रामेश्वर नाथ काव

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रामेश्वर नाथ काव
रामेश्वर नाथ काव
रामेश्वर नाथ काव
पूरा नाम रामेश्वर नाथ काव
जन्म 10 मई, 1918
मृत्यु 20 जनवरी, 2002
मृत्यु स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र जासूसी
प्रसिद्धि भारत की गुप्तचर संस्था 'रॉ' (रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग) को स्थापित किया
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सन 1947 में रामेश्वर नाथ काव की इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) में नियुक्ति हुई थी और उनका प्रशिक्षण लीजेंडरी भोलानाथ मुल्लिक की निगरानी में हुआ था।

रामेश्वर नाथ काव (अंग्रेज़ी: Rameshwar Nath Kao, जन्म- 10 मई, 1918, वाराणसी; मृत्यु- 20 जनवरी, 2002) भारत के श्रेष्ठ जासूस थे। उन्होंने भारत की गुप्तचर संस्था 'रॉ' (रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग) को स्थापित किया था। सन 1950 के दशक के मध्य में रामेश्वर नाथ काव 'कश्मीर प्रिंसेस' की जांच और 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति में योगदान जैसे मामलों से जुड़े थे। उन्होंने रॉ की दो पीढ़ियों को जासूसी के गुण सिखाए थे। उनकी टीम को 'काव ब्वॉयज' कहा जाता था। रामेश्वर नाथ काव भारत के तीन प्रधानमंत्रियों के करीबी सलाहकार और सुरक्षा प्रमुख थे। उनके कुशल नेतृत्व और उनकी टीम की कुशल रणनीति की वजह से ही 3000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र का भारत में विलय कराया गया था।

परिचय

भारत के महान जासूस रामेश्वर नाथ काव का जन्म 10 मई, 1918 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। उन्होंने 1960 के दशक में भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी 'रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ)' की स्थापना की थी। उन्होंने और उनके अधिकारियों ने सिक्किम के भारत में विलय कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

रामेश्वर नाथ काव भारत की गुप्तचर संस्था 'रिसर्च एंड एनालिसिस विंग' ( रॉ) के संस्थापक थे। वह 1940 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए। 1948 में इंटेलिजेंस ब्यूरो बना तो वे उससे जुड़ गए। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद ऐसी जांच एजेंसी की जरूरत महसूस हुई जो देश को विदेशी दुश्मनों से सचेत रख सके। इसी के बाद काव ने 1968 में रॉ की स्थापना की। 1971 में रॉ ने भारत-पाक युद्ध में उपयोगिता साबित कर दी। पाकिस्तान तो हारा ही साथ में बांग्लादेश का भी जन्म हो गया। सिक्किम के भारत में विलय में भी काव की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने भारत की एक सुरक्षा बल इकाई, 'नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड' (एनएसजी) का भी गठन किया था।[1]

अहम मामलों पर कार्य

भारत के आजाद होने के समय रामेश्वर नाथ काव ने खुफिया एजेंसी की दुनिया में कदम रखा था। 1947 में उनकी इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) में नियुक्ति हुई थी और उनका प्रशिक्षण लीजेंडरी भोलानाथ मुल्लिक की निगरानी में हुआ था। उन्होंने कुछ बहुत से अहम मामलों पर काम किया। जिसमें 1950 के मध्य में कश्मीर प्रिंसेस मामले की जांच और 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति में योगदान शामिल है। रामेश्वर नाथ काव भारत के तीन प्रधानमंत्रियों के करीबी सलाहकार और सुरक्षा प्रमुख थे। वे 1962 में चीन के साथ भारत के संघर्ष के बाद स्थापित हुए सुरक्षा महानिदेशालय (डीजीएस) के संस्थापकों में से एक थे। बाद में वे एविएशन रिसर्च सेंटर (एआरसी) और रॉ के प्रमुख बने। रामेश्वर नाथ काव एआरसी के पहले प्रमुख थे।

