अष्टन्
अष्टन् (सं.वि.) [अंश+कनिन्, तुट च) (कर्तु., कर्म.-अष्ट-ष्टी) आठ, कुछ संज्ञाओं तथा संख्यावाचक शब्दों से मिलकर इसका रूप समास में 'अष्टा' रह जाता है, उदा. अष्टादशन्, अष्टाविंशतिः, अष्टापद आदि।
समस्त पद-अंग विशेषण जिसके आठ खंड या अवयव हों-गम् (नपुंसक लिंग)
1. शरीर के आठ अंग जिनसे अति नम्र अभिवादन किया जाता है, °पातः,-प्रणामः साष्टाङ्गनमस्कारः शरीर के आठों अंगों से किया जाने वाला नम्र अभिवादन-जानुभ्यां च तथा पद्भ्यां पाणिभ्यामु रसा चिया, शिरसा वचसा दृष्ट्वा प्रणामोऽष्टाङ्ग इंरितः ॥
2. योगाभ्यास अर्थात् मन की एकाग्रता के आठ भाग
3. पूजा की सामाग्री, °अध्य॑म् आठ वस्तुओं का उपहार, °धूषः आठ औषधियों से बनी एक प्रकार की ज्वर उतारने वाली धूप, °मैथुनम् आठ प्रकार का संभोग-रस, प्रणय की प्रगति में आठ अवस्थाएँ-स्मरण कीर्तनं केलिः वेक्षणं गुलभाषणम्, संकल्पोंऽध्यवसायश्च क्रियानिष्पत्तिरेव च।-अप्यायी (स्त्रीलिंग) पाणिनि मुनि का बनाया व्याकरण ग्रंथ जिसमें आठ अध्याय है-अस्रम् अष्टकोण,असिय अष्टकोणीय-अह (न) (विशेषण) आठ दिन तक होने वाला,-कर्ण (वि.) आठ कानों वाला, (-र्ण:) ब्रह्मा की उपाधि,-कर्मन् (पुल्लिंग),-गतिकः (पुल्लिंग) राजा जिसने अपने आठ कर्तव्य पूरे करने हैं (जाठ कर्तव्य-आदाने च विसर्गे च तथा प्रेषनिषेधयोः, पंचमे पार्थवचने व्यवहारस्य चेक्षणे, दंडशुद्धघोः, पंचमे चार्थवचने व्यवहारस्य चेक्षणे, दंडशुद्धपोः सदा उक्तस्तेनाष्टगतिको नृपः।-कृत्वस् (अव्य.) आठ बार,-कोणः (पु.) आठ कोण वाला, अठपहल,-गवम् आठ गौओं का लहँडा,-गुण (विशेषण) आठ तह वाला,-दाप्योऽष्टगुणमत्ययम्म[1], (-णम्) वह आठ गुण जो ब्राह्मण में अवश्य पाये जाने चाहिये-दया सर्वभूतेषु क्षांतिः, अनसूया, शौचम्, अनायात, मंगलम् अकार्पण्यम्, अस्पृहा चेति-गौ.। °आश्रय (विशेषण) इन आठ गुणों से युक्त,-ष्ट (ष्टा) चत्वारिंशत् (विशेषण) अड़तालीस,-तय (विशेषण) आठ तहों वाला,-त्रिंशत्, (-ष्टा) (विशेषण) अड़तीस,-त्रिकम् चौबीस,-दलम् 1. आठ पखुड़ियों वाला कमल, 2. अठकोन,-दशन् (°ष्टा°),-दिश् (स्त्रीलिंग) आठ दिग्विंदु-पूर्वाग्नेयी दक्षिणा च नैऋती पश्चिमा तथा, वायवी चोत्तरैशानी दिशा अष्टाविमा: स्मृता:।[2]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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