अव
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अव (अव्य.) [कई बार आरंभिक 'अ' को लुप्त कर दिया जाता है जैसा कि "पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य" [1] में] [अव्+अच्]
1. (सम्बोधन, अव्ययीभाव के रूप में) दूर, परे, फासले पर, नीचे
2. (क्रिया से पूर्व उपसर्ग के रूप में) यह प्रकट करता है
- (क) संकल्प, दृढ़ निश्चय-अवधू
- (ख) विसरण, परिव्याप्ति-अवकृ
- (ग) अनादर-अवज्ञा
- (घ) थोड़ापन, ब्रीहीनवहन्ति
- (ङ) आश्रय लेना, सहारा लेना अवलम्ब
- (च) पवित्रीकरण-अवदात
- (छ) अवमूल्यन, पराजय-अवहन्ति शत्रून् (पराभवति)
- (ज) आदेश देन-अवक्लृप्
- (झ) अवसाद, नीचे झुकना-अवतृ, अवगाह्
- (ञ) ज्ञान-अवगम-अवइ
3. तत्पुरुष समास के प्रथम खण्ड के रूप में इसका अर्थ होता है:- अवक्रुष्ट, उदा. अवकोकिल:=अवक्रुष्ट: कोकिलया सिद्धा.।[2]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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