पहला केस

रामेश्वर नाथ काव ने अपने करियर के पहले केस में ही लोगों का ध्यान खींच लिया था। उनका पहला केस 1955 में हुई हवाई दुर्घटना थी, जिसमें चीन के प्रधानमंत्री की जान बाल बाल बच गई थी। साल 1955 में चीन सरकार ने एयर इंडिया का एक विमान चार्टर किया था। इस विमान में सवार होकर चीन के पीएम चू एन लाई, बाडुंग सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जाने वाले थे। आखिरी मौके पर उन्होंने पेट दर्द का हवाला देकर अपनी यात्रा रद्द कर दी थी। यह विमान इंडोनेशिया के पास क्रैश कर गया था, इसमें सवार सभी चीनी अधिकारियों और पत्रकारों की मौत हो गई थी।

इस षडयंत्र के खुलासे की जिम्मेदारी रामेश्वर नाथ काव को दी गई तो उन्होंने कुछ ही दिन में इसका पर्दाफाश करते हुए बता दिया कि साजिश कर्ता ताइवान की खुफिया एजेंसी है। इस काम से चीन के प्रधानमंत्री बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने काव को अपने दफ्तर बुलाकर उपहार में एक शील प्रदान की, जो कि काव के कार्यकाल के दौरान उनकी मेज पर नजर आती थी। काव को मिले इस सम्मान ने पूरी दुनिया में उनको प्रसिद्ध कर दिया था।[2]

पाकिस्तान युद्ध

बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार रामेश्वर नाथ काव का खुफिया नेटवर्क इतना जबरदस्त होता था कि उनको यह तक पता होता था कि पाकिस्तान किस दिन हमला करेगा। काव को करीबी से जानने वाले आंनद वर्मा ने बताया था कि पाकिस्तान से एक मैसेज कोड के माध्यम से आया। जिसे डिसाइफर किया गया तो पता चला कि पाकिस्तान हवाई हमले की साजिश रच रहा है। मिली सूचना में हमले की तय तारीख से दो दिन पहले की डेट दी गई थी। रामेश्वर नाथ काव की सलाह पर वायुसेना को हाई अलर्ट कर दिया गया। जब दो दिनों तक कोई एक्टिविटी नहीं हुई तो वायुसेना ने रामेश्वर नाथ काव से कहा कि इतने दिनों तक एयरफोर्स को हाई अलर्ट नहीं रख सकते हैं। जवाब में उन्होंने एक दिन और अतिरिक्त मांगा। 3 दिसंबर को पाकिस्तान की तरफ से हमला हुआ तो भारतीय सेना पूरी तरह से तैयार थी। पाकिस्तान को बुरी तरह से खदेड़ दिया गया।

सिक्किम विलय

सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का श्रेय भी रामेश्वर नाथ काव को ही जाता है। उन्होंने इस काम को इतनी गोपनीयता से किया कि उनके विभाग के अधिकारियों तक को इसकी भनक लगने नहीं दी। आर.एन. काव ही थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी को विश्वास दिलाया कि यह तख्तापलट पूरी तरह से रक्तविहिन होगा। चीन की नाक के नीचे हुए इस सिक्किम विलय ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। नितिन ए गोखले ने काव पर लिखी अपनी किताब ‘आर एन काव: जेंटलमेन स्पाइमास्टर’ में बताया कि कैसे 27 महीने के अभियान के बाद सिक्किम का विलय कराया गया था।

काव पर हुई जांच

इंदिरा गांधी की सरकार जाने के बाद एक समय ऐसा भी आया कि जब रामेश्वर नाथ काव को संदिग्ध निगाहों से देखा जाने लगा। 1977 में जब मोरारजी देसाई की सरकार आई तो उन्हें शंका हुई कि आपात काल के दौरान लागू हुई नीतियों के पीछे रामेश्वर नाथ काव का दिमाग था। जांच के लिए चौधरी चरण सिंह के दामाद एस.पी. सिंह की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया गया, इस कमेटी ने 6 महीने बाद अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसके अनुसार काव का इमरजेंसी से कोई लेना-देना नहीं था।[2]

