अश्रि:-श्री
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अश्रि:-श्री (स्त्रीलिंग) [अश्+क्रि पक्षे ङीप्]
1. (कमरे का या घर का) किनारा, कोण समास के अन्त में चतुर्, त्रि, षट् तथा और कुछ शब्दों के साथ बदलकर 'अस्र' हो जाता है-दे. चतुरस्र)
2. (शस्त्र की) तेज धार-वृत्रस्य हन्तुः कुलिशं कुण्ठिताश्रीव लक्ष्यते[1]
3. किसी वस्तु का तेज किनारा, धार[2]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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