आंफिक्त्योनी
आँफिक्त्योनी आँफिक्त्योनेइया, आँफिक्त्योनेस् प्राचीन यूनान की धर्म संबंधी परिषदों के नाम। इस शब्द का अर्थ है चारों ओर रहनेवाले (आँफि=अमित:, सब ओर+क्त्योनेस्=निवासी)। ये परिषदें मंदिरों, धर्मस्थानों, धार्मिक उत्सवों एवं मेलों की व्यवस्था किया करती थीं। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण परिषद् वह थी जो आरंभ मे थर्मोपिली के पास अंथेला नामक स्थान पर देमेतर (अन्न और कृषि की देवी) के मंदिर की व्यवस्था करती थी तथा जो आगे चलकर दैल्फी में सूर्यदेव अपोलो के मंदिर का भी प्रबंध करने लगी थी। इसके प्राचीनतम रूप में यूनानियों के 12 कबीले (थेसालियन्, वियोतियन्, दोरियन्, इयोनियन्, (सं. यवन), पैर्हिबियन्, दोलोपियन्, माग्नेती, लोक्रियन्, इनियाने, फ्थियोती, अकियन, मालियन् और फोकियन्) सम्मिलित थे। समय-समय पर इन कबीलों की संख्या घटती बढ़ती रही थी। इस परिषद की बैठकें वर्ष में दो बार, बारी-बारी से दैल्फी और थर्मोपिली में, हुआ करती थीं, जिनमें प्रत्येक कबीले को दो मत प्राप्त थे। इसकी संपत्ति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इसने अपना सिक्का भी चलाया था।[1]
ग्रीक जगत् में इस परिषद् का राजनीतिक महत्व भी पर्याप्त था। विभिन्न नगरराष्ट्रों में बँटी हुई ग्रीक जाति में यह परिषद् एकता की दिशा में प्रभाव डालनेवाली थी। आपसी युद्धों में परिषद् ने नगरों को और नगरों की जल की व्यवस्था को नष्ट करने का निषेध कर दिया था। आगे चलकर इस परिषद् ने समस्त ग्रीक जाति पर एक समान लागू होनेवाले नियम बनाने की दिशा में भी प्रयत्न किया था और एक समान मुद्राप्रचलन का भी उद्योग किया था। परिषद् के नियमों का उल्लंघन करनेवालों के अभियोगों का निर्णय कबीलों के मताधिकारी प्रतिनिधियों के द्वारा किया जाता था जो 'हियेरोम्नेमोन्' कहलाते थे एवं अपराधियों के विरुद्ध धर्मयुद्ध तक की घोषणा कर सकते थे। पर बलशाली नगरराष्ट्र इस परिषद् के आदेशों की उपेक्षा भी कर देते थे और कभी-कभी इसका अपने कार्यों के साधने में भी प्रयोग करते थे। फेराए के यासन् और मकदूनिया के फिलिप् ने इसका उपयोग अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए किया था। कहते हैं, इस परिषद् का प्रथम संस्थापक अंफिक्त्योन् था जो देउकालिथोन् का पुत्र और हेलेन् का भाई था।[2]
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