काबिलियत

ज्वॉइंट इंटेलिजेंस कमिटी के चेयरमैन रहे के.एन. दारुवाला द्वारा लिखा गया एक नोट आर.एन. काव की काबिलियत बताता है। उन्होंने लिखा था- "दुनिया भर में उनके संपर्क कुछ अलग ही थे। खासकर एशिया, अफ़ग़ानिस्तान, चीन और ईरान में। वे सिर्फ एक फोन लगाकर काम करवा सकते थे। वे ऐसे टीम लीडर थे जिन्होंने इंटर डिपार्टमेंटल कॉम्पिटिशन, जो कि भारत में आम बात है, को खत्म कर दिया। 20 जनवरी, 2002 को उनका निधन हो गया था। इस दौरान काव ने भारत में मॉडर्न इंटेलिजेंस सर्विस की नींव रखी जो आज एक महल बनकर हमारे देश की सुरक्षा कर रही है।"

बेहतरीन नेटवर्क

रामेश्वर नाथ काव का नेटवर्क सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैला था। उनके नेतृत्व में ‘रॉ’ ने बांग्लादेश को मुक्त करने के लिए मुक्ति वाहिनी दल के क्रांतिकारियों की सहायता करके 1971 में पाकिस्तान को पराजित किया। इस जीत ने काव को दिल्ली के सत्ता गलियारों में एक हीरो बना दिया था। आगे आने वाले दिनों में सिक्किम का भारत में विलय कराकर काव ने एक सारे देश को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि वह देश के असली नायक हैं।

सिर्फ भारत में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय खुफिया समुदाय में भी रामेश्वर नाथ काव की अच्छी छवि थी। अपने कौशल और बेहतरीन काम के कारण सहकर्मियों द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता था। फ़्रांस की पूर्व खुफिया एजेंसी एस. डी. ई. सी. ई. के पूर्व अध्यक्ष काउंट एलेक्सेंड्रे दे मारेंचेस ने 1970 में उनको विश्व के पांच महान एजेटों में से एक बताया था। उन्होंने कहा था कि- "काव जी शारीरिक और मानसिक शिष्टता के एक अद्भुत मिश्रण हैं। लाजवाब उपलब्धियां! बेहतरीन मित्रता! और फिर भी अपने, अपनी उपलब्धियों और अपने दोस्तों के बारे में बात करने से कतराते हैं।"

इसी कड़ी में ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमिटी के चेयरमैन के.एन. दारूवाला ने रामेश्वर नाथ काव के बारे में कहा था कि "उनके संपर्क दुनिया भर में थे। खासतौर पर चीन, अफगानिस्तान, और ईरान में। सन 1975 के मध्य में रामेश्वर नाथ काव एक पान सुपारी व्यापारी के वेश में बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति शैख़ मुजीबुर रहमान को उनके देश में होने वाले तख्तापलट की सूचना देने ढाका पहुंच गये थे। काफ़ी देर तक चली उस बैठक में काव ने विद्रोहियों के नाम बताते हुए रहमान को समझाने की बहुत कोशिश की, मगर उन्होंने काव की बातों पर विश्वास नहीं किया। इसका परिणाम यह हुआ कि इस बैठक के कुछ हफ़्तों बाद ही रहमान को उनके परिवार के साथ मौत के घाट उतार दिया गया। इस तख्तापलट के बाद जनरल ज़िया उर रहमान सत्ता में आ गए, हालाँकि 1980 में उनकी भी हत्या कर दी गयी। ज़िया उर रहमान सत्ता में आने के बाद जब भारत आये, तब श्रीमती इंदिरा गाँधी के साथ एक मीटिंग में जहाँ रामेश्वर नाथ काव भी उपस्थित थे, उन्होंने काव के बारे में श्रीमती गाँधी से कहा "यह इंसान मेरे देश के बारे में मुझसे भी ज़्यादा जानता है।"[1]

