अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण
हिन्दुस्तान पर अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण ऐसे समय में हुआ, जब मुग़ल साम्राज्य अपने पतन की ओर बढ़ रहा था। इसके साथ ही उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर भी सुरक्षा के सारे प्रबन्ध बेकार हो चुके थे। यही वह समय था, जब हिन्दुस्तान पर पश्चिम से दो आक्रमण हुए। इनमें से पहला नादिरशाह का आक्रमण और दूसरा अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण था। इन दोनों आक्रमणों ने हिन्दुस्तान को हिलाकर रख दिया। असंख्य नगरों और राज्यों को लूटा गया, अनगिनत मनुष्यों को मौत के घाट उतार दिया गया। स्त्रियों की आबरू लूटी गई, और न जाने कितनी ही स्त्रियों को आक्रमणकारी अपने साथ ले गये। अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण ने मथुरा, वृन्दावन और आगरा को बुरी तरह से बर्बाद कर दिया। भारत पर अहमदशाह अब्दाली के सात आक्रमण हुए थे।
हिन्दुस्तान पर आक्रमण
अहमदशाह अब्दाली नादिरशाह का एक योग्य सेनापति था। उसके विषय में नादिरशाह ने एक बार कहा था कि, "योग्यता तथा चरित्र में मैंने ईरान, तुरान तथा हिन्दुस्तान में अहमदशाह के बराबर कोई आदमी नहीं देखा।" 9 जून, 1747 को नादिरशाह की कृपा के बाद अहमदशाह अब्दाली कंधार का स्वतंत्र शासक बना। 1748 तथा 1767 ई. के बीच अहमदशाह अब्दाली ने हिन्दुस्तान के विरुद्ध सात चढ़ाईयाँ कीं। उसने पहला आक्रमण 1748 ई. में पंजाब पर किया, जो असफल रहा। 1749 में उसने पंजाब पर दूसरा आक्रमण किया और वहाँ के गर्वनर 'मुईनुलमुल्क' को परासत किया। 1752 में नियमित रुप से पैसा न मिलने के कारण पंजाब पर उसने तीसरा आक्रमण किया।
दिल्ली पर क़ब्ज़ा
अहमदशाह अब्दाली ने हिन्दुस्तान पर चौथी बार आक्रमण 'इमादुलमुल्क' को सज़ा देने के लिए किया था। 1753 ई. में मुईनुलमुल्क की मृत्यु हो जाने के बाद इमादुलमुल्क ने 'अदीना बेग ख़ाँ' को पंजाब को सूबेदार नियुक्त किया। (मुईनुलमुल्क को अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब में अपने एजेन्ट तथा गर्वनर के रुप में नियुक्त किया था।) इस घटना के बाद अब्दाली ने हिन्दुस्तान पर हमला करने का निश्चय किया। नवम्बर, 1756 ई. में वह हिन्दुस्तान आया। 23 जनवरी, 1757 को वह दिल्ली पहुँचा और शहर क़ब्ज़ा कर लिया। वह लगभग एक माह तक दिल्ली में रहा और उसने नादिरशाह द्वारा दिल्ली में किये गये किये गये कत्लेआम और लूटमार को एक बार से दुहरा दिया।
मथुरा पर आक्रमण
अहमदशाह अब्दाली ने अपने सैनिकों को यह आदेश दिया कि, "मथुरा नगर हिन्दुओं का पवित्र स्थान है। उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दो। आगरा तक एक भी इमारत खड़ी न दिखाई पड़े। जहाँ-कहीं पहुँचो, क़त्ले आम करो और लूटो। लूट में जिसको जो मिलेगा, वह उसी का होगा। सिपाही लोग काफिरों के सिर काट कर लायें और प्रधान सरदार के खेमे के सामने डालते जायें। सरकारी ख़ज़ाने से प्रत्येक सिर के लिए पाँच रुपया इनाम दिया जायगा।"[1]
मथुरा के छत्ता बाज़ार की नागर गली के सिरे पर बड़े चौबों के पुराने मकान में अनेक नर−नारी और बाल−बच्चे एकत्र थे। यवनों ने उन सबको मार डाला और मकान को तोड़कर उसमें आग लगा दी। उस नष्ट भवन के अवशेष लाल पत्थर के कलात्मक बुर्ज के रूप में आज भी है, जो अब्दाली के सैनिकों की बर्बरता की कहानी बताता हैं। अब्दाली के सैनिकों ने मथुरा में ख़ून की होली खेल शहर के बड़े भाग को होली की तरह जला दिया था। एक प्रत्यक्षदर्शी मुस्लिम ने लिखा है− "सड़कों और बाज़ारों में सर्वत्र हलाल किये हुए लोगों के धड़ पड़े हुए थे और सारा शहर जल रहा था। कितनी ही इमारतें धराशायी कर दी गई थीं। यमुना नदी का पानी नर−संहार के बाद सात दिनों तक लगातार लाल रंग का बहता रहा। नदी के किनारे पर बैरागियों और सन्न्यासियों की बहुत-सी झोपड़ियाँ थीं। उनमें से हर झोंपड़ी में साधु के सिर के मुँह से लगा कर रखा हुआ गाय का कटा सिर दिखाई पड़ता था।"[2]
