अलक्त:-क्तक:
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अलक्तः-क्तकः [न रक्तोऽस्मात्, यस्य लत्वम्-स्वार्थे कन्-तारा.]
- कुछ वृक्षों से निकलने वाली राल, लाल रंग की लाख, महावर (प्राचीन काल में स्त्रियों द्वारा शरीर के कुछ अंग इसके द्वारा रंगे जाते थे-विशेष रूप से पैरों के तल और ओष्ठ)-(दन्तवाससा) चिरोज्झितालक्तकपाटलेन-कु. 5/34, मालवि. 3/5, अलक्तकाङ्कां पदवीं ततान-रघु, 7/7, स्त्रियो हतार्थ पुरुष निर निष्पीडितालक्तकवत्यजन्ति-मृच्छ. 4/15 । सम लक्तरसवर्जिता, अद्यापि चरणी तस्याः पद्मकोश-रसः महावर, लाक्षारस-अलक्तरसरक्ताभाद समप्रभी-रामा, रागः महावर का लाल रंग।[1]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 110 |
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