहुँचाना, घायल करना, वध करना-येनार्दिदत् दैत्यपुरं पिनाकी- भट्टि. 2/46, अति-अधिक सताना, आक्रमण करना, टूट पड़ना-अत्यार्दीत् वालिनः पुत्रम्-भट्टि. 15/115, अभि-दुःखाना, सताना, पीड़ित करना।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 106 |
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