सैनिक लगातार तीन दिन मथुरा में मार-काट और लूट-पाट करते रहे। उन्होंने मंदिरों को नष्टकर मूर्तियों को तोड़ा, पंडे - पुजारियों का क़त्ल कर दिया। सैनिक निवासियों को गढ़ा हुआ धन देने के लिए मजबूर करते थे। स्त्रियों की इज्जत लूटते थे। सैनिकों के अत्याचारों से बचने के लिए नारियाँ कुओं में या यमुना नदी में डूब कर मर गईं। जो बचीं, ज़्यादातर को सैनिक पकड़ कर अपने साथ ले गये। मथुरा में लूट के बाद अब्दाली के सैनिक वृन्दावन पहुँचे। उन्होंने वहाँ भी मार−काट की और मंदिरों, घरों को लूटा, तोड़ा। एक प्रत्यक्षदर्शी मुसलमान ने लिखा है,− 'वृन्दावन में जिधर नज़र जाती, मुर्दों के ढेर के ढेर दिखाई पड़ते थे। सड़कों से निकलना तक मुश्किल हो गया था। लाशों से ऐसी दुर्गंध आती थी कि साँस लेना भी दूभर हो गया था।'[3]
भारत से वापसी
मथुरा के बाद अहमदशाह अब्दाली की सेना ने आगरा को अपना शिकार बनाया। यहाँ पर भी लूटपाट करने के बाद अहमदशाह अब्दाली ने दुबारा दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। उसने भारत में आलमगीर द्वितीय को 'सम्राट', इमादुलमुल्क को 'वज़ीर', रुहेला सरदार नजीबुद्दौला को सम्राज्य का 'मीर बख़्शी' और अपना मुख्य एजेन्ट नियुक्त किया। मुग़ल बादशाह को कश्मीर, लाहौर, सरहिन्द तथा मुल्तान अहमदशाह अब्दाली को देना पड़ा। इन क्षेत्रों की देखभाल के लिए अहमदशाह अब्दाली ने अपने बेटे 'तिमिरशाह' को नियुक्त किया और स्वयं वापस चला गया। हिन्दुस्तान से अहमदशह अब्दाली के जाने के थोड़े समय बाद ही स्थितियाँ बिल्कुल विपरीत हो गयीं।
मराठों की चुनौती
मार्च, 1858 में पेशवा रघुनाथराव दिल्ली पहुँचा और नजीबुद्दौला को दिल्ली से निकाल दिया तथा 'अदीना बेग' को पंजाब का गर्वनर नियुक्त कर दिया। मराठों की इस चुनौती को तोड़ने के लिए अहमदशाह अब्दाली को पुनः भारत आना पड़ा। 14 जनवरी, 1761 को अहमदशाह अब्दाली तथा मराठों के बीच पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ। पेशवा का पुत्र 'विश्वासराव' और 'सदाशिवराव' दोनों में मारे गये। फलस्वरूप मराठों की पूर्णतः पराजय हुई। 20 मार्च, 1761 को दिल्ली छोड़ने से पहले अहमदशाह अब्दाली ने शाहआलम द्वितीय को सम्राट, नजीबुद्दौला को 'मीर बख़्शी' और इमादुलमुल्क को वज़ीर नियुक्त कर दिया।
सिक्खों से सामना
अहमदशाह अब्दाली का छठा आक्रमण 1767 में सिक्खों को सज़ा देने के उदेश्य से हुआ था। सिक्खों ने पंजाब में अपनी शक्ति बढ़ा ली थी। लाहौर के अफ़ग़ान गर्वनर 'ख़्वाजा आबिद' को भी उन्होंने मार दिया था। अब्दाली का सातवाँ आक्रमण मार्च, 1767 में हुआ था परन्तु यह आक्रमण असफल रहा, क्योंकि वह सिक्खों को कुचल नहीं पाया। अपने सैनिकों में बगावत की सम्भावना को देखते हुए उसे वापस लौटना पड़ा।
इस प्रकार नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों तथा मुग़ल सामंतशाही के आपसी घातक झगडों के कारण 1761 तक मुग़ल साम्राज्य का अस्तित्व एक अखिल भारतीय साम्राज्य के रूप में समाप्त हो गया। अब उसके पास केवल दिल्ली का राज्य ही रह गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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