रॉ से इस्तीफा

सन 1977 में नयी सरकार के गठन के बाद ‘रॉ’ की शक्तियों और संस्था के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद को कम कर दिया गया था। इस कारण रामेश्वर नाथ काव का मोहभंग हो गया और उन्होंंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 1997 में रिटायर होने के बाद वह कैबिनेट के सुरक्षा सलाहकार (असल में, पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) नियुक्त हुए और नए प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को सुरक्षा के मामलों और विश्व के खुफिया विभाग के अध्यक्षों से संबंध स्थापित करने में सलाह देने लगे। उन्होने बहुत अहम किरदार निभाया 'पॉलिसी और रिसर्च स्टाफ' को एक आन्तरिक प्रबुद्ध मंडल बनाने में, जो कि आज की राष्ट्रीय सिक्यूरिटी काउन्सिल सेक्रेट्रीएट का अग्रगामी हैं। उन्होंने भारत की एक सुरक्षा बल इकाई, नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड (एनएसजी) का भी गठन किया था।

शिल्पकार

एक तरफ दुनिया रामेश्वर नाथ काव के खुफिया संस्था के अध्यक्ष के रूप में उनकी प्रशंसा करते नहीं थकती थी, तो दूसरी तरफ उनमें एक ऐसी अनोखी प्रतिभा थी जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते थे। रामेश्वर नाथ काव ‘रॉ’ और ‘एन.एस. जी’ के पहले अध्यक्ष होने के साथ-साथ एक कुशल शिल्पकार भी थे। वन्यजीवन के प्रति अपने लगाव को उजागर करते हुए, उन्होंने घोड़ों की बहुत सी भव्य मूर्तियों का निर्माण किया था। वे गांधार चित्रों के अपने बढ़िया संग्रहण के लिए भी जाने जाते थे।[1]

  • रामेश्वर नाथ काव के बारे में एक कम ज्ञात तथ्य यह है कि उन्होंने अपनी जिंदगी की घटनाओं को एक टेप रिकॉर्डर में रिकॉर्ड किया था और चाहते थे कि उन्हें उनकी मौत के बाद जनता के सामने जारी किया जाए।

बायोपिक

देश की शीर्ष खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के संस्थापक आर. एन. काव की एक बायोपिक बनने जा रही है। ये बायोपिक बनाने की मंशा फिरोज नाडियाडवाला ने जाहिर की। इससे पहले करण जौहर, सुनील बोहरा और एक दो और निर्माताओं ने भी उनकी जीवनी को परदे पर उतारने की बात की थी लेकिन किसी की भी कोशिश अब तक सिरे नहीं पहुंची। रामेश्वर नाथ काव का किरदार निभाने के लिए फिरोज ने नाना पाटेकर का चयन किया।

यह पहला मौका नहीं है जब रामेश्वर नाथ काव के जीवन पर किसी ने फिल्म या वेब सीरीज बनाने की घोषणा की हो। इससे पहले निर्माता और निर्देशक करण जौहर भी उनके जीवन पर एक फिल्म का निर्माण करने की घोषणा कर चुके हैं। उनकी फिल्म में रामेश्वर नाथ का किरदार निभाने के लिए ऋतिक रोशन का नाम सामने आया था। इसके अलावा कुछ ही समय पहले निर्माता सुनील बोहरा ने भी रामेश्वरनाथ पर एक थ्रिलर वेब सीरीज बनाने की घोषणा की थी।

मृत्यु

20 जनवरी, 2002 को रामेश्वर नाथ काव की नई दिल्ली में मृत्यु हो गई।


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